फटा पोस्टर, निकला मोदी!
दिल्ली में लुटियन की सड़कें पोस्टरों से पटी पड़ी है। विदेशी अतिथियों के लिए तय मार्ग एयरपोर्ट से शुरू और राजघाट पर जाकर समाप्त होता है। बीच में आता है लुटियन, बाक़ी सड़कें बकवास

- पुष्परंजन
शिवपूजन सहाय ने 'कहानी का प्लॉट' में लिखा था, 'अमीरी की कब्र पर पनपी ग़रीबी बड़ी ज़हरीली होती है।' लेकिन जी-20 के आयोजन से पहले ग़रीब बस्तियां जिस बेरहमी से उजाड़ी गईं, वो ग़रीबी की कब्र पर अमीरी की घास है, जो उससे कई गुणा अधिक ज़हरीली है। आप उजड़े हुए लोगों का रूदन सुनिये, दिल कांप जाता है।
दिल्ली में लुटियन की सड़कें पोस्टरों से पटी पड़ी है। विदेशी अतिथियों के लिए तय मार्ग एयरपोर्ट से शुरू और राजघाट पर जाकर समाप्त होता है। बीच में आता है लुटियन, बाक़ी सड़कें बकवास। भलस्वा, गाजीपुर, ओखला के कूड़ा पहाड़, पूर्वी-पश्चिमी दिल्ली की मलिन बस्तियों, बजबजाते नालों को मत देखिये। यह देखिये कि भक्त कैसे लहालोट हैं। मोदी विश्वगुरू हैं। महान विचारक। बुद्ध, महावीर, अरस्तु, प्लुटो, माओ, मार्क्स, स्वामी विवेकानंद, टाम बटलर से भी बड़े। मोदी इस धरती के महानायक के रूप में कुछ इस तरह प्रस्तुत हैं, कि जी-20 छोटा पड़ गया।
आख़िरी बार विश्व पुस्तक मेले में मैं प्रगति मैदान गया था। यह लोकेशन तब मोहनजोदड़ो हडप्पा बना हुआ था। देखना है, तो अब जाकर देखिये भारत मंडपम के जलवे। न भूतो न भविष्यति। जब से यह देश जन्मा, इतना दिव्य और भव्य आयोजन किसी नेता ने नहीं किया था। जो दिवंगत हो गये, और जो वैकुंठधाम प्रस्थान करने के वास्ते प्रतीक्षारत पूर्व प्रधानमंत्री हैं, उन्हें भी इसका अफसोस होगा कि इस तरह का विराट समारोह उन्होंने कुर्सी पर रहते क्यों नहीं किया? दुनिया का सबसे बड़ा इन्डोर हॉल, समिट के लिए विदेश से आया झूमर, ग्राउंड ज़ीरो पर खड़े रिपोर्टर दीदे फाड़कर देख रहे हैं, लिख रहे हैं, कमेंट कर रहे हैं।
मदारी का तमाशा देखना हो तो उन बयानों पर ग़ौर कीजिए, जिसमें दावा ठोका जा रहा है कि दिल्ली को सुंदर हमने बनाया। केजरीवाल सरकार में मंत्री सौरभ भारद्वाज ने खम ठोका कि हमने दिल्ली को ब्यूटीफु ल बनाया। दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने पलटवार करते हुए कहते हैं कि सौंदर्यीकरण का 95 प्रतिशत केंद्र सरकार के फं ड से हुआ है। एनडीएमसी को केंद्र सरकार फं ड उपलब्ध कराती है। आईटीओ शहीदी पार्क, राजघाट पर सौंदर्यीकरण, रिवरसाइड बेड, धौला कुआं से एयरपोर्ट तक सौंदर्यीकरण, यह सब केंद्र सरकार के फंड से एलजी की देखरेख में की गई है। बीरेंद्र सचदेवा ने बयान दिया कि केंद्र सरकार ने अब तक जी-20 पर 4,064 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जबकि केजरीवाल सरकार ने केवल 51 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। मगर, दिल्ली को सुंदर बनाने का दावा करने वाले नेताओं-नौकरशाहों से कोई पूछे कि पूर्वी-पश्चिमी और उत्तरी दिल्ली को बदसूरत बना रहने देने की ज़िम्मेदारी किसकी है? सवाल पूछियेगा, वो बगलें झांकने लगेंगे।
