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भारत में रोहिंग्याओं की उपस्थिति भारत के लिए एक बड़ा संकट

हाल ही में एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट आई है जिसके अनुसार रोहिंग्याओ ने रखाइन प्रान्त, बर्मा में  99 से ज्यादा हिन्दुओ का कत्लेआम किया था

भारत में रोहिंग्याओं की उपस्थिति भारत के लिए एक बड़ा संकट
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नई दिल्ली। हाल ही में एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट आई है जिसके अनुसार रोहिंग्याओ ने रखाइन प्रान्त, बर्मा में 99 से ज्यादा हिन्दुओ का कत्लेआम किया थाl ये रिपोर्ट एक छोटा सा नमूना भर है इस बात का कि रोहिंग्या शरणार्थियों के रूप में कितना बड़ा खतरा भारत में पल रहा है।

इस खतरे को समझने के लिए गहराई से हमें रोहिंग्या संकट और उससे जुड़े घटनाक्रम को देखना चाहिए। हिन्दू रखाइन क्षेत्र में अल्पसंख्यक हैं। बौद्ध बहुल म्यांमार का ये प्रान्त रोहिंग्या मुस्लिम बहुल है। ये कोई एक घटनाक्रम नहीं है जिसमें रोहिंग्याओ ने हिन्दुओ का कत्लेआम किया हो| 2016 से अब तक ये श्रृंखलाबद्ध तरीके से किये गए कत्लेआम हैं। ये सारे कत्लेआम “अराकान रोहिंग्या सैल्वेसन आर्मी” के द्वारा किये गए हैं।

इस संगठन का पुराना नाम “हराका अल यकीन” था जो वर्तमान में जेहादी आतंक की राह पर है| इसकी स्थापना “अताउल्ला अबू अमर जुनूनी” ने की थी जो रोहिंग्या मुस्लिम है परन्तु उसका जन्म कराची पकिस्तान में हुआ था| इस संगठन को पकिस्तान ही पोषित कर रहा है| पकिस्तान और रोहिंग्याओं का सम्बन्ध बहुत पुराना है।

रोहिंग्याओ के बारे में कहा जाता है की 11 वीं या 12 वीं शादी में अरब से मुस्लिम सौदागर स्थानीय महिलाओं से शादी करके यहाँ बस गए| ये म्यांमार में इस्लाम की पहली दस्तक थी| बाद में ब्रिटिश कोलोनियल राज़ में भारत के अन्य हिस्सों से मुस्लिम यहाँ आकार बसने लगे। द्वितीय विश्व युद्ध में बौद्ध बहुल म्यांमार में जापानी प्रभाव और प्रवेश को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार ने बहुत से हथियार बंद मुस्लिमो को रखाइन प्रान्त में लाकर बसाया |

जिससे स्थानीय बौद्धों के लिए बड़ा संकट पैदा होने लगा| 1942 में रोहिंग्या मुस्लिमो के इन हथियार बंद गुटों ने बड़े स्तर पर म्यांमार के स्थानीय बौद्धों और हिन्दुओ का कत्लेआम किया| इस संघर्ष में कितने लोग हताहत हुए इसका कोई सटीक आंकड़ा नहीं है लेकिन एक लाख से ज्यादा हत्याओं का अनुमान दोनों तरफ से है| रखाइन में जिन्हें हम रोहिंग्या कहते हैं वो असल में विभिन्न स्थानों से आये मुस्लिमो का समाज है| 1942 के बाद से विभिन्न क्षेत्रो से मुस्लिम इस क्षेत्र में बस रहे थे| 1942 के संघर्ष के बाद बांग्लादेश से मुस्लिमो का इस क्षेत्र में बड़े स्तर पर पलायन हुआ।

