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ताजपोशी में कोहिनूर नहीं पहनेंगी नई ब्रिटिश महारानी

ब्रिटेन के नए राजा बनने जा रहे चार्ल्स तृतीय की ताजपोशी के वक्त महारानी के ताज में कोहिनूर हीरा नहीं लगा होगा. ब्रिटिश राजघराने ने यह फैसला किया है.

ताजपोशी में कोहिनूर नहीं पहनेंगी नई ब्रिटिश महारानी
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आने वाली छह मई को जब किंग चार्ल्स तृतीय और उनकी पत्नी कमिला के नए ब्रिटिश राजा और रानी के रूप में ताजपोशी होगी तो शाही परिवार विवादों से दूर रहना चाहता है. यही वजह है कि शाही परिवार ने कमिला के ताज में कोहिनूर हीरे का इस्तेमाल ना करने का फैसला किया है.

समकालीन इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब महारानी के ताज में बदलाव किए जाएंगे और कोहिनूर के बिना उसे पहना जाएगा. हालांकि दिवगंत महारानी के गहनों में से कई इसमें इस्तेमाल किए जाएंगे.

ब्रिटिश महारानी के ताज में कोहिनूर हीरा दशकों से लगा हुआ है. दुनिया के सबसे बड़े और कीमती हीरों में शुमार इस हीरे पर लंबा विवाद है और भारत इसे वापस मांगता रहा है. शाही परिवार नहीं चाहता था कि ताजपोशी के वक्त भारत के साथ किसी तरह का कूटनीतिक विवाद हो.

पर्यावरण के अनुकूल ताज

बकिंगम पैलेस ने कहा है कि महारानी के रूप में कमिला को ‘क्वीन मैरी' का ताज पहनाया जाएगा क्योंकि इसका इस्तेमाल "पर्यावरण के अनुकूल और सक्षमता” के हक में है.

दिवंगत महारानी एलिजाबेथ द्वितीय को श्रद्धांजलि स्वरूप ताज को उनके निजी संग्रह में मौजूद गहनों से सजाया जाएगा. इसमें कलिनन तीन, चार और पांच नामक हीरे इस्तेमाल किए जाएंगे. ये हीरे एलिजाबेथ द्वितीय के कंगनों में जड़े थे. इन्हें दक्षिण अफ्रीका में खोजा गया था और कलिनन डायमंड से लिया गया था.

किंग चार्ल्स तृतीय ताजों का ताज कहे जाने वाले सेंट एडवर्ड्स नाम के ताज को राजतिलक के वक्त ग्रहण करेंगे. इसे उनके सिर के हिसाब से बदला गया है और फिलहाल लंदन टावर में प्रदर्शन के लिए रखा गया है.

इस ताज को सबसे पहले 1661 में किंग चार्ल्स द्वितीय के लिए बनाया गाय था. उससे पहले जो ताज चार्ल्स द्वितीय के पास था वह इंग्लैंड के गृह युद्ध में नष्ट हो गया था. एलिजाबेथ द्वितीय ने भी अपनी ताजपोशी के वक्त यही ताज पहना था. हालांकि अन्य राजा अपने लिए अलग-अलग तरह के ताज बनवाते रहे हैं.

कोहिनूर का इतिहास

कोहिनूर दुनिया का सबसे शुद्ध या सबसे बड़ा हीरा तो नहीं है लेकिन इसे दुनिया के सबसे विवादास्पद हीरों में से एक कहा जाता है. इसके उद्गम को लेकर बहुत तरह के किस्से-कहानियां मशहूर हैं लेकिन बहुत से इतिहासकार इस बात को लेकर सहमत हैं कि इस हीरे को 1739 में ईरानी शासक नादिर शाह से भारतीयों ने छीना था.

उसके बाद युद्धों और लूटपाट के दौरान कोहिनूर के मालिक बदलते रहे और 1846 में जब पंजाब पर अंग्रेजों की जीत हुई तब यह तत्कालीन ब्रिटिश गवर्नर जनरल के पास आ गया. हालांकि तब लॉर्ड डलहौजी ने जिस लाहौर संधि के तहत पंजाब को हासिल किया था, वह पंजाब के महाराजा दलीप सिंह के साथ हुई थी संधि के वक्त था. उस समय दलीप सिंह की आयु मात्र पांच साल थी.

जिन हालात में यह हीरा अंग्रजों के पास गया, उसे लेकर हमेशा विवाद रहा है और भारत इस वापस लौटाने की मांग करता रहा है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने भी इस हीरे पर दावे किए हैं.


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