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भाजपा और मीडिया का असली नारी विरोधी चेहरा

शनिवार को इंडिया टुडे समूह के आज तक चैनल पर एक बहस में भाजपा प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र राजपूत की दिवंगत मां के लिए अपशब्द कहे और एंकर द्वारा टोके जाने के बावजूद अपशब्दों का सिलसिला जारी रखा

भाजपा और मीडिया का असली नारी विरोधी चेहरा
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शनिवार को इंडिया टुडे समूह के आज तक चैनल पर एक बहस में भाजपा प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र राजपूत की दिवंगत मां के लिए अपशब्द कहे और एंकर द्वारा टोके जाने के बावजूद अपशब्दों का सिलसिला जारी रखा।

दरअसल ऑपरेशन सिंदूर के जुड़े सवालों और कुछ विवादित मुद्दों को लेकर चैनल पर बहस चल रही थी, जिसमें श्री राजपूत अपनी बात रख रहे थे, इसी दौरान भाजपा प्रवक्ता ने पहले तो उनके पिता के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया और उसके बाद उनकी मां को ऐसे अपशब्द कहे, जिन्हें यहां लिखा नहीं जा सकता। हालांकि बहस संचालित कर रहे एंकर ने भाजपा प्रवक्ता की इस हरकत पर फौरन ऐतराज जताया और अपशब्दों के लिए माफी भी मांग ली, लेकिन उसके बाद एंकर ने कहा कि प्रेम शुक्ला और सुरेन्द्र राजपूत जी आप लोग क्या कर रहे हैं। जबकि सुरेन्द्र राजपूत केवल अपना पक्ष रख रहे थे और उनकी भाषा भले तल्ख हो, लेकिन उनमें किसी के निजी जीवन पर टिप्पणी या माता-पिता के लिए अपशब्द नहीं थे। फिर भी आज तक के एंकर ने दोनों प्रवक्ताओं को एक पलड़े पर रख दिया। एंकर की यह दखलंदाजी किसी नजरिए से मासूम नहीं कही जा सकती। यहां गलत को गलत और सही को सही कहे जाने की जरूरत थी, लेकिन अब मीडिया के ऐसे धड़े में इस नैतिकता के लिए कोई जगह ही नहीं बची है।

देश के समाचार चैनलों पर बहस का स्तर इतना गिर चुका है कि अब शायद पूरे परिवार के साथ खबरें नहीं देखी जा सकती, विमर्श नहीं सुने जा सकते। फिल्मों, धारावाहिकों, वेब सीरिज आदि में पहले से भाषा, दृश्यों आदि को लेकर अस्वीकरण दिया जाता है। अब क्या यही सिलसिला समाचार चैनलों पर भी शुरु हो जाएगा, यह चैनल मालिकान को सोचना होगा। दरअसल पहली बार नहीं है कि जब समाचार चैनल पर किसी ने अपशब्द का इस्तेमाल किया, कुछेक प्रकरण अतीत में भी हुए हैं। लेकिन तब विरोध की दो-चार आवाज़ों के अलावा कोई सख्त कार्रवाई न होने के कारण अपनी जुबान पर नियंत्रण न रखने वालों को और शह मिल गई। भाजपा के लिए ऐसे प्रवक्ता अक्सर फायदेमंद साबित होते हैं क्योंकि बदनामी में भी उसे नाम दिखाई देता है। वहीं चैनल मालिकान के लिए टीआरपी और मुनाफा ही पत्रकारिता का अंतिम सत्य बन चुका है।

लिहाजा वे भी बहस के नाम पर निम्न स्तरीय विमर्शों को बढ़ावा देते हैं। इन चैनलों के एंकर जिन्होंने कभी किसी मकसद से पत्रकारिता की डिग्री ली होगी, वे भी शायद पूरी तरह पथभ्रष्ट हो चुके हैं। अब वही एंकर सबसे सफल माना जाता है, जिसके कार्यक्रम में सबसे अधिक झगड़ा हो और मारपीट तक नौबत आ जाए, तो बात ही क्या है। हाल ही में एक एंकर ने तो खुद अपनी कुर्सी से उठकर कांग्रेस नेता को धमकाया था कि वह अपनी बात वापस ले। तुम बदतमीज हो, अपनी हद में रहो, अरे जाओ हमें मत सिखाओ, ऐसी शब्दावली तो अब इतनी आम हो चुकी है कि दर्शकों को शायद इसमें कुछ गलत ही नहीं दिखता।

