हालात बिल्कुल 2004 जैसे ! क्या इतिहास दोहराया जाएगा?
यह चुनाव आसान नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी बातें चाहे चार सौ पार की जितनी कर लें मगर उन्हें मालूम है कि नफरती हवा नहीं चल पा रही है

- शकील अख्तर
आज की स्थिति 2004 से किस तरह अलग है? बल्कि जनता की स्थिति 2004 से ज्यादा खराब है। बेरोजगारी की समस्या विस्फोटक हो गई है। सरकारी भर्तियां बिल्कुल बंद कर दी गई हैं। कांग्रेस ने विभागवार बताया कि 30 लाख सरकारी पद खाली पड़े हुए हैं। इनमें 8 लाख के करीब आरक्षित सीटें हैं। मतलब जिन दलित आदिवासी पिछड़ों के जीवनयापन का मुख्य आधार सरकारी नौकरी था उससे उन्हें वंचित कर दिया गया।
यह चुनाव आसान नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी बातें चाहे चार सौ पार की जितनी कर लें मगर उन्हें मालूम है कि नफरती हवा नहीं चल पा रही है। और बिना हिन्दू-मुसलमान हुए सबसे बड़ी पार्टी बनना भी मुश्किल है। 2004 के चुनाव उन्हें याद होंगे। वाजपेयी जैसे भाजपा के सबसे बड़े नेता कांग्रेस से पीछे रह गए थे।
आज की ही तरह बड़े-बड़े नारे थे। फील गुड और इंडिया शाइनिंग! और दूसरी तरफ आज के राहुल की तरह अकेली सोनिया गांधी थीं। ऐसे ही सड़कों पर संघर्ष करती हुई। जैसे अहंकार भरे कटाक्ष आज हो रहे हैं वैसे ही तब होते थे। उस समय प्रमोद महाजन चाणक्य बने हुए थे। कहा कि यह सड़कें हमने बना दीं तो सोनिया चल पा रही हैं।
उस समय भी खामख्याली का यही अंदाज था कि देश में जो कुछ हुआ है हमने किया है। इंडिया शाइनिंग इसी से उपजा नारा था। जैसे आज विश्व गुरु है। मगर 13 मई 2004 को जब परिणाम आए तो कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी। 145 सीटों के साथ और उसका गठबंधन 335 सीटों के साथ बहुमत से बहुत आगे था। भाजपा को केवल 138 सीटें मिली थीं।
यहां यह बता देना जरूरी है कि उस समय भी चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में मीडिया भाजपा और इसके गठबंधन एनडीए को भारी बहुमत दिला रहा था। एनडीए को 335 सीटें और यूपीए को 110। और जब नतीजे आए थे एनडीए केवल 181 सीटों पर सिमट कर रह गई।
शनिवार 16 मार्च 2024 को लोकसभा चुनाव की घोषणा होने से एक दिन पहले तक मीडिया एनडीए को कितनी सीटें दिखा रहा था? उतनी ही जितनी मोदी जी खुद बोल रहे हैं। चार सौ! चार सौ से दो कम! चार सौ से चार ज्यादा! मतलब चार सौ का आंकड़ा जनता के दिमाग में भर देना है।
मगर क्या इस तरह जनता के दिमाग में कुछ भरा जा सकता है? 2004 में तो साफ कहा गया था। फीड गुड! अच्छा महसूस करो! जनता की हालत आज की ही तरह बुरी थी। नहीं कर पाई। जमीनी हकीकत पर चली गई। बेरोजगारी बढ़ गई थी। जीडीपी घट गई थी। अमीर-गरीब के बीच अंतर बढ़ता चला जा रहा था। संयुक्त राष्ट्र का मानव विकास सूचकांक बता रहा था कि पीने के पानी, बुनियादी ढांचे, एजुकेशन, हेल्थ, पावर जैसे क्षेत्रों का बजट कम हो रहा था। महंगाई पर कोई काबू नहीं था। कैसे महसूस करती सब अच्छा है। फील गुड। नारा तो बहुत तेजी से चल रहा था। मीडिया की भक्ति में उस समय भी कोई कमी नहीं थी। इंडिया शाइनिंग कर रही थी। मगर हकीकत में लोग देख रहे थे कि शाइन (चमक) केवल बड़े-बड़े उद्योगपतियों के चेहरे पर ही है। जनता के चेहरे बुझे हुए थे। निराशा का माहौल था।
अब आप बताइये कि आज की स्थिति 2004 से किस तरह अलग है? बल्कि जनता की स्थिति 2004 से ज्यादा खराब है। बेरोजगारी की समस्या विस्फोटक हो गई है। सरकारी भर्तियां बिल्कुल बंद कर दी गई हैं। कांग्रेस ने विभागवार बताया कि 30 लाख सरकारी पद खाली पड़े हुए हैं। इनमें 8 लाख के करीब आरक्षित सीटें हैं। मतलब जिन दलित आदिवासी पिछड़ों के जीवनयापन का मुख्य आधार सरकारी नौकरी था उससे उन्हें वंचित कर दिया गया। कृषि जातियां जो देश की कुल आबादी का पचास प्रतिशत से ज्यादा हैं उनके लड़कों के रोजगार का मुख्य साधन फौज, अन्य सुरक्षा बल और पुलिस हुआ करते थे। मगर सब जगह भर्ती बंद कर दी गई। सेना में अग्निवीर जैसी ठेके की स्कीम ले आए। यूपी में 6 साल बाद पुलिस में भर्ती आई थी। मगर पेपर लीक हो गया। आजकल हर भर्ती में यह होता है। पहले तो भर्ती नहीं आती। आती है तो पेपर नहीं होते। पेपर होते हैं लीक हो जाते हैं। और अगर सब ठीक रहा तो नियुक्तियां नहीं होतीं। फौज जैसी जगह में चयन के बाद डेढ़ लाख युवा नियुक्ति के लिए भटक रहे हैं।
