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चिंताजनक है संघ-राज्य संबंधों में तनाव

केंद्र-राज्य संबंधों और कर हस्तांतरण के जटिल मुद्दे ने राज्य व देश की बेहतरी के एजेंडे को आगे बढ़ाने के बजाय एक बदसूरत रस्साकशी में बदल दिया है

चिंताजनक है संघ-राज्य संबंधों में तनाव
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- लेखा रत्तनानी

केंद्र-राज्य संबंधों और कर हस्तांतरण के जटिल मुद्दे ने राज्य व देश की बेहतरी के एजेंडे को आगे बढ़ाने के बजाय एक बदसूरत रस्साकशी में बदल दिया है। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में बहस की स्थिति चाहे जो भी हो, राज्यों की आर्थिक स्थिति को इस हद तक कमजोर किए जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि उनके निर्वाचित प्रमुखों को दिल्ली में विरोध मार्च निकालने पड़ें। ये ऐसे हालात हैं जो टूटने के करीब है और यह कोई अच्छी बात नहीं है।

तनाव और मतभेदों का एक सिलसिला देश के धैर्य की परीक्षा ले रहा है। कुछ तनाव और मतभेद सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के रूप में सामने आते हैं, जैसे किसानों का पहले और अब चल रहा आंदोलन। फिर भी इसके पहले कभी भी राज्यों के निर्वाचित मुख्यमंत्रियों ने अपनी बात रखने के लिए सड़क पर विरोध प्रदर्शन का रास्ता नहीं अपनाया। इस प्रकार की चरम कार्रवाइयां देश को बनाने वाले आंतरिक ताने-बाने के कमजोर होने की ओर इशारा करती हैं जो विश्व मंच पर एक पुनरुत्थानशील भारत की कहानी के विपरीत है। आखिर आंतरिक असंतुलन बाहरी लचीलापन कैसे पैदा कर सकता है? इस फ्रेम में, केंद्र सरकार तथा विपक्ष शासित राज्य सरकारों के बीच तनाव को विशेष महत्व दिया गया है।

किसानों के अलावा फरवरी में दो राज्यों- केरल और कर्नाटक के मुख्यमंत्रियों ने अपने मंत्रिमंडल और सांसदों के साथ दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया और बताया कि वे संघीय धन के वितरण में भेदभाव के रूप में क्या देखते हैं। केरल ने धन आबंटन की अपनी मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और नई दिल्ली में विरोध प्रदर्शन किया है। केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट सरकार के कैबिनेट मंत्रियों, विधायकों और सांसदों के नेतृत्व में दिल्ली के जंतर-मंतर पर 'केंद्र द्वारा वित्तीय अन्याय व देश के संघीय ढांचे में गिरावट' के खिलाफ प्रदर्शन किया। उन्होंने एलडीएफ के 8 फरवरी के विरोध दिवस को भारत के इतिहास में एक 'रेड लेटर' दिन बताया। उसी दिन सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल धन जारी करने के केरल सरकार के अंतरिम आवेदन पर केंद्र सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा। केंद्र ने तर्क दिया है कि केरल के 'वित्तीय कुप्रबंधन' के लिए उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

केरल के मुख्यमंत्री विजयन और उनके मंत्रिमंडल के ऐसा करने से एक दिन पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने धन के अनुचित आवंटन और कर बंटवारे में अन्याय की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने मंत्रिमंडल व विधायकों के साथ विरोध प्रदर्शन किया था। कर्नाटक का कहना है कि जीएसटी संग्रह में वह दूसरे स्थान पर है लेकिन जीएसटी कार्यान्वयन के कारण उसे लगभग 60,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। उसे कर बंटवारे में 63,000 करोड़ रुपये से थोड़ा कम नुकसान हुआ है। कर्नाटक और केरल ने कहा है कि उनका विरोध सभी राज्यों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा और उनके बकाये को सुरक्षित करने के लिए भी है। कर्नाटक तथा केरल की बातों से तमिलनाडु सहमत है।

