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नक्सलियों ने खण्डित की हजार साल पुरानी गणेश प्रतिमा!

दंतेवाड़ा ! दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी. दूर फरसपाल गांव के पास पहाडिय़ों पर स्थित ढोलकल की ऐतिहासिक गणेश प्रतिमा को खण्डित कर दिया गया।

नक्सलियों ने खण्डित की हजार साल पुरानी गणेश प्रतिमा!
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ढोलकल की पहाडिय़ों पर 3 हजार फीट ऊंचाई में विराजे थे भगवान गणपति
चट्टान के नीचे धक्का दिया था प्रतिमा को
अवशेष तलाशने ड्रोन कैमरे की ली गयी मदद

दंतेवाड़ा ! दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी. दूर फरसपाल गांव के पास पहाडिय़ों पर स्थित ढोलकल की ऐतिहासिक गणेश प्रतिमा को खण्डित कर दिया गया। आज सुबह पहाडिय़ों से 1 हजार वर्ष पुरानी गणेश प्रतिमा के गायब होने की खबर सोशल मीडिया में वायरल हो गयी। इसके बाद जब पुलिस और प्रशासन की टीम मौके पर पहुंची तो प्रतिमा इस पहाड़ी के नीचे खण्डित अवस्था में मिली। पुलिस ने इसे नक्सलियों की करतूत बतायी तो प्रशासन शरारती तत्वों का हाथ बता रहा है।
करीब साल भर पहले फरसपाल के पास स्थित पहाड़ी की शिखर पर ऐतिहासिक गणेश प्रतिमा की खोज दक्षिण बस्तर के युवा पत्रकार बप्पी राय और हेमंत कश्यप ने की थी। इसके बाद प्रशासन इसे पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करने तैयारी में था। महीने भर पहले ही इसके लिए ढाई करोड़ का प्रोजेक्ट भी बनाया गया। पिछले महीने भर से यहां पर्यटकों की आवाजाही लगातार बढ़ रही थी। जगदलपुर से पर्यटकों का एक दल 25 व 26 जनवरी को इस पहाड़ी पर स्थित गणेश भगवान के दर्शन के लिए पहुंचा था। फरसपाल पर स्थित इस पहाड़ी के शिखर की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 2994 फीट बतायी जा रही है। जब पर्यटक यहां पहुंचे तो उन्हें शिखर पर गणेश प्रतिमा नहीं मिली। ग्रेनाइट पत्थर से करीब 3 फीट ऊंची इस ऐतिहासिक प्रतिमा की गायब होने की जानकारी इस दल ने नीचे फरसपाल पहुंचकर ग्रामीणों को दी और आज सुबह सोशल मीडिया में वायरल भी कर दिया। इसके बाद दंतेवाड़ा में पुलिस और प्रशासन हरकत में आया और कलेक्टर सौरभ कुमार, एसपी कमलोचन कश्यप, सीईओ डॉ. गौरव सिंह और अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिषेक पल्लव के नेतृत्व में पूरा दल इस पहाड़ी पर पहुंचा। गणेश प्रतिमा वाली शिखर तक पहुंचने इस दल को करीब 8 किमी. ऊपर पद यात्रा भी करनी पड़ी। वहां जाकर देखने पर निर्धारित स्थल पर प्रतिमा नहीं थी। शिखर के चारो तरफ मौजूद पत्थरों के एक हिस्से को हटाकर प्रतिमा को नीचे खायी की ओर धक्का दिया गया था। खायी के आस-पास मूर्ति को तलाशने जवानों का दल भेजा गया। ड्रोन कैमरे की मदद भी ली गयी और घंटों की मशक्कत के बाद ऐतिहासिक गणेश प्रतिमा लगभग 16 टूकड़ों में खण्डित मिली। इसके अवशेष इक_े किये गए और पुरातत्व विभाग से चर्चा कर फिर से इसे स्थापित करने या नहीं करने पर निर्णय लेने की तैयारी हो रही है।
इस पूरे मामले पर कलेक्टर सौरभ कुमार का कहना है कि इस ऐतिहासिक स्थल को प्रशासन पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करने की तैयारी में था। ढाई करोड़ की योजना बनी थी। इस प्रतिमा की गायब होने की खबर आज सुबह मिली। दल ने पहुंचकर देखा कि इसे पहाड़ी के नीचे धक्का देकर गिरा दिया गया है।

पर्यटक लगातार यहां आ रहे थे, हो सकता है यह बात नक्सलियों को नागवार गुजरी हो और उन्होंने ही प्रतिमा को खण्डित किया हो, लेकिन यह बात पूरी तरह सही नहीं हो सकती। कलेक्टर ने कहा है कि मूर्ति के अवशेष को फरसपाल लाया गया है, इसे फिर से तैयार करने और स्थापित करने के बारे में शीघ्र ही निर्णय लिया जाएगा। वहीं एसपी कमलोचन कश्यप ने पूरी तरह नक्सलियों की करतूत बताया है। एसपी दफ्तर से जारी लिखित बयान में एसपी ने बताया है कि शासन द्वारा इसे विकसित करने की तैयारी हो रही थी। आवाजाही लोगों की बढ़ी, इससे नक्सलियों का स्वच्छंद विचरण प्रभावित होने लगा था। अगर यह पर्यटन केन्द्र बन जाता तो नक्सलियों को यह इलाका छोडऩा मजबूर होना पड़ता, इसे देखते हुए नक्सलियों द्वारा गणेश प्रतिमा को च_ान से नीचे गिरा दिया गया, इससे लोगों की धार्मिक भावना को आघात पहुंचा है।

इसी शिखर पर हुआ था भगवान गणेश और परशुराम का युद्ध
इतिहास में इस बात का जिक्र मिलता है कि खण्डित हुई भव्य गणेश प्रतिमा की स्थापना करीब 10वीं शताब्दी में छिंदक नागवंशी राजाओं ने की थी। यह प्रतिमा ललीतासन मुद्रा मे हैं। क्षेत्र में यह कथा भी प्रचलित है कि भगवान गणेश और परशुराम का युद्ध इसी शिखर पर हुआ था। युद्ध के दौरान भगवान गणेश जी का एक दात यहां टूट गया था। इस घटना को चिर स्थायी बनाने के लिए छिंदक राजाओं ने शिखर पर गणेश की प्रतिमा स्थापित की, चंूकि परशुराम के फरसे से गणेश जी का दांत टूटा था इसलिए पहाड़ी के शिखर के नीचे गांव का नाम फरसपाल रखा गया। इस शिख की ऊंचाई समुद्र तल से करीब 3 हजार फीट है। ढोलकल की पहाड़ी पर स्थित इस ऐतिहासिक प्रतिमा के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचने लगे थे। मीडिया ने इसे छत्तीसगढ़ के बेहतरीन पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करने सरकार को मजबूर किया। प्रतिमा गायब होने के बाद उसकी तलाश के लिए जिस तरह प्रशासन और पुलिस ने पूरी मेहनत झोंकी, इसका थोड़ा सा भी अंश पहले इस प्रतिमा को सहेजने के लिए दिखाया होता तो शायद प्रतिमा आज मौजूद होती। इस पूरे घटनाक्रम में नक्सली हाथ होने की पुष्टि पुलिस कर रही है, लेकिन बात लोगों के गले नहीं उतर रही है।


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