सचदेवा के बयानों से एक बात समझ में आती है कि केवल दिल्ली को संवारने पर 4,064 करोड़ स्वाहा हुए हैं। देशभर में जी-20 के नाम पर जितने आयोजन हुए, उसपर केंद्र सरकार ने कितने ख़र्च किये, यह जानना दिलचस्प होगा। हमें उस समय का इंतज़ार रहेगा, जब सीएजी जैसी संस्था इसका ब्योरा देगी कि जी-20 के नाम पर टैक्स पेयर्स के पैसे का कितनी बेरहमी से दुरूपयोग हुआ है। जी-20 के आयोजन पर 10 करोड़ डॉलर से अधिक का खर्च आने का अनुमान है। देश के 50 से अधिक शहरों में जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले लगभग 200 बैठकों का आयोजन हो चुका है। इनमें योग, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा मोदी मन भावे वाले स्वादिस्ट भारतीय भोजन का मेन्यू भी शामिल रहा है।
पिछले एक साल से देश का कोई कोना नहीं छूटा जहां जी-20 का डंका नहीं बजाया गया। जी-20 के जुनून में अखबारों में विज्ञापन, सड़कों पर पोस्टर-बैनर, विशालकाय एलईडी स्क्रीन से लेकर ई-रिक्शा तक को नहीं छोड़ा। इसके सिंबल को ध्यान से देखिये, खिलते हुए कमल पर टिका संपूर्ण ब्रह्मांड। मित्रों, कमल किस पार्टी का चुनाव चिह्न है? इवेंट मैनेजरों ने जी-20 को भी चुनावी बना दिया। पीएम मोदी जी-20 के पोस्टर ब्वाय बने हुए हैं, उनके विराट स्वरूप को उकेर कर पूरी दुनिया को बताया जा रहा है कि पीएम मोदी की वजह से भारत की पहचान विश्व मंच पर है।
जी-20 का अगला सम्मेलन 2024 में ब्राज़ील में, और 2025 में दक्षिण अफ्र ीका में होना तय है। क्या वहां भी दिल्ली जैसा दिखावा होगा? शिवपूजन सहाय ने 'कहानी का प्लॉट' में लिखा था, 'अमीरी की कब्र पर पनपी ग़रीबी बड़ी ज़हरीली होती है।' लेकिन जी-20 के आयोजन से पहले ग़रीब बस्तियां जिस बेरहमी से उजाड़ी गइंर् वो ग़रीबी की कब्र पर अमीरी की घास है, जो उससे कई गुणा अधिक ज़हरीली है। आप उजड़े हुए लोगों का रूदन सुनिये, दिल कांप जाता है। फेंके हुए बर्तन और गूदडी़ समेटती बेसहारा औरतें बद्दुआएं दे रही हैं, लेकिन बेहिस शासन पर कोई असर नहीं।
जुलाई 2023 का अंतिम महीना था, जब आवास और शहरी मामलों के कनिष्ठ मंत्री कौशल किशोर ने संसद को बताया कि 1 अप्रैल से 27 जुलाई के बीच दिल्ली में बस्तियां ढहाने के 49 अभियान चलाये गये, जिसमें 230 एकड़ सरकारी जमीन को वापिस लिया गया है। मंत्री कौशल किशोर ने संसद में सफेद झूठ बोला कि जी-20 के लिए एक भी मकान नहीं तोड़ा गया है। आप इन इलाक़ों में जाइये, तो कहानी कुछ और है।
दिल्ली के भैंरो मार्ग स्थित जनता कैंप में जिनके मकान टूटे, उन्हें झांसा दिया गया था कि जी-20 शिखर समारोह से गरीबों के हक में कुछ होगा, यहां से उजड़े बेघरों को पीएम मोदी मकान देंगे। भैंरो मार्ग जनता कैंप के भूतपूर्व हो चुके निवासी मोहम्मद शादाब ने एक समाचार एजेंसी से कहा कि जो कुछ हो रहा है, वह तो बिल्कुल उलटा है। बड़े लोग आएंगे, हमारी कब्र पर बैठेंगे, और खाएंगे। उजड़ चुकी बस्तियां पीएम मोदी के गगनचुंबी कटआउट्स, नियोन साइन और एलईडी लाइट्स से गुलजार हैं। कोई कह नहीं सकता कि कुछ हफ्ते पहले यहां टाट में पैबंद लगाकर लोग अपना ज़िस्मो-जान छिपाते थे। यह है मोदी का भारतवर्ष, जब वो 'इंडिया-इंडिया' बघारते थे, उनके दिये नारे याद कीजिए-'जहां झुग्गी-वहां मकान'!
