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उपभोक्ता न्यायालय में सुनवाई स्थगित करने का आग्रह करने पर चुकानी पड़ सकती है कीमत

केंद्र सरकार ने जिला, राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोगों को एक महीने से अधिक समय के लिए स्थगन नहीं देने और उपभोक्ता शिकायतों के निपटारे में तेजी लाने के लिए कहा है

उपभोक्ता न्यायालय में सुनवाई स्थगित करने का आग्रह करने पर चुकानी पड़ सकती है कीमत
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नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने जिला, राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोगों को एक महीने से अधिक समय के लिए स्थगन नहीं देने और उपभोक्ता शिकायतों के निपटारे में तेजी लाने के लिए कहा है। उपभोक्ता कार्य विभाग (डीओसीए) ने उपभोक्ता शिकायतों का जल्द निपटान सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और जिला आयोगों के रजिस्ट्रारों और प्रमुखों को पत्र लिखकर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत प्रदान की गई समयसीमा का पालन सुनिश्चित करने के लिए एक महीने से अधिक के लिए स्थगन आदेश नहीं देने को कहा है। स्थगन अनुरोधों के कारण शिकायतों के समाधान में दो महीने से अधिक की देरी होने पर आयोग दोनों पार्टियों से इसकी लागत वसूलने पर विचार कर सकता है।

डीओसीए सचिव रोहित कुमार सिंह ने अपने पत्र में उपभोक्ताओं को सस्ता, परेशानी मुक्त और जल्द न्याय दिलाने पर जोर दिया है। इस पत्र में कहा गया है कि बार-बार और लंबे समय तक स्थगन न केवल उपभोक्ता को उसके सुनने और उसके निवारण के अधिकार से वंचित करता है, बल्कि यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की भावना को भी खत्म कर देता है।

उपभोक्ता आयोगों से अनुरोध किया गया है कि वे सुनिश्चित करें कि किसी भी परिस्थिति में लंबी अवधि के लिए स्थगन प्रदान नहीं किया जाए। इसके अलावा, किसी भी पक्ष द्वारा स्थगन का दो से अधिक बार आग्रह किये जाने पर, उपभोक्ता आयोग संबंधित पार्टियों से लागत वसूलने पर विचार कर सकता है।

अधिनियम की धारा 38(7) के तहत शिकायत स्वीकार करने की प्रक्रिया पर उपभोक्ता आयोगों का ध्यान आकर्षित करते हुए पत्र में जोर दिया गया है कि प्रत्येक शिकायत का यथासंभव शीघ्र निपटारा किया जाना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जहां शिकायत के लिए वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती है, वहां विरोधी पक्ष द्वारा नोटिस प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर और यदि वस्तुओं के विश्लेषण या परीक्षण की आवश्यकता होती है तो पांच महीने के भीतर शिकायत पर निर्णय लेने का प्रयास किया जाएगा।

इसके अलावा, अधिनियम यह भी कहता कि कोई भी स्थगन आमतौर पर उपभोक्ता आयोगों द्वारा तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि पर्याप्त कारण नहीं दिखाया गया हो और स्थगन के कारणों को लिखित रूप में दर्ज नहीं किया गया हो। आयोगों को स्थगन से होने वाली लागतों के बारे में आदेश देने का भी अधिकार है।

विभाग ने साथ ही आयोगों से अनुरोध किया है कि वे ई-दाखिल पोर्टल के माध्यम से उपभोक्ताओं को अपनी शिकायतों को दर्ज करने के लिए प्रोत्साहित करें।


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