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दुनिया भर में मशहूर है केरल के नीलांबुर का सागौन

केरल के नीलांबुर में दुनिया का इकलौता टीक म्यूजियम यानि सागौन की लकड़ी का संग्रहालय है. चार साल पहले जीआई टैग मिलने से सैकड़ों साल पुराने अंग्रेजों के जमाने के जंगल का महत्व और बढ़ा

दुनिया भर में मशहूर है केरल के नीलांबुर का सागौन
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केरल के मल्लापुरम जिले का छोटा-सा कस्बा नीलांबुर टीक यानी सागौन की लकड़ी के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. यहां दुनिया का एकमात्र टीक म्यूजियम भी है. नीलांबुर वह जगह है जहां दुनिया में सबसे पहले सागौन के पेड़ लगाए गए थे.

वर्ष 1840 में ब्रिटिश शासनकाल में यहां से सागौन की लकड़ी को इंग्लैंड भेजा जाता था. खासकर इस लकड़ी को इंग्लैंड भेजने के लिए ही इलाके में रेलवे की पटरियां बिछाई गई थीं. नीलांबुर से तमिलनाडु के शोरानुर स्टेशन के बीच चलने वाले पैसेंजर ट्रेन रूट को देश के सबसे सुंदर और हरित रेलवे रूट का दर्जा हासिल है.

अरब सागर के किनारे बसे कालीकट या कोझिकोड से करीब 30 किमी दूर पहाड़ियों की गोद में बसे नीलांबुर में प्रकृति ने खुल कर अपना खजाना लुटाया है. यहां की जलवायु टीक प्लांटेशन के लिए बेहद उपयुक्त है. इसीलिए ब्रिटिश शासकों ने सबसे पहले वर्ष 1840 में यहां टीक प्लांटेशन शुरू किया था.

'पवित्र' कन्निमारि

इस छोटे-से कस्बे में ही कोन्नोलीज प्लाट है जिसे टीक का सबसे पुराना प्लांटेशन कहा जाता है. उस समय मालाबार क्षेत्र के कलेक्टर रहे हेनरी कोन्नोली के नाम पर इसका नामकरण किया गया है. हेनरी ने ही इलाके में टीक के पौधे लगाने की शुरुआत की थी.

चालियार नदी के किनारे 2.31 हेक्टेयर इलाके में फैले कोनोलीज प्लाट में टीक के कई विशाल पेड़ हैं. इसी कस्बे में दुनिया में टीक का सबसे पुराना पेड़ कन्निमारि भी स्थित है. कस्बे में रहने वाले लोग इसे बेहद पवित्र मानते हैं. इसकी भव्यता को देखने के लिए हर साल काफी तादाद में पर्यटक यहां पहुंचते हैं.

जीआई टैग से मिली संरक्षण में मदद

बेहतरीन क्वालिटी की इमारती लकड़ियों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर नीलांबुर के सागौन को चार साल पहले जीआई टैग मिला था. नीलांबुर टीक हेरिटेज सोसायटी के अब्दुल्लाकुट्टी कहते हैं, "जीआई टैग मिलने से नीलांबुर के सागौन को संरक्षित करने में मदद मिलेगी. कामगारों और व्यापारियों समेत करीब 10 हजार लोग अपनी आजीविका के लिए सागौन पर निर्भर हैं. जीआई टैग से राजस्व बढ़ेगा और फर्जी उत्पादों की बिक्री रुकेगी. नीलांबुर के सागौन अपने विशालकाय आकार, शानदार रंग और टिकाऊपन के लिए मशहूर हैं. इसकी खासियत यह है कि इसमें दीमक नहीं लगते हैं."

नीलांबुर में एक अनूठा म्यूजियम भी है जहां टीक के इतिहास और अब तक के सफर का पूरा ब्योरा दर्ज है. यही वजह है कि यह केरल के दर्शनीय स्थलों में शुमार है. उसके प्रवेशद्वार पर 55 वर्ष पुराने सागौन वृक्ष की जटिल जड़ प्रणाली का शानदार दृश्य है. इस म्यूजियम में 80 से 100 फुट लंबे सागौन के पेड़ों के बारे में विस्तृत जानकारी और उनसे संबंधित ऐतिहासिक तथ्य मौजूद हैं. यह दुनिया में अपनी तरह का पहला और अनूठा म्यूजियम है. रोचक जानकारियों से भरा यह म्यूजियम वर्ष भर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

सैकड़ों साल पुराने सागौन का पेड़

केरल वन अनुसंधान संस्थान परिसर में वर्ष 1995 में स्थापित यह म्यूजियम दो मंजिली इमारत में है. म्यूजियम के निचले तल में संरक्षित कन्निमारि सबसे पुराना सागौन का पेड़ है. यहां सागौन के विभिन्न प्रजाति के पेड़ों का पूरा जीवन चक्र देखा जा सकता है. इसके अलावा यहां 160 वर्ष पुराना विशालकाय सागौन वृक्ष भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. इसे कोन्नोली के प्लाट से लाया गया है.

म्यूजियम की निचली मंजिल पर उरू नामक प्राचीन समुद्री पोत का लकड़ी से बना मॉडल और विभिन्न आकारों में सागौन की लकड़ी से बने खंभे देखने को मिलते हैं. यहां सबसे दिलचस्प है नागरामपारा से लाए गए 480 वर्ष पुराने सागौन का पेड़.

नीलांबुर टीक हेरिटेज सोसायटी के अब्दुल्लाकुट्टी कहते हैं, "टीक का इतिहास जानने-समझने के लिए नीलांबुर से बेहतर दुनिया में दूसरी कोई जगह नहीं है. यहां से टीक की लकड़ी को इंग्लैंड भेजने के लिए ही कालीकट से नीलांबुर के बीच रेलवे की पटरियां बिछाई गई थी. आजादी के बाद कुछ साल के लिए इस लाइन पर ट्रेनों का संचालन बंद कर दिया गया था. लेकिन स्थानीय लोगों की मांग पर इसे दोबारा शुरू किया गया."

सागौन के पेड़ के अलावा इस संग्रहालय में तीन सौ प्रजातियों की तितलियां और विभिन्न प्रकार के छोटे जंतुओं का भी संग्रह है. इसके अलावा सागौन के पेड़ों की कटाई को दर्शाती पेंटिंग्स, खेती में उपयोग होने वाले पारंपरिक औजार और तस्वीरें म्यूजियम को रोचक बनाती हैं. यहां ठोस सागौन लकड़ी से बने कई कलात्मक फर्नीचर और दरवाजे भी रखे हुए हैं.


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