यह स्थितियां 2004 से ज्यादा खराब हैं। ऐसे में चार सौ पार केवल माहौल बनाने के लिए है। एक मनोवैज्ञानिक तरीका। दूसरे पक्ष को बिल्कुल खतम दिखा दो। लेकिन क्या दूसरा पक्ष जो इस बार यूपीए के बदले इंडिया गठबंधन है वह इतना कमजोर है कि एनडीए चार सौ ले जाएगा तो वह केवल सौ सवा सौ में सिमट जाएगा? इंडिया गठबंधन तो लगातार मजबूत होता जा रहा है। उसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि भाजपा जैसी कार्यकर्ता आधारित पार्टी से मौजूदा सांसद इस्तीफा दे रहे हैं।राजस्थान और हरियाणा से जहां बीजेपी की सरकार है। कांग्रेस में आ गए हैं। एक ने मध्य प्रदेश में भाजपा से इस्तीफा दे दिया। यह सामान्य घटनाक्रम नहीं है। भाजपा की और किसी पहलू से आप चाहे कितनी आलोचना कर लो मगर वहां के नेताओं का पार्टी के प्रति एक निष्ठा समर्पण का भाव रहता है। वहां से पार्टी छोड़ना बताता है कि पार्टी बढ़ चाहे जितनी गई हो उसके नेताओं को लगने लगा है कि यह पुरानी वाली पार्टी नहीं है। जहां कहते थे सामूहिक निर्णय होते हैं। कार्यकर्ता का सम्मान होता है। अब तो सबकी समझ में आ रहा है कि भाजपा सरकार तक नहीं कहा जाता है। मोदी सरकार कहा जाता है। परिवार तो संघ परिवार था वह तक मोदी परिवार हो गया। और सबसे बड़ी बात कि मोदी मोदी का माहौल जितना बढ़ाते जा रहे हैं जनता में ग्राफ गिरता जा रहा है। बेरोजगारी और मंहगाई के सवाल मोदी मोदी के शोर के बावजूद दब नहीं पा रहे।
ऐसा नहीं है कि भाजपा की समझ में नहीं आ रहा। आ रहा है। मगर उनके पास कोई रास्ता नहीं है। चुनाव की घोषणा हो गई है। दस साल जो नौकरी नहीं दे पाए अब अगर उसे देने का वादा भी करेंगे तो क्या युवा मानेगा? महंगाई का सवाल पेट्रोल-डीजल पर एक और दो रुपए कम करने से क्या दब जाएगा? दस साल में पेट्रोल और डीजल के रेट दो गुने और तीन गुने हो गए हैं। जबकि कच्चे तेल की कीमत 75 प्रतिशत से सौ प्रतिशत तक कम हुई। क्या जनता इसे बिल्कुल नहीं समझती? हर चीज के दाम अनाप शनाप बढ़े हैं। गरीब का तो हाल बेहाल है ही। मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग तक का बजट बिगड़ा हुआ है। क्या मंहगाई चुनाव में सवाल नहीं बनेगी?
बेरोजगारी और मंहगाई इन दोनों सवालों का जवाब बीजेपी के पास नहीं है। और यह दोनों सवाल इस चुनाव के मुख्य मुद्दे बन रहे हैं। नफरत और विभाजन के सवाल नहीं।
आप देखिए चुनाव घोषित होते ही गोदी मीडिया ने चुनाव के मुद्दे बताना शुरू कर दिए। मगर इनमें असली मुद्दे बेरोजगारी और मंहगाई गायब हैं। राम मंदिर, सीएए को मुख्य मुद्दा बता रहे हैं। जनता बता देगी चुनाव में कि उसके लिए असली मुद्दा क्या है। 2004 में भी ठीक यही हुआ था। आज जैसे मोदी पर भरोसा रखिए कह रहे हैं तब कह रहे थे फील गुड कीजिए! और इंडिया को देखिए वह चमक रहा है। इंडिया शाइनिंग! जैसे आज कह रहे हैं कि हम विश्व गुरु हो गए। मोदी जी के कहने से रुस और युक्रेन में परमाणु युद्ध् रुक जाता है। विदेशों में उपहास उड़ता है। विदेश विभाग को खंडन करना पड़ता है। मगर कहे जा रहे हैं। ऐसे ही 2004 में आखिरी आखिरी तक 13 मई 2004 की सुबह मतगणना शुरू होने से ठीक पहले उस समय के भाजपा चाणक्य प्रमोद महाजन ट्रेड मिल पर एक्सरसाइज करते हुए कैमरों पर भारी बहुमत के साथ सरकार की वापसी का दावा कर रहे थे। मगर क्या हुआ वह सबको मालूम है। और अब क्या होगा यह सब देखना चाहते हैं!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


