चिंगारी, जिसने फूंक डाले घर
बात काफी पुरानी है, रूस के एक गाँव में एक छोटा सा किसान था, नाम था इवान। इवान काफी सम्पन्न था, वजह थी

- डॉ घनश्याम बादल
इवान तरेर खा गया, 'अब्बू आपका दिमाग फिर गया है, उसने तो मेरी बहू को करीब - करीब मार ही डाला था, और आप कहते है नहीं हरगिज़ नहीं।" बूढ़ा शांत रहा, फिर बलगम थूक कर बोला, " गुस्सा, और नफरत थूक दो अगर वो ग़लत है, तो ग़लती पर तुम भी है, बच्चों और औरतों को देखो रोज लड़ते हैं। वह ग़लत है तो उसे सज़ा खुदा देगा तुम क्यों अपने सिर बुराई लेते हो?, जाओ और उसे कल चाय पर बुला लाओ, नहीं तो यह छोटी सी चिंगारी, आग बनकर सब जला डालेगी - सब कुछ !'
बात काफी पुरानी है, रूस के एक गाँव में एक छोटा सा किसान था, नाम था इवान। इवान काफी सम्पन्न था, वजह थी, वह खुद तो मेहनती था ही उसकी पत्नी बहू, बेटी, बेटे सब मिलकर घर और खेत संभालते थे। बस, घर का एकमात्र सदस्य ऐसा था जो कोई काम नहीं करता था, वह था इवान का सत्तर साल का बूढ़ा बाप। सब कुछ अच्छा ही रहता अगर इवान एक झगड़े में न फँस जाता, झगड़ा भी क्या बस यूं ही खामख्वाह बात का बतंगड़ बन गया।
इवान का अपने पड़ौसी गैब्रिल के साथ एक मामूली सा झगड़ा ही इस सारे फ़साद की जड़ बन गया। वैसे इससे पहले दोनों ही परिवार अच्छे पड़ोसियों की तरह हंसी-खुशी से रह रहे थे। हुआ यूं कि एक दिन इवान की पालतू मुर्गी दीवार पार कर गैब्रिल के घर चली गई, अब उसने वहाँ अंडा दिया या नहीं यह तो दीगर बात हैं पर अपने देवर टारस के कहने पर इवान की बहू गैब्रिल के घर चली गई पूछने कि उनकी, मुर्गी ने अंडा वहाँ तो नहीं दिया। गैब्रिल की घरवाली को यह बात बड़ी नागवार लगी कि उन पर कोई अण्डा चोर' होने का का शक करे। उसने कहा, 'हम तुम्हारी मुर्गी और अंडे की ताक मे फिरते हैं क्या? हमारे पास रब की दुआ से अण्डे और मुर्गियां हैं, और तुम्हारी तरह हम दूसरों के घर ताकाझांकी करते नहीं फिरते।' बहू भी चुप कहाँ रहने वाली थी, पलट कर उसने भी ईंट का जवाब पत्थर से दिया-- बस, फिर तो दोनों में ऐसी तू-तू, मैं- मैं छिडी कि पुरखे तक नहा गए। देखते-देखते ही मामूली बात, तकरार में बदल गई। दोनो तरफ से दूसरे के खानदान तक को ज़बान के फीते से नापा जाने लगा।
औरतों का झगड़ा था निपट जाता, पर खेत से लौटे गैब्रिल ने भी जब अपनी घरवाली की तरफदारी शुरू कर दी तो इवान को भी ताव आ गया। अब इवान था हट्टा कट्टा, जाकर गैबिल की दाढ़ी ही नोंच ली, गैब्रिल से और कुछ तो करते नहीं बना, हाँ इवान को क़मीज उसने जरूर फ़ाड़ डाली। खैर हल्ला - गुल्ला सुन अडोसी पड़ौसी आ गए जबरदस्ती दोनों को छुड़ाया। अब दोनो घर तो चले गए, पर दिल में बदले की चिंगारी रह गयी।
अपमानित गैब्रिल ने अपने दाढ़ी के उखड़े बाल समेटे और अदालत में जा, इवान के खिलाफ मुकदमा ठोंक दिया। जले पर नमक यह कि उसकी घरवाली मौहल्ले भर में कहती घूमती रही कि इवान को जेल का पानी न पिलाया तो नाम नहीं, साइबेरिया की ठंड भुगतेगा, तो नानी याद आएगी।'
