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नाकाम प्रचार तंत्र से उपजी है ज़ुबान काटने की धमकी

अमेरिका से राहुल गांधी लौटे ही हैं कि उनके खिलाफ़ भारतीय जनता पार्टी के लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है

नाकाम प्रचार तंत्र से उपजी है ज़ुबान काटने की धमकी
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- डॉ. दीपक पाचपोर

चार राज्यों के होने जा रहे चुनाव खासा महत्व रखते हैं। इसके लिये जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के लिये तो प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी है, महाराष्ट्र तथा झारखंड में भी इसी साल चुनाव होंगे। सभी में भाजपा पराजय की कगार पर खड़ी दिखलाई दे रही है। जे एंड के में कांग्रेस का नेशनल कांफ्रेंस से गठबन्धन हुआ है तो वहीं हरियाणा में भी वह आगे चल रही है।

अमेरिका से राहुल गांधी लौटे ही हैं कि उनके खिलाफ़ भारतीय जनता पार्टी के लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है। हालांकि यह पहली बार नहीं हुआ है। जिस प्रकार से राहुल भाजपा और खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर कई मुद्दों को लेकर हमलावर हैं, उससे मोदी के समर्थकों का नाराज़ होना स्वाभाविक है ही, लेकिन जिस तरह की भाषावली का इस्तेमाल भाजपा के विभिन्न नेता राहुल के खिलाफ कर रहे हैं, उसे किसी भी तरह से लोकतंत्र के हित में नहीं कहा जा सकता। तथ्यों का जवाब तथ्यों से दिया जा सकता है; और भाजपा के पास तो बेहतर तथा संगठित प्रचार तंत्र है- सरकारी, भाजपा का आईटी सेल तथा विशालकाय ट्रोल आर्मी। फिर भी अगर भाजपा का कोई नेता राहुल की ज़ुबान काटने वाले को 11 लाख रुपये का ईनाम देने की घोषणा करता है तो समझ लेना चाहिये कि यह सारा ही प्रचार तंत्र ध्वस्त हो गया है। उसी बदहवासी और बौखलाहट में राहुल पर हमले तेज़ हो गये हैं।

भाजपा की परेशानियां तभी से शुरू हो गयी थीं जब सितम्बर, 2022 के पहले हफ्ते में राहुल ने कन्याकुमारी से श्रीनगर तक की पैदल यात्रा निकाली थी। उसे भाजपा ने न सिर्फ हल्के में लिया था, वरन उसके हुल्लड़ी ग्रुप ने इसका मज़ाक उड़ाया था और कई तरह की बेढंगी बातें भी कही थीं। किसी ने पहले अपनी पार्टी को जोड़ने फिर देश को जोड़ने की सलाह दी थी, तो किसी ने राहुल द्वारा स्वामी विवेकानंद का अपमान करने की बात कही। इन सबसे पार पाते हुए राहुल ने न सिर्फ करीब 4 हजार किलोमीटर नाप दिये बल्कि 14 जनवरी से 16 मार्च, 2023 तक न्याय यात्रा भी सफलतापूर्वक पूरी कर ली। हालांकि पहली यात्रा के बीच ही उन्होंने भाजपा सरकार के खिलाफ तगड़ी मोर्चेबन्दी कर ली थी। सड़क मार्ग से होते हुए जब तक वे 17वीं लोकसभा के आखिरी-आखिरी दौर के सत्र में पहुंचे तो जो भाजपा उन्हें हल्के में ले रही थी या उनकी एक खास तरह की छवि भारी-भरकम पैसा फेंककर बना चुकी थी, सतर्क हो गयी। इन यात्राओं में राहुल ने मोदी सरकार के खिलाफ तो विमर्श गढ़ा ही, भाजपा को कई मामलों में पीछे ढकेल दिया। राहुल की इस यात्रा ने कांग्रेस को पुनर्जीवित किया, साथ में विपक्षी गठबन्धन भी बनाया।

भाजपा ने संसद में राहुल और कांग्रेस को लोकतांत्रिक तरीके से नहीं वरन अनैतिक तरीके से नुकसान पहुंचाना शुरू किया। उनके भाषणों के अंश काटे जाते रहे या उनका माइक बन्द किया जाता रहा। उनके खिलाफ कभी प्रवर्तन निदेशालय के मामले में लम्बी पूछताछ कराई गई तो कभी अवमानना का मामला फिर से जिन्दा किया गया। उन सभी बाधाओं से बाहर निकलते हुए राहुल ने पिछले लोकसभा चुनावों में न केवल अपनी पार्टी की ताकत लोकसभा में दोगुनी करके दिखाई वरन एक मजबूत विपक्ष भी मोदी के सामने खड़ा कर दिया। लोकसभा में इस तरह का हश्र हो सकता है, इसका अनुमान भाजपा को पहले से होने लगा था। इसलिये मोदी समेत उनसे सारे नेताओं की ज़ुबान बेहद ज़हरीली हो चली थी। इसी नफ़रती शब्दावली के बल पर मोदी न केवल विपक्ष को अपमानित करते रहे बल्कि अपने भाषणों से धु्रवीकरण भी करते चले गये। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले हुए छत्तीसगढ़. मध्यप्रदेश और राजस्थान में भाजपा को मिली बम्पर जीत ने भाजपा के चेहरे पर मुस्कान तो लौटा दी थी और उसे यह आशा हो चली थी कि 2019 से भी उसका बेहतर प्रदर्शन रहेगा। इसी के भरोसे मोदी ने 370 व 400 पार का नारा दिया जो कि अंतत: जबरन फुलाया गया गुब्बारा साबित हुआ। भाजपा 303 से 240 पर उतर आई। चुनाव के ऐन पहले इंडिया गठबन्धन को धोखा देने वाले नीतीश कुमार की जनता दल यूनाईटेड के 16 तथा चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देसम पार्टी के 12 सदस्यों ने मोदी को तीसरी बार पीएम की कुर्सी तो दिला दी, लेकिन वह सतत डोल रही है।

