उच्च सदन ने विधायिका के लिए मापदंड तय किए हैं : मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि लोकतंत्र का आधार विधायिका है। एक सशक्त समर्थ विधायिका मजबूत लोकतंत्र बनाती है

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि लोकतंत्र का आधार विधायिका है। एक सशक्त समर्थ विधायिका मजबूत लोकतंत्र बनाती है। इस उच्च सदन ने सदैव विधायिका के लिए एक सुनिश्चित मापदंड तय किये हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शुक्रवार विधान परिषद सदस्यों के विदाई समारोह को संबोधित करते हुए बोले अगर हमें लोकतंत्र की गरिमा की रक्षा करनी है तो, हमें लोकतंत्र की रक्षा करनी होगी। कहा कि उच्च सदन ने विधायिका के लिए मापदंड तय किये हैं।
समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि विधायिका के शक्तिशाली होने और उसे समर्थ बनाने में सबसे बड़ी भूमिका सदस्यगणों द्वारा संवाद को माध्यम बनाकर सहजता, सरलता के साथ कितने प्रभावी ढंग से अपनी बात को रखते हैं, इस पर निर्भर करता है।
विधान परिषद के महत्व की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि, "इस पर अपर हाउस ने सदैव विधायिका के लिए एक सुनिश्चित मापदंड तय किये हैं। यही कारण था कि उत्तर प्रदेश विधानपरिषद में पंडित मदनमोहन मालवीय ,पंडित गोविंदबल्लभ पंत, तेज बहादुर सप्रू और महान साहित्यकार कवियत्री महादेवी वर्मा जैसी विभूतियों ने इस सदन को सुशोभित किया। इस सदन के माध्यम से उन्होंने देश के सामने उत्तर प्रदेश की विधायिका, विधानमंडल, और विधानपरिषद की गरिमा को एक नई ऊंचाई दी।"
विधान भवन के इतिहास की चर्चा करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा कि, "हम सब जानते हैं कि देश के सबसे बड़े राज्य का जो सबसे बड़ा विधानमंडल है वो उत्तर प्रदेश का है। वास्तव में विधान भवन की डिजाइन मूल रूप से विधानपरिषद के लिए ही की गई थी। जनवरी 1887 में जब प्रदेश में विधान परिषद के गठन की कार्यवाही प्रारम्भ हुई, तो उस समय कोई स्थायी भवन विधान परिषद के पास नहीं था। बैठकें अलग-अलग क्षेत्रों में हुआ करती थीं। कभी प्रयागराज, बरेली, कभी आगरा, लखनऊ, तो कभी कहीं और..।
जब गवर्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट के अंतर्गत विधान परिषद के गठन की कार्रवाई स्थायी रूप से आगे बढ़ाने का कार्य प्रारम्भ हुआ तो उस समय उत्तर प्रदेश के इस विधान भवन का निर्माण हुआ। 1928 में विधानभवन बनकर तैयार हुआ। जिसमें आज विधानसभा चल रही है, वहां विधानपरिषद की ही पहली बैठक हुई थी। 1935 में ये भवन विधानसभा के लिए उपलब्ध करवाया गया। विधान परिषद जिसकी सदस्य संख्या कम थी और उनका कार्यकाल भी दो साल का बहुत छोटा सा होता था। उन्होंने अपनी समिति की अपनी पहली बैठक की और 1937 में वर्तमान विधानसभा का सभागार वो विधानपरिषद को प्राप्त हुआ।
उन्होंने कहा कि विधान परिषद के सौंदर्यीकरण का कार्य माननीय सभापति रमेश यादव के मार्गदर्शन में अभी हाल ही में सपन्न हुआ है। ये अपने आप में एक भव्य रूप में सामने आ रहा है।
30 जनवरी को कार्यकाल पूरा कर रहे विधान परिषद सदस्यों को भविष्य की शुभकामना देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि हर एक के जीवन के कुछ लक्ष्य होते हैं और वह व्यक्ति अपने लक्ष्य सुनिश्चित करने के लिए कार्य करता है।