इस प्रकार केंद्र-राज्य संबंधों और कर हस्तांतरण के जटिल मुद्दे ने राज्य व देश की बेहतरी के एजेंडे को आगे बढ़ाने के बजाय एक बदसूरत रस्साकशी में बदल दिया है। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में बहस की स्थिति चाहे जो भी हो, राज्यों की आर्थिक स्थिति को इस हद तक कमजोर किए जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि उनके निर्वाचित प्रमुखों को दिल्ली में विरोध मार्च निकालने पड़ें। ये ऐसे हालात हैं जो टूटने के करीब है और यह कोई अच्छी बात नहीं है।

केरल के मामले पर विचार करें तो उसे भारतीय रिजर्व बैंक ने शीर्ष पांच वित्तीय तनावग्रस्त राज्यों में रखा है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा राज्यों के राजकोषीय मानदंडों के अध्ययन में उच्च ऋण स्तरों और राजकोषीय घाटे के स्तरों के कारण बिहार, केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब और राजस्थान की पहचान अत्यधिक दबाव वाले राज्यों के रूप में की गई है। उच्च ऋ ण का अर्थ है कि राज्य अपने राजस्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा ऋ ण और ब्याज चुकाने में खर्च करता है। उदाहरण के लिए कई राज्य राजस्व प्राप्तियों का लगभग 10 प्रतिशत या उससे अधिक ब्याज भुगतान पर खर्च करते हैं। पश्चिम बंगाल तथा पंजाब ब्याज भुगतान पर 20 प्रतिशत से अधिक खर्च करते हैं। ऐसा क्यों है और इसे मध्यम और दीर्घकालिक अवधि में कैसे संबोधित किया जा सकता है, यह बहस एवं संवाद का विषय है लेकिन इसे आपसी वाद-विवाद में बदला नहीं जाना चाहिए।

उदाहरण के लिए केरल ने आईओयू (कर्ज के भुगतान की स्वीकारोक्ति) का पहाड़ खड़ा कर दिया है। एलडीएफ ने इस स्थिति के लिए केंद्र को दोषी ठहराते हुए आरोप लगाया है कि उनकी सरकार को राज्य के इतिहास में सबसे खराब वित्तीय संकट में धकेला जा रहा है। 2021-22 के पूर्वव्यापी प्रभाव से केरल की उधार सीमा को कम करने जैसे केंद्र सरकार के कदमों का जिक्र करते हुए एलडीएफ सरकार ने कहा है कि राज्य को 2016 और 2023 के बीच की अवधि के लिए 107513.09 करोड़ रुपये का संचयी नुकसान हुआ है। उदाहरण के लिए, आवंटनों की तुलना करते हुए बताया गया है कि 10वें वित्त आयोग के समय केरल को 'विभाज्य' पूल का 3.8 प्रतिशत मिल रहा था जिसे अब घटाकर 1.9 फीसदी कर दिया गया है। कुछ राजस्व घाटा अनुदान भी रोक दिया गया है। इस महीने की शुरुआत में राज्य का बजट पेश करते हुए केरल के वित्त मंत्री के.एन.बालगोपाल ने मौजूदा वित्तीय संकट के लिए केंद्र के 'शत्रुतापूर्ण रुख' को जिम्मेदार ठहराया था।

