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जीडीपी आंकलन की पद्धति पूरी तरह से सटीक नहीं: आर्थिक सलाकार परिषद

सुब्रमण्यम ने पिछले सप्ताह एक रिपोर्ट में कहा था कि आधार वर्ष को बदलकर वर्ष 2011-12 करने के बाद से भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 45. प्रतिशत रही है

जीडीपी आंकलन की पद्धति पूरी तरह से सटीक नहीं: आर्थिक सलाकार परिषद
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नई दिल्ली । प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) निर्धारण के लिय आधार वर्ष में बदलाव किये जाने और इसमें कुछ खामियां होने के बिन्दुबार जबाव देते हुये आज कहा कि भारत में जीडीपी आंकलन की पद्धति पूरी तरह से सटीक नहीं है और सरकार आर्थिक आंकड़ों की सटीकता को बेहतर बनाने के विविध पहलुओं पर काम कर रही है।

सुब्रमण्यम ने पिछले सप्ताह एक रिपोर्ट में कहा था कि आधार वर्ष को बदलकर वर्ष 2011-12 करने के बाद से भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 45. प्रतिशत रही है जबकि इसको सात प्रतिशत दिखाया गया। इसके बाद प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने इस रिपोर्ट के आंकड़े और आंकलन पद्धति का पुरजोर खंडन करते हुये गत 12 जून को रिपोर्ट का बिन्दुबार अध्ययन कर प्रतिक्रिया देने की बात कही थी।

परिषद के सभी सदस्यों ने श्री सुब्रमण्यम की रिपोर्ट का पुरजोर तरीके से खंडन किया है और इसको बिन्दुबार जबाव भी दिया है। हालांकि इसमें यह भी कहा गया है कि देश में जीडीपी आंकलन की पद्धति पूरी तरह से सटीक नहीं है लेकिन सरकार इसकी सटीकता की दिशा में काम रह रही है। उसने कहा कि इसमें बेहतरी की दिशा एवं गति सराहनीय है और फिलहाल जीडीपी आंकलन पद्धति एक जवाबदेह, पारदर्शी और सुव्यवस्थित अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की वैश्विक हैसियत के अनुरूप है।

परिषद ने कहा कि जीडीपी के आंकड़ों को वास्तविकता से अधिक बताने से संबंधित श्री सुब्रमण्यम के प्रयासों में कुछ कमजोरी इस बात की पुष्टि करती है कि जीडीपी आंकलन की प्रक्रिया फर्जी आलोचना का सामना करने में सक्षम है। आने वाले समय में भारतीय राष्ट्रीय आय के लेखांकन में बेहतरी के लिए बदलाव होना तय है और यह इस दिशा में एक ऐसा महत्वपूर्ण कदम है जिसकी आलोचना विशेषज्ञ और विद्वान निश्चित तौर पर करेंगे। हालांकि केवल व्यवस्था की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाली नकारात्मकता के जरिए सनसनी फैलाने भर से ही देश के हितों की पूर्ति नहीं होती है।

परिषद ने आज “भारत में जीडीपी आंकलन – परिप्रेक्ष्य और तथ्य” शीर्षक से विस्तृत नोट जारी किया जिसमें श्री सुब्रमण्यम की रिपोर्ट का बिन्दुबार खंडन किया गया है और कहा गया है कि केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) की आंकड़े के स्थान पर एक निजी एजेंसी के आंकड़ों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की गयी थी। परिषद ने सवाल उठाते हुये कहा कि क्या एक निजी एजेंसी की विश्वसनीयता एक सरकारी संगठन से अधिक हो गयी है।
परिषद ने कहा कि जनवरी 2015 में भारत में जीडीपी के आंकलन की बेहतर पद्धति को अपनाने और वैश्विक स्तर पर अपनायी जा रही पद्धतियों से तालमेल के उद्देश्य से आधार वर्ष में बदलाव किया गया था। नई पद्धति में दो प्रमुख बदलाव किये गये जिसमें कंपनी मामलों के मंत्रालय के 21 डाटाबेस को और राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (एसएनए) 2008 की सिफारिशों को शामिल किया गया था। यह परिवर्तन एसएनए 2008 के मुताबिक अपनी-अपनी पद्धतियों में बदलाव लाने और अपने जीडीपी आंकड़ों को संशोधित करने वाले अन्य देशों की तर्ज पर किया गया था। इस पद्धति से ओईसीडी देशों के बीच वास्तविक जीडीपी अनुमानों में औसतन 0.7 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।

परिषद ने कहा कि आज जारी नोट हाल ही में श्री सुब्रमण्यम द्वारा “भारत की जीडीपी का गलत आकलन : संभावना, आकार, व्यवस्था और निहितार्थ ” शीर्षक से प्रकाशित शोध पत्र का बिन्दुवार खंडन करता है। इस नोट में प्रमुख रूप से बिबेक देबरॉय, रथिन रॉय, सुरजीत भल्ला, चरण सिंह और अरविंद विरमानी आदि ने योगदान दिया है। इन विशेषज्ञों ने श्री सुब्रमण्यम के आंकलन की पद्धति, दलीलों और निष्कर्षों को अकादमिक योग्यताओं तथा भारतीय वास्तविकताओं की समझ के आधार पर खारिज किया है।

नोट में कहा गया है कि श्री सुब्रमण्यम ने अपनी परिकल्पना को सही साबित करने के लिए कुछ विशेष संकेतकों का चयन किया है तथा अपेक्षाकृत अपुष्ट और कमजोर विश्लेषण प्रस्तुत किये। उदाहरण के लिए नोट में श्री सुब्रमण्यम के शोध पत्र की विसंगतियों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा गया है कि इसमें पक्षपात करते हुए कर के आंकड़ों को इस दलील के आधार पर नज़रअंदाज कर दिया गया है कि वर्ष 2011-12 के बाद की अवधि के दौरान प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में व्यापक बदलाव देखे गए हैं। श्री सुब्रमण्यम का विश्लेषण 31 मार्च, 2017 के आंकड़े पर ही समाप्त हो गया है जबकि अप्रत्यक्ष कर के क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) 01 जुलाई 2017 से अमल में लाया गया है। इस नोट में तथ्यों और दलीलों सहित आठ स्पष्ट बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है जो श्री सुब्रमण्यम के शोध पत्र का पूरी तरह खंडन करते हैं।


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