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विपक्ष ने कराया अपनी ताकत का अहसास

24 जून से प्रारंभ हुए संसद के विशेष सत्र को छह दिन बीत गए हैं और इन छह दिनों में ही तस्वीर साफ हो गई है कि इस बार लोकतंत्र में एक अकेला सब पर भारी जैसी जुमलेबाजी नहीं चलेगी

विपक्ष ने कराया अपनी ताकत का अहसास
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24 जून से प्रारंभ हुए संसद के विशेष सत्र को छह दिन बीत गए हैं और इन छह दिनों में ही तस्वीर साफ हो गई है कि इस बार लोकतंत्र में एक अकेला सब पर भारी जैसी जुमलेबाजी नहीं चलेगी। अब सदन के भीतर सत्ता पक्ष की मनमानी नहीं चलेगी। अब सत्ता पक्ष के सांसदों के शोर में विपक्ष की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकेगा। अब संसद टीवी का कैमरा कुछ खास लोगों पर ही फोकस नहीं करेगा, बल्कि विपक्ष के नेताओं को उसे दिखाना होगा। अब जितनी बार विपक्षी सांसदों के बोलते वक्त माइक बंद होगा, उतनी बार देश में इस पर बहस होगी कि आखिर संसद के भीतर माइक चालू या बंद करने की शक्ति किन हाथों में है।

दरअसल मौजूदा संसद सत्र के छठवें दिन लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने जोरदार तरीके से अपनी बात रखी। उनके भाषणों में जिन मुद्दों को उठाया गया, उनमें जनता की तकलीफें और पीड़ा झलक रही थी। लेकिन दोनों ही सदनों में भाजपा विपक्षी नेताओं की बातों से असहज नजर आई।

सोमवार को लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा होनी थी। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने सदन के भीतर नीट पर चर्चा की मांग उठाई, यह मांग वे पहले भी उठा चुके हैं। श्री गांधी का कहना है कि नीट पर चर्चा से 24 लाख छात्रों तक वे संदेश देना चाहते हैं कि इस सदन को छात्रों की पीड़ा का अहसास है। लेकिन भाजपा इस मामले में उसी तरह चर्चा से बचती हुई दिख रही है, जैसे मणिपुर के मामले में। नीट पर भाजपा ने चर्चा का मौका नहीं दिया तो राहुल गांधी ने भी भाजपा को हिंदुत्व के नाम पर फैलाई जा रही हिंसा से लेकर अग्निवीर और भ्रष्टाचार जैसे तमाम मुद्दों पर इस तरह घेर लिया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से लेकर राजनाथ सिंह और रविशंकर प्रसाद तक सभी अपना बचाव करते दिखे।

पहली बार ऐसा हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी को एक नहीं दो-दो बार राहुल की बात पर बोलने के लिए उठना पड़ा और उसके बाद भी वो अपने बचाव में ऐसा कुछ नहीं बोल पाए, जिससे राहुल को चुप करा सकें। अपने भाषण की शुरुआत ही राहुल गांधी ने जय संविधान से की, फिर अपने ऊपर किए गए शाब्दिक हमलों, ईडी की जांच से लेकर अयोध्या में इंडिया गठबंधन की जीत और मणिपुर, नीट, जम्मू-कश्मीर सब पर भाजपा को जबरदस्त तरीके से घेरा। पिछली बार संसद में राहुल गांधी ने अडानी और मोदी की तस्वीर दिखाकर भाजपा को हिला दिया था और इस बार जब राहुल ने शिव जी तस्वीर दिखाई तो भाजपा समझ ही नहीं पाई कि अब इस दांव का जवाब कैसे दे। राहुल ने अपने भाषण में कुरान का भी जिक्र किया, गुरुनानक की अभय मुद्रा दिखाई और ईसा मसीह, भगवान बुद्ध और भगवान महावीर का संदेश भी साझा किया कि सारे धर्म डरो मत डराओ मत का संदेश देते हैं और कांग्रेस भी इसी अभय मुद्रा का निशान लेकर चलती है। भाजपा ने हिंदू शब्द पर राहुल को घेरने की कोशिश की, लेकिन राहुल ने साफ कह दिया कि मोदी, भाजपा और आरएसएस का मतलब हिंदू नहीं है।

