सेना जीती विदेश नीति हारी!
भारत का राजनीतिक नेतृत्व हमेशा ऐसा ही कमजोर नहीं रहेगा। आतंकवाद को खतम करके ही पाकिस्तान अपना भविष्य सुरक्षित रख सकता है

- शकील अख्तर
भारत का राजनीतिक नेतृत्व हमेशा ऐसा ही कमजोर नहीं रहेगा। आतंकवाद को खतम करके ही पाकिस्तान अपना भविष्य सुरक्षित रख सकता है। देश में इस समय हर जगह सवाल हैं। मोदी समर्थकों में भी। लोग यह समझने लगे हैं कि मोदी के लिए सबसे बड़ी चीज वोट है। बाकी सब उनके लिए सेकेन्डरी (वोट के बाद आने वाली) चीजें हैं। यह आम जनता, जिनमें 11 साल से लगातार मोदी का अंध समर्थन करने वाले लोग भी शामिल हैं कहने लगे हैं कि पाकिस्तान के साथ ठीक तरीके से निपटा नहीं गया।
पाकिस्तान के लिए यह आखिरी मौका है। अपने आतंकवादी प्रशिक्षण केन्द्रों को बंद कर दे। इन्हें प्रोत्साहित करने वाली धार्मिक शक्तियों को नियंत्रित करे। और अपनी जनता की वास्तविक समस्याओं मार्डन एजुकेशन, रोजगार और आर्थिक विकास पर ध्यान दे।
अगर वह यह सोचता है कि इस बार उसे पहले के मुकाबले ज्यादा अन्तरराष्ट्रीय समर्थन मिल गया तो यह उसकी बड़ी भूल है। खुशफहमी है। हमारी विदेश नीति की कुछ बड़ी गलतियों की वजह से हम वह समर्थन नहीं जुटा पाए जो 75 साल से हमें मिलता रहा था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह हमें फिर हासिल नहीं होगा।
भारत अपनी गलतियों से बहुत जल्दी सबक सीखने वाला देश है। अभी सबने देखा कि हमारे चीफ आफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने माना कि हमसे गलती हुई और हमने उससे तत्काल सबक सीखा और अंदर तक जाकर पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों को नष्ट किया। यह दूसरी बार है जब सेना ने यह कहा है हमने सीखा। इससे पहले 7 मई की रात को पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों को नष्ट कर देने के बाद सेना ने यह वाक्य पहली बार बोला था।
मुद्दा वास्तव में यह नहीं है कि हमारे कितने जहाजों को नुकसान हुआ। सेना के जनरल बिल्कुल सही कह रहे हैं कि मुद्दा यह है कि क्यों हुआ? और हमने इससे क्या सीखा? ओवर ऑल हम हावी रहे। हम मतलब हमारी सेना। पाकिस्तान स्थित आतंकवादी ठिकानों को बुरी तरह नुकसान पहुंचाया और क्लीयर मैसेज दिया कि पूर्ण युद्ध चाहती नहीं थी नहीं तो और ज्यादा नुकसान भी पहुंचा सकती थी।
पाकिस्तान यह बात जानता है। वहां की सेना भी जानती है। वह अलग बात है कि अपने यहां की जनता को बेवकूफ बनाने के लिए वहां के शासक अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते हैं। सेना भी जानती है कि उसकी वास्तविक क्षमता कितनी है। मगर वह पाकिस्तान के शासकों में अपना महत्व बनाए रखने के लिए जबर्दस्ती बांहें चढ़ाती रहती है।
भारत की विशाल, मजबूत, प्रोफेशनल सेना का मुकाबला करना उसके लिए संभव नहीं है। इस बार चीन ने उसकी खुलकर मदद की। यही वह पेंच है जिसे समझना सबसे ज्यादा जरूरी है।
चीन ने सैनिक मामले में जो उसकी मदद की जिसकी वजह से हमें कुछ नुकसान भी हुआ। उसी को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं कि कितने जहाज गिरे। तो वह मामला तो सेना ने संभाल लिया। मगर चीन जैसे कई देशों ने जो अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ माहौल बनाया वह सबसे खतरनाक है। कभी दुनिया के 120 से ज्यादा देशों का नेतृत्व हम करते थे। मगर उस नेहरू जिसने इन देशों का संगठन बनाया था कि आलोचना में ही हमारे प्रधानमंत्री ने 11 साल निकाल दिए। दुनिया में सबसे ज्यादा देशो का संगठन संयुक्त राष्ट्र। उसके बाद सबसे सबसे ज्यादा देश किस संगठन के सदस्य थे? गुटनिरपेक्ष आन्दोलन। 120 सदस्य देश। और आज स्थिति क्या हुई। एक देश हमारे साथ नहीं। वह रूस जो हमारा सबसे विश्वसनीय दोस्त था वह भी हमारे साथ नहीं। पूछिए क्यों?