भारत सहकारी संघवाद के सिद्धांतों के अनुसार काम करता है जिसके तहत किया गया व्यय और जुटाए गए कर दोनों ही राज्यों और केंद्र के बीच साझा की गई जिम्मेदारियां हैं। आदर्श रूप से इन जिम्मेदारियों को केंद्र और राज्यों के बीच एक अच्छे संतुलन में बांटा जाना चाहिए। वास्तव में केन्द्र के पास राजस्व का बड़ा हिस्सा है जबकि राज्यों के पास जिम्मेदारी का बड़ा हिस्सा है जिसमें सामाजिक सेवा, आर्थिक व कल्याणकारी योजनाएं तथा परियोजनाएं शामिल हैं। भारत में, राज्य कुल सामान्य सरकारी व्यय का 60 प्रतिशत से अधिक खर्च करते हैं। इसे 'ऊर्ध्वाधर असंतुलन' (वर्टिकल इम्बैलेंस) कहा जाता है जिसे केंद्र द्वारा राज्यों को धन के हस्तांतरण के माध्यम से ठीक किया जाता है। धन के हस्तांतरण व वितरण का यही वह मुद्दा है जिसके बारे में राज्य, विशेष रूप से गैर भाजपाई दलों द्वारा शासित दक्षिणी राज्य नाराज हैं जिसे वे असमान वितरण मानते हैं।

केरल के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. थॉमस इसाक ने कोविड महामारी के समय कहा था कि यदि महामारी को नियंत्रित करना है तो केंद्र का राज्यों और स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के साथ तालमेल आवश्यक तथा अपरिहार्य है। उन्होंने कहा- 'हालांकि केंद्र और राज्यों के बीच राजकोषीय संबंध कभी इतने तनावपूर्ण नहीं रहे जितने आज हैं। सहकारी संघवाद की बयानबाजी को बलपूर्वक संघवाद में बदला जा रहा है जो कोविड-19 के प्रति राष्ट्रीय प्रतिक्रिया में बाधा डाल रहा है।' उन्होंने अन्य उदाहरणों के अलावा महामारी की आड़ में केंद्रीय प्रोत्साहन पैकेज के हिस्से के रूप में राज्यों को अतिरिक्त उधार पर शर्तों को लागू करने का उल्लेख किया जो राज्यों की राजकोषीय स्वायत्तता को कमजोर कर रहा था। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि मंदी के दौर में राज्यों के विकास व्यय में किसी तरह की कमी का (जो संयुक्त सरकारी व्यय का 60 प्रतिशत है), सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।

भाजपा के सहयोगी रहे तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी ने केंद्र सरकार पर ठीक यही आरोप लगाया था। उन्होंने 2020 में प्रधानमंत्री को लिखे एक खुले पत्र में कहा था कि 'केंद्र एक ऐसे सुधार एजेंडे को, जिस पर अभी तक आम सहमति विकसित नहीं हुई है, आक्रामक रूप से आगे बढ़ाना सहकारी संघवाद की भावना के अनुरूप नहीं है। खास तौर पर ऐसे समय में जब राज्यों ने केवल हताशा से अतिरिक्त उधार लेने के लिए केंद्र से संपर्क किया है।'

बजटीय आवंटन, राजकोषीय विवेक, ऋण प्रबंधन और राजस्व व्यय के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा और बहस की जानी चाहिए तथा इस पर पूर्व-सहमत फे्रमवर्क के तहत काम किये जाने चाहिए। भारत ने अब तक इसी तरह से काम किया है। एक मित्रतापूर्ण एवं उदार दृष्टिकोण केंद्र तथा राज्यों को अपने वित्त प्रबंधन को अधिक संतुलित तथा टिकाऊ तरीके से चलाने के लिए प्रेरित करने में मदद कर सकता है। केरल और इसके बेहतर विकास संकेतकों तथा वास्तव में सभी दक्षिणी राज्यों से केंद्र बहुत कुछ सीख सकता है। इसी तरह राज्यों के घाटे को कम करने के संदर्भ में बहुत कुछ ठीक करने के लिए केंद्रीय मदद की आवश्यकता है। अंत में, बजट को संतुलित करना महत्वपूर्ण है लेकिन इसके लिए समग्र राष्ट्रीय विकास के लिए संघीय संबंधों की एक पूर्व शर्त का प्रबंधन जरूरी है।
(लेखिका द बिलियन प्रेस की प्रबंध संपादक हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)


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