अब इतना कुछ सुन, इवान भी कहाँ चुप बैठने वाला था, उसने भी दावा करने में देर नहीं की। इस सारे प्रकरण में यदि कोई मन से दु:खी था तो वह था इवान का बूढ़ा, बीमार बाप। पर लाचार बूढ़े की कोई सुने तब न ! बहुत समझाया इवान को, पर झगड़ा बढ़ता ही गया।
सात साल यूं ही बीत गए दोनों ही परिवारों को फ़ाक़ाकशी की नौबत आ गई पर अहं न टूटा।। बूढ़ा, जब तब समझाता रहता, अपने और गैब्रिल के बाप के बीच सम्बन्धों की दुहाई देता, अच्छाई-बुराई का फर्क समझाता, परिवार की बिगड़ती हालत का वास्ता देता, इवान सारी सुनता, पर झुकने को न वह तैयार था और न ही गैबिल। सो, मूंछों की लड़ाई जारी रही।
अदालत में जज भी दोनों की शक्ल देखते देखते उकता गए। बूढ़े जज ने समझाया, 'देखो आपस में बातचीत से समझौता कर लो, यूं तो तुम तबाह हो जाओगे।' पर आरोप प्रत्यारोप जारी रहे। इस बीच आग में घी डालने वाली एक घटना और घट गई। एक समारोह में दोनों ही परिवार शरीक थे, इवान की पुत्रवधू ने गैब्रिल को सबके सामने ही' अण्डाचोर 'कह डाला, गैब्रिल इस पर आपा खो बैठा और उसने महिला को दो चार घूंसे जड़ दियो हाय-तौबा मच गई, बदकिस्मती से महिला उस समय पेट से थी। बच्चा गिर गया और इवान को मौका मिल गया. गैब्रिल पर गर्भवती महिला को पीटने का मुकदमा ठोंकने का। उसने कोर्ट के मुलाजिमों से सांठ गांठ कर सख्त से सख्त धाराएं लगवाई, आखिरकार गैब्रिल को सजा करवाने में कामयाब हो गया। अदालत ने गैब्रिल को गर्भवती औरत को पीटने के जुर्म में पचास कोडे मारने की सजा सुनाई। शांत स्वभाव? के जज ने फिर समझाने की कोशिश की, 'देखो गैब्रिल, तुमने गर्भवती औरत पर हाथ उठाकर अच्छा नहीं किया। जाओ और जाकर इवान से माफ़ी मांग लो, अगर वह मान जाता है तो हम सजा रद्द
कर देंगे।' गैब्रिल बोला,' साहब मैं अगले साल पचास का हो जाऊंगा, आज तक किसी से नहीं पिटा और इवान की वजह से मैं मार खाऊंगा, और मैं ही जाकर उससे माफ़ी मांगूं ? नहीं, हरगिज नहीं। वो तो मुझे याद रखेगा हमेशा, ऐसा करूंगा मैं।' कहकर अपमानित, गुस्से से उबलता गैब्रिल अदालत से बाहर चला गया।
शाम को इवान जब घर लौटा तो अंधेरा हो रहा था, घर पर सिर्फ उसका बूढ़ा बाप था। 'इवान !' उसने आवाज पर दे कर कहा, 'क्या हुआ, अदालत में आज।' 'कोड़ों की सजा मिली है उसे।' इवान ने अपनी खुशी को छिपाते हुए कहा। खांसते खांसते बूढ़ा बैठा गया। फिर इवान का हाथ अपने हाथ में लेकर बोला,' देखो बेटे तुम लोग में ठीक नहीं कर रहे हो, आखिर गैब्रिल हमारा पड़ौसी है, हमारे पुराने सम्बंध हैं, लेन देन रहा है, सुख-दु:ख सांझा रहे हैं। मेरी मानो, और जाकर गैब्रिल से समझौता कर लो ।
इवान तरेर खा गया, 'अब्बू आपका दिमाग फिर गया है, उसने तो मेरी बहू को करीब - करीब मार ही डाला था, और आप कहते है नहीं हरगिज़ नहीं।' बूढ़ा शांत रहा, फिर बलगम थूक कर बोला, 'गुस्सा, और नफरत थूक दो अगर वो ग़लत है, तो ग़लती पर तुम भी है, बच्चों और औरतों को देखो रोज लड़ते हैं। वह ग़लत है तो उसे सज़ा खुदा देगा तुम क्यों अपने सिर बुराई लेते हो?, जाओ और उसे कल चाय पर बुला लाओ, नहीं तो यह छोटी सी चिंगारी, आग बनकर सब जला डालेगी - सब कुछ !'