ऐसे माहौल में चार राज्यों के होने जा रहे चुनाव खासा महत्व रखते हैं। इसके लिये जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के लिये तो प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी है, महाराष्ट्र तथा झारखंड में भी इसी साल चुनाव होंगे। सभी में भाजपा पराजय की कगार पर खड़ी दिखलाई दे रही है। जे एंड के में कांग्रेस का नेशनल कांफ्रेंस से गठबन्धन हुआ है तो वहीं हरियाणा में भी वह आगे चल रही है। भाजपा के प्रति लोगों की नाराजगी इस कदर है कि वहां 50 से ज्यादा विधायक, पूर्व विधायक, नेता आदि भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था। ऐसे ही, वहां भाजपा ने जिस प्रकार से ऑपरेशन लोटस के जरिये उद्धव ठाकरे की सरकार गिराई और शिवसेना तथा नेशनल कांग्रेस पार्टी को तोड़ा, उसके चुनाव चिन्ह छीन लिये, उसके चलते लोगों में भाजपा के प्रति बेकदर नाराज़गी है। ऐसा समझा जाता है कि विधानसभा चुनाव को लेकर भी यहां भाजपा बड़ी परेशानी में है। वह इसलिये भी क्योंकि शिवसेना के एकनाथ शिंदे और एनसीपी के अजित पवार धड़े में कई लोग वापसी की मंशा रखते हैं। एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के भतीजे अजित तो कह चुके हैं कि उन्होंने परिवार को तोड़कर गलती की जिसका उन्हें दुख है।

ऐसे में जब राहुल गांधी अमेरिका दौरे पर देश में लोकतंत्र की दुर्दशा से लोगों को अवगत करा रहे हैं तो इससे पूरी भाजपा खिसियाई हुई है। देश में धार्मिक आजादी के खतरे के रूप में राहुल ने जो एक उदाहरण के रूप में यह कहा था कि 'पता नहीं कब तक सिखों को पगड़ी पहनने की आज़ादी रहेगी या वे गुरुद्वारे जा सकेंगे', उसका बतंगड़ बनाने की कोशिश भाजपा ने की। किसी ने राहुल को आतंकी कह दिया तो किसी ने उन्हें खालिस्तान समर्थक, क्योंकि एक खालिस्तानी नेता ने राहुल के बयान को पृथक देश के समर्थन के रूप में देखा।

ऐसे ही जब अमेरिका में ही एक भाषण के दौरान राहुल ने कहा कि 'जब तक ज़रूरी है तब तक आरक्षण जारी रहेगा। जब उसके समाप्त करने की आवश्यकता पड़ेगी तब उसके बारे में सोचा जायेगा।' उन्होंने साफ किया कि अभी इसका समय नहीं आया है। इसका भी लाभ लेने की कोशिश भाजपा यह कहकर कर रही है कि राहुल गांधी आरक्षण खत्म करना चाहते हैं। इस क्रम में वह लोगों को भुलाने की भी कोशिश कर रही है कि वह स्वयं तभी से आरक्षण के खिलाफ रही है जब से संविधान लागू हुआ है और आरक्षण की व्यवस्था की गयी है। दरअसल भाजपा का संविधान और आरक्षण के प्रति प्रेम तब जाग्रत हुआ जब इसी लोकसभा चुनाव में यह विमर्श इतना आगे बढ़ गया था कि लोगों में यह बात घर कर गयी कि भाजपा 400 सीटों का लक्ष्य इसलिये पाना चाहती है क्योंकि उसे संविधान बदलना है।

जाहिर है कि संविधान बदलने का उद्देश्य आरक्षण खत्म करना ही माना गया था। यह बात भी भाजपा के कई नेताओं एवं उम्मीदवारों ने कही थी। कांग्रेस समेत इंडिया गठबन्धन ने इसे प्रमुख मुद्दा बनाया। इसके कारण मोदी को सरकार बनाने के लिये दो बैसाखियों का सहारा लेना पड़ गया। भाजपा के पूरे प्रचार तंत्र की नाकामी और सरकार को घुटनों के बल पर लाने वाले राहुल की ज़ुबान काटने वाले को यदि भाजपा का कोई नेता ईनाम घोषित करता है तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिये।
(लेखक देशबन्धु के राजनीतिक सम्पादक हैं)


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