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मंत्री जी को ही कुछ पता नहीं है

किसी जमाने में कर्ज की अदायगी और प्रतिरक्षा हमारे बजट में खर्च का सबसे बड़ा आइटम

मंत्री जी को ही कुछ पता नहीं है
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- अरविन्द मोहन

हर तरफ से इसी तरह की गड़बड़ी की खबरें आ रही हैं और इस धंधे के लगातार चलाने की बात भी पुष्ट हो रही है लेकिन मंत्री जी ही एकदम अनजान बने बैठे हैं और अभी भी अदालत से निर्देश मिलने का पालन होने की बात करते हैं। अगर अदालत को ही सब कुछ करना है तो आप किस लिए बने हैं। और तय मानिए कि अदालत भी आंख बंद नहीं करने वाली है क्योंकि चालीस से ज्यादा मुकदमे हो चुके हैं और रोज नए सबूतों के साथ परीक्षार्थियों के आरोप सही साबित हो रहे हैं।

किसी जमाने में कर्ज की अदायगी और प्रतिरक्षा हमारे बजट में खर्च का सबसे बड़ा आइटम हुआ करते थे। सूद और कर्ज की अदायगी का अनुपात भी पहले से कुछ काम हुआ है लेकिन रक्षा बजट काफी छोटा हो गया है। कायदे से इस बदलाव के बाद शिक्षा और स्वास्थ्य का बजट बढ़ना चाहिए क्योंकि विकसित देश होने की यह शर्त जैसी है कि जो जितना विकसित वह स्वास्थ्य और शिक्षा पर उतना ज्यादा बजट खर्च करता है। इस बीच यह बदलाव भी हुआ है कि राजनैतिक रूप से भले ही रक्षा, गृह, विदेश और वित्त मंत्री ज्यादा महत्व पाते हों लेकिन असली महत्व के मामले में वाणिज्य, सूचना तकनीक, सड़क परिवहन और विदेश व्यापार प्रमुखता पाने लगे हैं। एक जमाने में संचार मंत्रालय भी काफी भाव पा रहा था। पर इन सबके बीच वह मंत्रालय, जिसे शिक्षा का काम संभालना है लेकिन नाम मानव संसाधन विकास कर दिया गया है, लगातार अपना भाव बढ़ाता गया है। कभी तो इसके मंत्री को प्रधानमंत्री के बाद सबसे ज्यादा महत्व वाला माना जाता था। इधर जरूर हुआ है कि चुनाव हारकर भी मंत्री बनी स्मृति ईरानी(जिनकी डिग्री का विवाद भी प्रधानमंत्री की डिग्री की तरह ही चर्चा में रहा) और धर्मेन्द्र प्रधान जैसों के मंत्री बनने से शिक्षा विभाग लगातार कई तरह के विवादों में रहा है और इस पद का महत्व भी कम हुआ है।

जिस तरह से देश भर के मेडिकल कालेजों में दाखिले के लिए होने वाली प्रवेश परीक्षा 'नीटÓ के नतीजों को लेकर विवाद हुआ है हमको-आपको सभी को इस विभाग और इसके काम का महत्व समझ में आने लगा है। महत्व तो इसके मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान को ज्यादा मालूम है लेकिन वे कुछ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे वे इस पूरे काम से कुछ परेशान हों। और इस परेशानी में वे रह-रह कर एक एक कदम उठा रहे हैं जो मजबूरी या अदालती आदेश का दबाव ज्यादा लगता है, अपने विभाग का दोष या गलती सुधारने की इच्छा से उठाया गया कदम नहीं लगता। और जिस तरह से वे परीक्षा आयोजित करने वाली एजेंसी को लगातार दोषमुक्तकरते जा रहे हैं और परीक्षार्थियों/अभिभावकों को झूठे आश्वासन दिए जा रहे हैं वह बताता है कि वे सब कुछ जानकार भी अनजान बनने की कोशिश कर रहे हैं। परीक्षा के दिन से ही नहीं उससे पहले से हंगामा है और वे अनजान दिखते हैं जबकि वे ही पुराने शिक्षा मंत्री भी हैं। जिन कुछ मंत्रियों को पुराने विभाग वापस मिले हैं उनमें धर्मेन्द्र प्रधान भी हैं। इसका तत्काल यह नतीजा निकालने की जरूरत नहीं है कि खुद उनकी इस घोटाले में संलिप्तता है लेकिन यह जरूर पूछा जा सकता है कि उनको कैसे पता नहीं था।