'हाँ, यही कहा था उसने अदालत मेन भी, उसका गुरूर टूटने दो...' कहकर इवान चलने लगा। बूढ़े ने फिर हाथ पकड़कर उसे बैठा लिगा और बोला, 'देखो बेटे, उसके गुरूर को छोडो, अपनी ओर देखो, हमारे खेत, हमारी फसलें, हमारे मवेशी पिछले- सात सालों में सब तबाह हो गए, सोचो ऐसा क्यों हुआ।' एक पल की चुप्पी के बाद फिर खुद ही बोला, 'बेटे, ऐसा इस वजह से हुआ क्योंकि तुमने अपना सारा समय अदालत के चक्कर काटने में जाया किया, ऐसी ज़िद का क्या फायदा?, ज़िद छोड़ो और अच्छे पड़ौसी बनो.--' इवान ने सुना बात उसकी समझ में आई. अभी वह समझौते का मन बना ही रहा था कि घर की औरतें खेतों से नया झगड़ा करके लौटी और मंद पड़ती बदले की आग फिर भड़क उठी उधर बदले की आग में गैब्रिल भी सुलग रहा था।
इवान पशुओं को चारा डालने मवेशीखाने की तरफ गया। गर्मी का महीना था, सब कुछ सूखा था। रास्ते में ही गैब्रिल का घर था, इवान ने गैब्रिल को किसी से कहते सुना, 'अरे, वह तो मरने के लायक है।' इवान के मस्तिष्क में गैब्रिल की कड़?वाहट भरी बात कौंध गई' उसकी ऐसा जलाऊंगा कि याद रखेगा, उसकी जलन की पीड़ा मेरी पीठ की जलन से कहीं ज़्यादा होगी।'
इवान अंदर तक कांप गया, गर्मी का सूखा, और गैब्रिल के शब्द ऐसे गडमड्ड हो गये कि 'जलन' में उसे 'आग' नज़र आई। अगर कहीं उसने फसल जला दी तो... शंका जोर पकड़ गई थी। अपने छोटे लड़के तारस को मवेशीखाने भेज इवान स्वयं भी खेतों की ओर बढ़ गया । 'शंका और बल पकड़ गई जब उसे लगा कि कोई चुपचाप उसके पुआलघर की चाहरदीवारी के पास जा रहा है, फिर उसने देखा, किसी ने मु_ी भर पुआल में आग लगाकर अंदर फेंक दिया है।
इवान उस साए की तरफ दौड़ा आग की चमक में उसने साफ देखा साया गैब्रिल ही था। इवान ने दबोचने की कोशिश की, पकड़ भी लिया पर तभी उस के सर पर कुछ लगा और वह बेहोश हो कर गिर गया।
आग ने जोर-पकड़ लिया, अंधेरी रात में भी दिन जैसी रोशनी हो रही थी। पर यह रोशनी तो अंधेरे से भी ज़्यादा भयावह थी, आग ने न अपना देखा न पराया, इवान का घर स्वाहा करती वह गैब्रिल के घर घुसी, चारा, सामान, कपडे, मवेशी भस्माभूत करती वह आधे गांव में फैल गई। बूढ़े की बात सच हो गई थी। दोनो परिवार महज़ जो कपड़े पहने थे उन्हीं में रह गए थे।
