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बस्तर में मजबूत हो रहीं लोकतंत्र की जड़ें

छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके की पहचान नक्सल समस्या के रूप में रही है, लेकिन अब धीरे-धीरे यहां के हालात बदलने के संकेत मिलने लगे हैं

बस्तर में मजबूत हो रहीं लोकतंत्र की जड़ें
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रायपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके की पहचान नक्सल समस्या के रूप में रही है, लेकिन अब धीरे-धीरे यहां के हालात बदलने के संकेत मिलने लगे हैं। यहां लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हो रही हैं, और नक्सलवाद की जड़ें उखड़ती नजर आ रही है। यही कारण है कि इस इलाके के लोग मौत की धमकी की परवाह किए बिना चुनावी प्रक्रिया में हिस्सा ले रहे हैं।

राज्य में चल रहे पंचायत चुनाव में धुर नक्सल प्रभावित बस्तर में बदलाव की बयार नजर आ रही है। नक्सलियों की तमाम चेतावनियों के बावजूद यहां के लोगों ने पंचायत चुनाव में हिस्सेदारी की है। इस क्षेत्र में आम लोग नेताओं की सभाओं मंे पहुंच रहे हैं, वहीं कई नक्सलियों ने नक्सलवाद का रास्ता त्यागकर मुख्यधारा में शामिल होने में होने में दिलचस्पी दिखाई है।

पंचायत चुनाव के दौरान बस्तर के कई हिस्सों में बदलती तस्वीर नजर आई। सुकमा जिले के कोंटा के धर्मापेंटा गांव में चुनावी सभा के दौरान बड़ी संख्या में ग्रामीणों की उपस्थित देखने को मिली।

ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों में नक्सलियों का खौफ पूरी तरह खत्म हो गया है। यही कारण है कि ग्रामीण अपनी पहचान बताने से डरते हैं। उन्होंने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 'इस क्षेत्र में पिछले 30 साल से कोई सभा नहीं हुई थी।'

ग्रामीणों के जनसभा में पहुंचने को बड़े बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है और माना जा रहा है कि नक्सल प्रभावित इलाकों के नागरिकों का विश्वास लोकतंत्र और पुलिस के प्रति बढ़ा है। उनके मन से नक्सलियों का भय खत्म हो रहा है।

छत्तीसगढ़ के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित जिलों में से एक है सुकमा। इस जिले में धर्मापेंटा एक ऐसा गांव है जहां नक्सलियों द्वारा लगातार भय दिखाकर ग्रामीणों को चुनावी सभाओं और मतदान से दूर रखा जाता था। लेकिन, पुलिस बल की मौजूदगी से पिछले वर्षों की तुलना में यहां के माहौल में बड़ा परिवर्तन आया है।

इतना ही नहीं, इस क्षेत्र में एक और वाकया हुआ जो बताता है कि बुलेट ने बैलेट के आगे आत्मसमर्पण कर दिया है। अतिसंवेदनशील मतदान केन्द्र सुरनार में इनामी नक्सली सहित 12 नक्सलियों ने अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण किया और मुख्यधारा में शामिल होकर मतदान भी किया। इस बार पंचायत चुनाव में नक्सल प्रभावित इलाकों में पिछली बार की तुलना में दोगुना से ज्यादा मतदान हुआ है।

पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) डी.एम. अवस्थी का कहना है, "इस क्षेत्र में जवानों द्वारा नक्सलियों के विरुद्ध लगातार कार्रवाई की जा रही है। छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा सुदूर ग्रामीण अंचल मे रहने वाले ग्रामीणों में भरोसा पैदा करने की कोशिश की जा रही है। यही वजह है कि बस्तर में लोकतंत्र के प्रति विश्वास बढ़ रहा है और नक्सली दहशत खत्म हो रही है।"

राज्य में बीते दो सालों में हुई नक्सली घटनाओं पर गौर करें तो पता चलता है कि वारदातों की संख्या कम हो रही है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि साल 2018 में पुलिस और नक्सलियों में 166 मुठभेड़ें हुईं, वहीं वर्ष 2019 में 112 मुठभेडें़ हुईं। इस प्रकार पुलिस नक्सली मुठभेड़ में 32.53 फीसदी की कमी दर्ज की गई। मुठभेड़ के दौरान जहां वर्ष 2018 में 124 तो वर्ष 2019 में 77 नक्सली मारे गए।

विभिन्न नक्सली घटनाओं में साल 2018 में 89, वहीं साल 2019 में 46 नागरिकों की जान गई। इस प्रकार 2018 की तुलना में 2019 में मृत नागरिकों की संख्या में 48.31 प्रतिशत की कमी आई। जहां 2019 में 19 पुलिसकर्मी शहीद हुए, वहीं 2018 में ये आंकड़ा 53 था। जहां 2018 में आईईडी विस्फोट की 77 एवं 2019 में 41 घटनाएं हुईं, वहीं साल 2019 में आईईडी विस्फोट की घटनाओं में 46.75 प्रतिशत की कमी आई। नक्सली घटनाओं में हथियार लूट की घटनाओं में 56.25 प्रतिशत की कमी देखी गई।

कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री और संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी का कहना है, "नई सरकार ने जिस तरह से लोगों तक पहुंच बनाई है, उनसे संवाद किया है और उनकी बात को सुना है, उसी का नतीजा है कि नक्सल प्रभावित इलाकों में भरोसा पैदा हुआ है। यही कारण है कि बीते एक साल में नक्सली वारदातों में भी कमी आई है। यह सकारात्मक पहल और नजरिए का असर है। यही कारण है कि नक्सली हथियार छोड़ चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बन रहे हैं।"

वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कांग्रेस पर नक्सल समस्या को प्रोत्साहित करने और इसका उपयोग अपने निहित स्वार्थ के लिए करने का आरोप लगाया।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने ने कहा,"कांग्रेस ने नक्सलियों का हमेशा सहारा लिया है और अब ग्रामीण चुनाव में भी नक्सलियों के दबदबे का लाभ ले रही है। यह नजर भी आ रहा है। कांग्रेस सभी चुनावों में नक्सलियों के अभियान का उपयोग अपने लिए कर रही है। भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को जिन क्षेत्रों में जाने की अनुमति नहीं दी जाती है, वहां कांग्रेस के मुख्यमंत्री सभाएं करते हैं।"


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