इसके पीछे रोहिंग्या मुस्लिमो का उद्देश्य वहां स्वयं को बहुसंख्यक बनाना था| 1947 में म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिमो ने रखाइन प्रान्त को पूर्वी पकिस्तान से जोड़ने के लिए भी सशत्र संघर्ष किया था जो 1960 तक चला| इसके बाद 1980 में “रोहिंग्या सॉलिडेरिटी समूह” बना जो एक मुस्लिम देश की मांग को लेकर राजनैतिक रूप से सक्रिय रहा| उस ही समय “अराकान रोहिंग्या ओर्गनाइजेसन” नाम का जेहादी गुट भी म्यांमार में आम जन के हत्याकांड और सेना पर सीधे हमलो में सक्रिय था| बाद में “रोहिंग्या सॉलिडेरिटी समूह” और “अराकान रोहिंग्या ओर्गनाइजेसन” ने मिलकर “रोहिंग्या नेशनल आर्मी” नाम का आतंकी समूह बनाया जिसने बड़े स्तर पर म्यांमार की सेना पर सीधे हमले किये| रखाइन में मुस्लिमो की अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए 1978 में म्यांमार सरकार ने अभियान प्रारंभ किया और बहुत से बंगलादेशी घुसपैठियों को बांग्लादेश वापिस भेज दिया| जिन्हें स्वीकार करने से बंगला देश मना करता रहा है और उन्हें अपना निवासी मानने से भी इनकार करता रहा है|

ये कुछ एसा ही संकट हैं जैसा भारत में बंगलादेशी अवैध घुसपैठियों का संकट हैं| भारत में भी इस अवैध घुसपैठ को स्थानीय मुस्लिमो का समर्थन है तो म्यांमार में भी रखाइन के मुस्लिमो ने अवैध घुसपैठ को समर्थन किया और बढाया| आज रोहिंग्या रखाइन को एक मुस्लिम देश के रूप में अलग मान्यता के लिए जेहादी आतंक के मार्ग पर हैं| 2008 के बाद से म्यांमार के मूल निवासी बौद्धों के मुखर विरोध के बाद से बड़ी संख्यां में रोहिंग्या भारत और बांग्लादेश में आये हैं भारत में कुल र्हिंग्याओ की संख्या का कोई सही आंकड़ा नहीं है| पश्चिमी बंगाल, कश्मीर, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल और उत्तर प्रदेश के विभिन्न मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में इनकी उपस्तिथि है| भारत सरकार के आंकड़े के अनुसार भारत में रोहिंग्याओ की संख्या 40000 है परन्तु ये इससे कहीं ज्यादा हो सकती है|

रोहिंगयो का पुराना इतिहास प्रथक्तावादी और अराजक रहा है| म्यांमार में रोहिंग्या संकट के मुल में रोहिंग्याओ के द्वारा बाहर से मुस्लिमो की अवैध धुसपैठ करवाकर जनसँख्या संतुलन को बिगाड़ना, उनके आपराधिक कृत्य और अलग इस्लामिक देश की मांग है| म्यांमार में नशे की खेती, अवैध हथियारों की तस्करी और मानव तस्करी जैसे अपराधो में ये समाज लिप्त रहा है|

“अराकान रोहिंग्या सल्वेसन आर्मी” पाक पोषित दुर्दांत आतंकी संगठन है| और भारत में रोहिंग्याओ की उपस्तिथि इस संगठन के पैर भारत में भी जमायेगी| म्यांमार के सभी रोहिंग्या आतंकी गुटों को भी पकिस्तान ने ही पोषित किया और खड़ा किया है| भारत में भी पकिस्तान आतंकियों को पूर्ण समर्थन करता रहा है और एक छद्म युद्ध उनके द्वारा भारत से लड़ रहा है| पकिस्तान और ISIS जैसे आतंकी समूह रोहिंग्याओ की भारत में उपस्थिति का पूरा फायदा उठा सकते हैं| जो राजनैतिक दल रोहिंग्या मसले को मानवीय दृष्टीकोण से देखने की बात करते हैं वो बस मुस्लिम तुस्टीकरण की राजनीती कर रहें हैं| भाजपा की केंद्र सरकार भी इस विषय पर अभी तक खाली बयानों के अलावा कोई कड़ा कदम नहीं उठा पायी है|

भारत जिसके सामने जनसँख्या और आतंक का संकट पहले से ही विकराल रूप लिए हुए है| इस परिस्तिथि में भारत को इस विषय को मानवीय आधार पर ना देखते हुए एक व्यवहारिक निर्णय लेना चाहोये और अन्य दलों को भी दलगत और तुस्टीकरण की राजनीती से ऊपर उठकर इस विषय को देखना चाहिए| यदि भारत ने रोहिंग्याओ को भारत से बाहर ना किया तो इनकी प्रथकतावादी और जेहादी सोच भारत के लिए भविष्य में एक बड़ा संकट होगी|


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