बूढ़ा बेचारा तो काफी जल भी गया था। खैर गाँव अच्छा था. सो सर छुपाने को छत और दो रोटी तो मिल गई। इधर बूढ़ा आखिरी सांस गिन रहा था, उसने इशारे से इवान को बुलाया, वह सर पीट पीट कर चिल्ला रहा था, ' हाथ रे, ये मैंने किया, ये आग बुझाई जा सकती थी, मैं बुझा सकता था इसे, पर मेरी मति मारी जो गई थीं ---.' लोग पकड़ कर उसे उसके पिता के पास लाए। वह सबको बताना चाह रहा था कि आग गैब्रिल ने ही लगाई। शायद नफरत की कोई चिंगारी बाकी थी, उसके मन मे ।
अनुभवी बूढ़ा सब ताड़ गया, इवान को इशारे से चुप कर उसने अकेले में बात करने की इच्छा जताई। एकांत होते ही बूढ़ा भावुक हो बोला, 'मैंने क्या कहा था इवान, ये सारा गांव किसने जलाया ?' इवान जल्दी से बोला, 'अब्बा मैंने खुद उसे.'
'बस इवान, अब बस भी करो, सोचो' पाप किसका है, भगवान को साक्षी कर कहो, चिंगारी को हवा किसने दी? सच बोलना, मेरी तरह एक दिन तुम्हें भी जान देनी है। '
इवान समझ गया, अब्बू क्या कह रहे हैं फूट-फूट कर रो पड़ा इवान । शब्द आंसूओं से घुल निर्मल हो बाहर फूट पड़े,' हाँ, पाप मेरा है, मैं गुरूर में अंधा था, मेरी ही नफ़रत चिंगारी ने आग बढ़ाई, मैं आपके और खुदा के सामने शर्मिंदा हूँ, मुझे माफ कर दो अब्बू !'
बूढ़े ने उसे ढांढस बंधाया और आखिरी सांसे गिनते हुए कहा, 'बस, मेरी एक बात मानना इवान कभी भूलकर भी किसी को मत बताना आग किसने लगाई। बस, यही रास्ता है, इस चिंगारी को खत्म करने का ।'
इवान ने वायदा किया और बूढ़ा चल बसा। इधर गैब्रिल को डर सता रहा था, गांव का डर, अदालत और सजा का डर, 'इससे भी ज्यादा अपने पाप के डर से वह अंदर ही अंदर जल रहा था, डर रहा था। सोच रहा था, इधर इवान ने मुँह खोला और उधर..
पर, इवान ने वायदा निभाया, वैसे भी उसके अंदर की गुरूर और नफ़रत की चिंगारी बुझ गई थी।
दिन, हफ्ते, महीने बीतते गए। माहौल सामान्य हो गया था, शायद इस आग में औरतों के तीखे शब्द बाण और मर्दों का ग़रूर भी जल कर खाक हो गए थे। इवान और गैब्रिल के घर फिर बने, चाहते तो दूर-दूर बना सकते थे, पर फिर से उन्होंने घर बनाए तो अगल बगल में ही।
गैब्रिल का डर भी जा चुका था। अब, जब बड़ों ने ही लड़ना -झगड़ना छोड़ दिया था तो बच्चों को आपस में खेलने से भला कौन रोकता। हाँ एक बदलाव और था अब इवान जान गया था कि चिंगारी को पहले ही दबा देना बेहतर है।