राहुल गांधी ने संसद के भीतर इस बात को खास तौर पर रेखांकित किया कि हिंदुत्व के नाम पर भाजपा के शासनकाल में किस तरह नफरत और हिंसा को बढ़ावा दिया जाता है। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह ने इसे समूचे हिंदू समाज के अपमान से जोड़ने की कोशिश की। अमित शाह ने आपातकाल और 84 के दंगों का जिक्र कर कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने की नाकाम कोशिश की, क्योंकि भाजपा के ये दांव अब भोथरे हो चुके हैं। हकीकत तो ये है कि श्री मोदी के तीसरे प्रधानमंत्रित्व काल में भीड़ की हिंसा, अल्पसंख्यकों को निशाने पर लेना और भाजपा का ऐसी घटनाओं पर बचाव करने का सिलसिला जारी ही है।

राहुल गांधी ने अपने भाषण में अयोध्या में भाजपा की हार के कारण से लेकर अग्निवीर योजना की विफलताएं और जांच एजेंसियों के दुरुपयोग तक सब पर जमकर प्रहार किया और भाजपा उनके पूरे भाषण के दौरान सदन के नियमों और संविधान की दुहाई देती दिखाई दी। प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर राहुल गांधी का मखौल उड़ाने की कोशिश की कि मुझे लोकतंत्र ने यह सिखाया है कि मुझे नेता प्रतिपक्ष को गंभीरत से लेना चाहिए। लेकिन उनके इस बचकाने मजाक से भी भाजपा को सहारा नहीं मिल सका। क्योंकि हकीकत यही है कि अब सदन में भाजपा बहुमत में नहीं है। इसलिए अब पहले की तरह मोदी-मोदी के शोर से विपक्ष को चुप नहीं कराया जा सकता। भाजपा को कदम-कदम पर जदयू और तेदेपा का साथ लेने पर मजबूर होना पड़ेगा। और यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिर ये दोनों दल कहां तक भाजपा का साथ देते हैं।

लोकसभा में राहुल गांधी के भाषण की सोमवार को खूब चर्चा रही और उनके बाद जितने भी विपक्षी सांसदों ने भाषण दिए, सभी ने राहुल गांधी के फलसफे की सराहना की। इधर राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गांधी हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे पर संघ का प्रभाव, संघ को लेकर सरदार पटेल की सोच से लेकर श्री मोदी के अहंकारी नारों और भाषणों का जिक्र कर भाजपा को निरूत्तर कर दिया। श्री खड़गे ने साफ-साफ कहा कि आरएसएस एक मनुवादी संस्था है। इसकी विचारधारा देश के लिए खतरनाक है। भारत के संस्थानों पर आरएसएस का कब्जा हो रहा है। इस पर राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बचाव करते दिखे। भाजपा अध्यक्ष द्वारा संघ का बचाव करना स्वाभाविक है। लेकिन यह विचारणीय है कि राज्यसभा सभापति की आसंदी से क्या खुलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का बचाव कहां तक उचित है। श्री खड़गे ने राष्ट्रपति के अभिभाषण से उम्मीदें और उससे मिली निराशा के बारे में अपने विचार रखे, साथ ही यह भी बता दिया कि इस बार के चुनावों में किस तरह जनता ने संविधान को जिताया है और विपक्ष पर भरोसा दिखाया है।

कुल मिलाकर नयी सरकार को संसद के इस पहले ही सत्र में विपक्ष की ताकत का अहसास राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने करा दिया है। अब देखना होगा कि इस सत्र से लेकर अगले सत्र के दरम्यान क्या भाजपा के रवैये में कोई बदलाव आता है या नहीं।


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