परीक्षा का फार्म भरने की तारीख बीतने के बाद अचानक फार्म लेने वाला विंडो खुला और चौबीस हजार फार्म जमा हो गए। ज्यादातर गड़बड़ इनको लेकर है। फिर बिना किसी वजह के कुछ छात्रों को अनुग्रह अंक-ग्रेस मार्क्स दे दिए गए। गड़बड़ पकड़ी गई तो मंत्री जी ने ग्रेस मार्क्स हटाने या दोबारा परीक्षा का विकल्प दे दिया मानो एक जगह की गड़बड़ से दूसरे का कोई रिश्ता ही न हो। रिजल्ट अपूर्व हो गया और कट-आफ मार्क्स किसी की कल्पना से ऊपर पहुंच गया। इतने टापर हो गए कि गिनना मुश्किल। पूरे-पूरे अंक लेकर टाप करने वाले छह टापरों वाले केंद्र का स्कूल संचालन भाजपा के एक विवादास्पद नेता के पास था। इंटर फेल भी टापरों में था तो दूसरी प्रवेश परीक्षाओं के टापर फेल हो गए। कुछ केंद्र के बच्चों का रिजल्ट आश्चर्यजनक अच्छा हुआ तो कई कई राज्यों के कुछ बच्चे हजारों मील दूर गुजरात के एक केंद्र पर परीक्षा देने गए और ज्यादातर पास हो गए। कई बच्चों ने जबाब न आने पर स्थान खाली छोड़ दिया जिसे बाद में भरे जाने की पुष्टि हुई है। परीक्षा के दिन ही एक बड़े हिन्दी अखबार ने अपने सभी संस्करणों में पटना में सवाल कई दिन पहले लीक होने की खबर छापी। बच्चों को प्रश्नपत्र देकर जवाब का अभ्यास कराया गया। पटना पुलिस ने कुछ लोगों को गिरफ्तार किया और जलाए गए प्रश्न-पत्र पकड़े। कुछ छात्र और अभिभावक भी पकड़े गए जिन्होंने इस गड़बड़ को कबूला। और हद तो तब हो गई जब तीस और चालीस लाख के पोस्ट-डेटेड चेक इन गिरोहबाजों के पास से मिले। अर्थात पूरा धंधा बहुत भरोसे और निश्चिंत भाव से चल रहा था।

हर तरफ से इसी तरह की गड़बड़ी की खबरें आ रही हैं और इस धंधे के लगातार चलाने की बात भी पुष्ट हो रही है लेकिन मंत्री जी ही एकदम अनजान बने बैठे हैं और अभी भी अदालत से निर्देश मिलने का पालन होने की बात करते हैं। अगर अदालत को ही सब कुछ करना है तो आप किस लिए बने हैं। और तय मानिए कि अदालत भी आंख बंद नहीं करने वाली है क्योंकि चालीस से ज्यादा मुकदमे हो चुके हैं और रोज नए सबूतों के साथ परीक्षार्थियों के आरोप सही साबित हो रहे हैं। बच्चे भी भीषण गर्मी के बावजूद सड़कों पर उतरे हुए हैं क्योंकि उनके लिए तो जीवन-मरण का सवाल है। और यह खेल सिर्फ नीट की परीक्षा में हुआ हो यह संभव नहीं है। हर परीक्षा शक के दायरे में है और आधी से ज्यादा परीक्षाओं में तो प्रश्नपत्र लीक होने की बात भी सामने आ रही है। कोचिंग सेंटर और शिक्षा माफिया का तंत्र पूरी शिक्षा व्यवस्था, और उसमें भी खास तौर से प्रवेश परीक्षाओं को अपनी गिरफ्त में ले चुका है। और हर परीक्षा केन्द्रीय स्तर पर और अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित होने से उसका संचालन चुस्त-दुरुस्त ढंग से करा पाना असंभव बन गया है। दूर-दराज के और असुरक्षित परीक्षा केंद्र बनाना, थोड़े से पैसों के लिए बिकने वाले स्टाफ को भी साथ रखने की मजबूरी है। और फिर पूरे विभाग की 'कमाईÓ और माखन-मिश्री का इंतजाम इसी से होता है। टेक्स्ट-बुक और इस तरह की पुरानी धांधलियां कम हुई हैं।

जब भाजपा के ही शिक्षा मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी और उनके ईमानदार अधिकारियों की टोली हर राज्य वाली प्रवेश परीक्षाओं को खत्म करके एक अखिल भारतीय पाठ्यचर्या और परीक्षा का इंतजाम करने की धुन में लगे थे तब उनको शायद खयाल नहीं रहा कि धंधेबाज प्रभावी होंगे तो यही व्यवस्था किस तारक लड़के-लड़कियों के लिए जी का जंजाल बन जाएगी। आज भी तमिलनाडु की स्टालिन सरकार परीक्षा को राज्य स्तर पर कराने की मुहिम चला रही है लेकिन केंद्र से न यह संभाल रहा है न वह इस जिम्मा को छोड़ने के मूड में है। और यह शिक्षा के सुधार और एक रूपता से ज्यादा धंधे की चीज बन गया है जिसका प्रमाण यह नीट घोटाला है। और प्रधान मंत्री अगर इस सवाल पर कोई चिंता रखते हैं या अपनी छवि के लिए ही सचेत हैं तो उन्हें बड़े कदम उठाने ही होंगे।


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