अभी जब रूस-युक्रेन युद्ध शुरू हुआ तो हमारे मीडिया को कहां भेजा गया था? हर न्यूज चैनल की टीम। बड़े-बड़े एंकर। हेलमेट लगाकर सड़क पर नाटक कर रहे थे यह बम यहां गिरा? यह राकेट मेरे बगल से निकला! किसके बम थे वह? किसके राकेटो के खिलाफ बोल रहे थे? उसी रूस के जिसने उसका बदला अब लिया।
किस देश में गए थे युद्ध देखने? युक्रेन में। कौन ले गया था? युक्रेन। किसकी मर्जी से मोदी सरकार की मर्जी से। अब परिणाम आप देख ही रहे हैं। भारत की विदेश सेवा में एक से एक अन्तरराष्ट्रीय समझ वाले अफसर हैं। मगर जब सेना तक को बता दिया जाता है कि कब कैसे स्ट्राइक करने जाना है। बादल हों तो निकल जाना है। आसमान खुला हो तो रूक जाना है रडार पकड़ लेगा। तो विदेश सेवा में तो कोई भारत के पारंपरिक हितों के नजरिए से प्रोफेशनल ढंग से सोच ही नहीं सकता। उससे तो अपनी घरेलू राजनीति के हिसाब से हर चीज करवाई जा रही थी। विदेशों में भारतीयों को जोड़ना और उनसे मोदी मोदी के नारे लगवाना।
आपको मालूम है विदेशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों के बीच कभी विभाजन नहीं था। सब भारतीय एक। और अब मालूम है जैसे देश को विभाजित कर दिया वैसे ही विदेशों में रह रहे भारतीयों को। एक तरफ नए मोदी भक्त दूसरी तरफ देश समर्थक भारत प्रेमी।
बहरहाल बात हो रही थी रूस की। तो जब मोदी सरकार हमारे मीडिया को युक्रेन का समर्थन करने के लिए वहां भेजती है तो कैसे समझ लेती है कि भारत-पाक के बीच संघ्रर्ष में उसे रूस का समर्थन मिल जाएगा?
दरअसल सच्चाई यह है कि इस युद्ध समान स्थिति में किसी ने पाकिस्तान का समर्थन नहीं किया। हुआ यह कि भारत का जो साथ देते थे उसके पुराने दोस्त थे वह पीछे हट गए। यही पाकिस्तान का फायदा हुआ। मोदी अमेरिका को सब कुछ मान कर बैठे थे। और अमेरिका में भी ट्रंप को। कभी विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी ही लिखेंगे कि मोदी का वहां अबकी बार ट्रंप सरकार का नारा लगवाना कितनी बड़ी हिमालयन भूल थी।
प्रसिडेन्ट ट्रंप हमको बहुत छोटा करके देखने लगे। और चुप रहकर हम उनको और बढ़ावा दिए जा रहे हैं। क्या भारत डर गया? भारत कभी किसी से नहीं डरता। 1971 में इन्दिरा गांधी ने और उससे पहले 1965 में लाल बहादुर शास्त्री ने यह बता दिया था। अमेरिका, पाकिस्तान सबको। मगर अब ट्रंप कितनी बार बोल चुके है कि मैंने युद्ध विराम करवाया यह भी लोगों ने गिनना बंद कर दिया। 10-11-12 गिनती बढ़ती जा रही है। और हमारे प्रधानमंत्री का मौन! देखिए समय का न्याय। मनमोहन सिंह को मौन कहते थे आज सबने देख लिया कि मौन कौन है।
आमसभाओं में शब्दों के गोले बरसाने से कुछ नहीं होता। नेतृत्व की क्षमता मालूम पड़ती है ताकतवर के सामने डट कर खड़े हो जाने से। पाकिस्तान को तो तालिबान भी धमका लेता है। यह मौका था चीन और अमेरिका को अपना मेटल दिखाने का।
राहुल ने दो साल पहले कह दिया था। मोदी सरकार की विदेश नीति की सबसे बड़ी गलती। लोकसभा में। कहा था कि भारत की सफल विदेश नीति ने कभी चीन और पाकिस्तान को एक नहीं होने दिया। उन दोनों का एक हो जाना भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा है और वही हुआ। लेकिन अगर विदेश नीति सही हाथों में होती तो चीन के पाकिस्तान के साथ खुलकर जाने पर भारत अमेरिका का साथ ले लेता।
मगर अमेरिका तो हमें टेकन फार ग्रांटेड ( कुछ भी नहीं, जो हम चाहेंगे वही करेगा) समझे हुए है और हुआ भी यही। ट्रंप ने कहा 5 बजे युद्ध विराम! हमने कर दिया। पाकिस्तान को इसकी जरूरत थी। मगर फिर भी अपना स्वतंत्र अस्तित्व दिखाने के लिए उसने पांच बजे नहीं किया। ड्रोन भेजता रहा। हमले करता रहा। मगर जैसा कि हमने शुरूआत में लिखा पाकिस्तान के लिए आखिरी मौका!
भारत का राजनीतिक नेतृत्व हमेशा ऐसा ही कमजोर नहीं रहेगा। आतंकवाद को खतम करके ही पाकिस्तान अपना भविष्य सुरक्षित रख सकता है। देश में इस समय हर जगह सवाल हैं। मोदी समर्थकों में भी। लोग यह समझने लगे हैं कि मोदी के लिए सबसे बड़ी चीज वोट है। बाकी सब उनके लिए सेकेन्डरी (वोट के बाद आने वाली) चीजें हैं। यह आम जनता, जिनमें 11 साल से लगातार मोदी का अंध समर्थन करने वाले लोग भी शामिल हैं कहने लगे हैं कि पाकिस्तान के साथ ठीक तरीके से निपटा नहीं गया। अमेरिका के सामने चुप हैं। लेकिन वोट के लिए लगातार बोलते जा रहे हैं। शायद सेचुरेशन पाइंट आ गया है। इतिहास के शब्दों में वाटर लू!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)