दिल्ली शहर का वीवीआईपी एरिया इस समय भिखारी मुक्त है। महानगर के मुख्य स्थानों से भिखारियों को हटा दिया गया है। दिल्ली में 20 हज़ार 719 भिखारी दज़र् हैं। मगर, यह पता नहीं चल पाया कि भिखारी गये कहां? पुलिस भी नहीं बताती कि भिखारी कहां तड़ीपार किये हैं? आपको ट्रंप की अहमदाबाद विजिट याद करनी पड़ेगी। उसी शैली में दिल्ली शहर की कई झुग्गी-झोपड़ियों को छिपाने के लिए उनके किनारे कपड़े लगाकर उन्हें ढंक दिया गया है। ग़रीबी छिपाने का गुज़रात मॉडल जी-20 में भी काम आ गया।
लगभग एक हफ्ते से कामकाजी लोग अपने घरों पर दो से चार घंटे लेट पहुंच रहे हैं। सप्लाई वाली ट्रकों का दिल्ली सीमा में प्रवेश नहीं के बराबर है। ज़रूरत के सामान औने-पौने भाव में मिल रहे हैं। धूल-मिठ्ठी, जाम, नाकेबंदी से परेशान लोग सदरे इंतज़ामिया से 'पारिवारिक संबंध' स्थापित करें भी, तो बला से। मोदी जी ने बोल तो दिया है-'रूकावट के लिए खेद है।' धरती के भगवान ने इतना कह दिया, अमृत वाणी समझिये इसे। खाये-पीये-अघाये लोग एक हफ्ते की पिकनिक मनाने दिल्ली से बाहर निकल गये। जो दिल्ली में किन्हीं वजहों से हैं, लाख तकलीफों के बावज़ूद जी-20 को कुदरत का करिश्मा और मोदी का प्रताप मान रहे हैं। जी-20 के बहाने देश में अंगूठा छाप से लेकर उच्च शिक्षित लोगों तक को रोबोट बनाया जा सकता है, यह मोदी ने मुमकिन कर दिखाया है।
15-16 नवंबर 2022 को इंडोनेशिया के बाली में जी-20 की शिखर बैठक हुई थी। तब के घोषणापत्र को इंटरनेट से डाउनलोड करके पढ़ियेगा। कोविड के बाद जिस तरह से विश्वव्यापी ग़रीबी बढ़ी है, उसपर साझा चिंता व्यक्त की गई थी। घोषणापत्र में इसका अहद किया गया था कि हम सब मिलकर ग़रीबी को मिटायेंगे। इसका हस्ताक्षर करने वालों में भारत के माननीय प्रधानमंत्री मोदी भी थे। प्रश्न यह है कि क्या साल भर ग़रीबी मिटाने का लक्ष्य प्राप्त हो गया? हो गया, तभी तो जी-20 के आयोजन में भारत ने 10 करोड़ डॉलर से अधिक फूं क डाले। माले मुफ्त, दिले बेरहम। बाली घोषणापत्र के सारे 52 बिंदुओं पर नज़र दौड़ा लीजिए, कोविड और यूक्रेन युद्ध के बाद विश्व की भरभराती अर्थव्यवस्था को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की गई थी। फ़िर कोई अतिथि देश का नेता मोदी से क्यों नहीं पूछता कि शान दिखाने के वास्ते 10 करोड़ डॉलर क्यों उड़ा डाले?
हम यह भूल जाते हैं कि एशिया में आर्थिक संकट पैदा होने के कारण जी-20 अस्तित्व में आया था। जी-20 की पहली बैठक 2008 में वाशिंगटन डीसी में हुई थी। दुनिया के समृद्ध देशों के वित्त मंत्रियों व रिज़र्व बैंक के गर्वनर तब जी-20 की बैठकों में शिरकत करते थे। बाद के वर्षों में शासन प्रमुखों की भागीदारी होने लगी। 2011 के बाद हर साल शिखर बैठक बारी-बारी से सदस्य देशों की अध्यक्षता में होने लगी। 1999 में स्थापना वर्ष के बाद के कालक्रमों को ठीक से देखिये कि जी-20 शिखर बैठकों पर किस देश ने कितना ख़र्च किया। भारत ने सबकी लकीर छोटी कर दी है। हम पांच ट्रिलियन डॉलर के संकल्प को पूरा करें, न करें, अतिथि देशों को यह बताना है कि हम शाहखर्च थे, और रहेंगे।
जी-20 दो ट्रैक में विभाजित है। फाइनांस ट्रैक और शेरपा ट्रैक। शेरपा ट्रैक का नेतृत्व शासन प्रमुखों के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। यह कृषि, भ्रष्टाचारविरोधी, जलवायु, डिजिटल अर्थव्यवस्था, शिक्षा, रोजगार, ऊर्जा, पर्यावरण, स्वास्थ्य, पर्यटन, व्यापार और निवेश जैसे सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित है। फाइनांस ट्रैक का नेतृत्व वित्त मंत्री और केंद्रीय बैंक गवर्नर करते हैं, जो राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों के निस्बतन है। फाइनांस ट्रैक से संबंधित कार्य समूह वैश्विक अर्थव्यवस्था, अधोसंरचना, वित्तीय विनियमन, वित्तीय ढांचा, अंतरराष्ट्रीय कराधान पर केंद्रित रहते हैं। सवाल यह है कि भारत फाइनांस ट्रैक और शेरपा ट्रैक की अवधारणाओं को आगे बढ़ाने में कितना सफ ल रहा है? उत्तर पूछिये तो अधिकारी कुछ गोल-गोल धुमाने लगते हैं, जिससे लगता है कि कोविड और यूक्रेन युद्ध के बाद हम अपनी अर्थव्यवस्था को सही से संभालने में चीन के मुक़ाबले अब भी काफी पीछे चल रहे हैं।
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