भारत के 60 करोड़ आबादी पर जलवायु परिवर्तन का खतरा
प्रकृति से हो रहे लगातार खिलवाड़ का असर अब दिखने लगा है। पृथ्वी लगातार गरम होती जा रही है। हालत यह है कि बढ़ते तापमान को भी हम नजर अंदाज कर रहे हैं

नई दिल्ली। प्रकृति से हो रहे लगातार खिलवाड़ का असर अब दिखने लगा है। पृथ्वी लगातार गरम होती जा रही है। हालत यह है कि बढ़ते तापमान को भी हम नजर अंदाज कर रहे हैं। हमारे लिए यह स्थिति काफी चिंतजनक हो चुकी है। गंगा के मैदानी हिस्सों में जनसंख्या का बड़ा हिस्सा संकट के दौर से गुजर रहा है। लेकिन अभी भी हमारा ध्यान इस ओर नहीं गया है।
अमेरिकी संस्था नेशनल ओशिएनिक एंड एटमोस्फेयरिक एडिमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) की मानें तो पिछले 138 सालों में 2018 सबसे ज्यादा गरम रहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दावा करते हैं कि पिछले पांच सालों में उनकी सरकार ने स्वच्छता पर सबसे ज्यादा काम किया। लेकिन दूसरी ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 2018 के एक सर्वे में बताया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी आज पृथ्वी के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बन चुका है।
प्रदूषण के मामले में वाराणसी ने 2016 में दिल्ली को पीछे छोड़ दिया था। वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण गंगा के मैदानी इलाकों की 60 करोड़ से अधिक आबादी सबसे बड़े खतरों से जूझ रही है। प्रदूषण के लिए यदि पीएम-10 को आधार बनाया जाए। तो विश्व के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में 11 शहर भारत के हैं। जिसमें कानपुर, फरीदाबाद, गया और पटना जैसे बड़े शहर भी शामिल हैं।
पीएम-10 कण सिर्फ इंसान के स्वास्थ्य के लिए ही खतरा नहीं है। बल्कि ग्रीनहाऊस के प्रभाव वाले लक्षणों के कारण पृथ्वी के तापमान को भी असमान्य ढंग से बढ़ा रहे हैं। इसके कारण गंगा के मैदानी इलाकों में गर्मी असमान्य रूप से बढ़ रही है और मानसून भी असामान्य हो चुका है। डब्ल्यूएचओ की 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू और घर के बाहर के प्रदूषण की चपेट में आकर करीब 70 लाख लोगों की मौत हुई थी। इसमें अकेले करीब 24 लाख लोग दक्षिण-पूर्वी एशिया के थे। यानी अगर हवा और प्रदूषित होती है तो हार्ट, लंग्स और सांस की बीमारियां बढ़ना भी तय है।
जिस रफ्तार में हवा बिगड़ती जा रही है। उससे क्लाइमेट चेंज का खतरा भी बढ़ रहा है। वायु प्रदूषित क्षेत्रों में अचानक अत्यधिक बारिश होने का भी खतरा रहता है, जो भीषण बाढ़ की शक्ल अख्तियार कर सकता है। ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में विश्व के कुल कार्बन उत्सर्जन में भारत का हिस्सा 7 प्रतिशत था। जबकि 2016 में 6 प्रतिशत था। और इसकी रफ्तार लगातार बढ़ती जा रही है। हम दुनिया में सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों में चौथे स्थान पर हैं। अन्य देशों में जहां कार्बन उत्सर्जन की मात्रा कम हो रही है। वहीं भारत में यह बढ़ती जा रही है।