लेकिन अब दर्शकों को भी सोचना होगा कि आखिर जिस कार्यक्रम को वे ज्वलंत मुद्दों को समझने या अपनी राय विकसित करने के लिए देख रहे हैं, उनसे उन्हें क्या हासिल हो रहा है। कांग्रेस या भाजपा विरोधी खेमे के बाकी दलों को भी सोचना होगा कि वे समाचार चैनलों पर आखिर अपना पक्ष रखने जा ही क्यों रहे हैं, जबकि वहां उन्हें अकेले घेरकर प्रायोजित तरीके से अपमानित किया जाता है। विपक्ष को अपनी बात रखनी है तो सीधे जनता के बीच जाए और सोशल मीडिया के मंच का इस्तेमाल करे। जिस दिन जहर फैलाने वाले तमाम चैनलों का सामूहिक बहिष्कार हो जाएगा, उस दिन से इनकी मुनाफाखोरी भी रुकेगी और तब शायद पत्रकारिता के लिए कोई जगह बन पाएगी।

इस घटना से स्वाभाविक तौर से आहत सुरेन्द्र राजपूत ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पोस्ट लिखा कि-मां तो मां है सबकी एक जैसी है वो चाहे कांग्रेस वालों की हो भाजपा वालो की हो मेरी मां हो या प्रेम शुक्ला की मां हो या फिर भारत मां हो।

मेरी मरी हुई मां को गाली देकर भाजपा ने अपनी वैचारिक दरिद्रता दिखा दी है। इस घटना की वीडियो क्लिप भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई और कांग्रेस के साथ-साथ, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, आम आदमी पार्टी, शिवसेना तमाम दलों के नेताओं ने प्रेम शुक्ला के कथन की कड़ी आलोचना की और साथ ही सवाल उठाए कि क्या भाजपा इसी तरह नारी शक्ति का अभिनंदन करती है।

अखिलेश यादव ने लिखा कि भाजपा से जनता को नैतिक-धर्म, पारिवारिक-आदर्श, सामाजिक आचरण और भाषिक मर्यादा की रत्ती भर भी उम्मीद नहीं बची है। भाजपा के दिन पूरे हुए। वहीं शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि प्रेम शुक्ला उन पर भी इसी तरह की अभद्र भाषा के साथ टिप्पणी कर चुके हैं। राष्ट्रीय जनता दल ने लिखा कि ये भाजपाई हमेशा से महिला विरोधी रहे हैं, इसलिए तो बिहार में महिला विरोधी व्यक्ति को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा रखा है। देश और बिहार की नारी शक्ति, महिला विरोधी भाजपा और उसके सहयोगी को माफ नहीं करेंगी। वहीं आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा कि आख़िर ये कौन सी भाषा है? अत्यंत पीड़ादायक सुरेन्द्र राजपूत जी की मां जो अब इस दुनिया में नहीं हैं उनको भाजपा प्रवक्ता द्वारा गाली देना ये साबित करता है कि भाजपा के लोगों के मन में न तो बेटियों के लिए इज्जत है, न किसी की मां के लिए।

हैरानी की बात यह है कि भाजपा ने इस तरह के बयान को न गलत बताया न प्रेम शुक्ला पर किसी किस्म की कार्रवाई की बात की। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक न भाजपा आलाकमान, न किसी अन्य भाजपा नेता या नेत्री का कोई बयान आया है, जिसमें इस घटना की निंदा हुई है। जबकि एनडीए से उत्तीर्ण हुई महिला कैडेट्स के लिए नारी तू नारायणी जैसे ट्वीट भाजपा ने किए। साथ ही शनिवार को अहिल्या बाई होल्कर की 3 सौवीं जयंती के कार्यक्रम में नारी शक्ति का गुणगान करते प्रधानमंत्री की बातें प्रसारित हुईं। ऑपरेशन सिंदूर में भी नरेन्द्र मोदी बार-बार नारी अस्मिता और सम्मान की बात कर रहे हैं। अब प्रेम शुक्ला पर किसी कार्रवाई का होना या न होना, उससे जाहिर हो जाएगा कि भाजपा का असली चाल, चरित्र, चेहरा क्या है।


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