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सलमान रुश्दी के नए उपन्यास में 14वीं सदी के भारत की कहानी

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय मूल के लेखक सलमान रुश्दी के नए उपन्यास के अंश जारी किए गए हैं. उन पर हमला होने के चार महीने बाद ये अंश जारी हुए हैं. उपन्यास अगले साल फरवरी में जारी होने की संभावना है

सलमान रुश्दी के नए उपन्यास में 14वीं सदी के भारत की कहानी
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सलमान रुश्दी का नया उपन्यास छपने के लिए तैयार है. न्यूयॉर्कर पत्रिका ने ‘बोरा भर बीज' नाम से इन अंशों को प्रकाशित किया है. जिस अंक में ये अंश प्रकाशित हुए हैं, वह 12 दिसंबर को बाजार में आएगा. इस उपन्यास का शीर्षक ‘विक्ट्री सिटी' है जो पेंग्विन रैंडम हाउस प्रकाशन से अगले साल फरवरी में प्रकाशित होना है. यह उनका 15वां उपन्यास होगा.

विवादित लेखक सलमान रुश्दी पर इसी साल न्यूयॉर्क मेंएक युवक ने चाकू से हमला कर दिया था जिसमें वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे. यह हमला उनके खिलाफ जारी एक फतवे का नतीजा था, जो ईरान के धार्मिक नेता अयातोल्लाह खोमैनी ने उनकी किताब "शैतानी आयतें" (Satanic Verses) के प्रकाशन के बाद 14 फरवरी 1989 को जारी किया था.

उन पर और उपन्यास के प्रकाशन और वितरण में मदद देने वाले लोगों पर ईशनिंदा का आरोप लगाया गया. उनके जापानी अनुवादक हितोशी इगाराशी की तो हत्या ही कर दी गई. इटैलियन अनुवादक और नॉर्वे के प्रकाशक हमले में बाल-बाल बचे थे.

क्या है विक्ट्री सिटी?

रुश्दी की नई किताब विक्ट्री सिटी 14वीं सदी के एक भूभाग के बारे में है जो अब भारत का हिस्सा है. यह एक औरत की कहानी है.

न्यूयॉर्कर में अंशों के प्रकाशन की पुष्टि करते हुए रुश्दी ने ट्वीट भी किया है, जो अगस्त में हमले के बाद से उनका पहला ट्वीट है.

न्यूयॉर्कर में प्रकाशित अंश कुछ यूं शुरू होता है, "शहर की कहानी 14वीं सदी के साझा युग में उसके दक्षिणी हिस्से में आरंभ होती है जिसे हम आज इंडिया या भारत या हिंदुस्तान कहते हैं.”

औरतों को तो सरहदें लांघ कर ही आगे जाना हैः गीतांजली श्री

कहानी जिस महिला की है, उस किरदार का नाम पांपा कंपाना है. उसका जिक्र इस तरह आता है, "पंपा कंपाना ने यह सब होते हुए देखा. ऐसा प्रतीत होता था मानो ब्रह्मांड उसे एक संकेत भेज रहा था कि सुनो, ग्रहण करो और सीखो. वह नौ साल की थी और अपनी आंखों में आंसु भरकर, अपनी मां का हाथ पूरे जोर से पकड़े हुए थी, जिसकी आंखें एकदम सूखी थीं. जितनी महिलाओं को वह जानती थी, उसने सबको अग्नि में प्रवेश करते हुए देखा.”

रुश्दी का जीवन

1988 में सैटनिक वर्सेस प्रकाशित होने के बाद सेरुश्दी ने अपनी अधिकतर जिंदगी डर के साये में गुजारी है. 12 साल तक वह ब्रिटेन में सुरक्षाकर्मियों की सुरक्षा में रहे. साल 2000 में वह अमेरिका चले गए थे औरअब अमेरिकी नागरिक हैं. 2002 से उन्हें सुरक्षा तो हासिल नहीं है लेकिन सुरक्षाकर्मी उनके सार्वजनिक आयोजनों पर साथ होते हैं. हालांकि वह अब भी अल कायदा और इस्लामिक स्टेट की हिटलिस्ट पर हैं.

रुश्दी ने 2012 में छपी अपनी आत्मकथा "जोसेफ एंटन" में अपनी भूमिगत जिंदगी के बारे में लिखा है. जोसेफ एंटन भूमिगत काल के दौरान उनका छद्म नाम था. जिंदगी के अनुभवों ने आजादी को उनकी जीवन का मुद्दा बना दिया.

रुश्दी ने 2015 में डीडब्ल्यू से एक इंटरव्यू में कहा था, "हमें अपनी कीमती और कड़े संघर्ष से पायी गयी आजादी की रक्षा करनी चाहिए." उन्होंने बार बार अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में आवाज उठायी है, शार्ली एब्दो पर खूनी हमले के बाद, फ्रैंकफर्ट किताब मेले में और बर्लिन के अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव में. "बोलने की आजादी का उसी तरह इस्तेमाल होना चाहिए जैसे हवा का जिसमें हम सांस में लेते हैं, स्वाभाविक रूप से."


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