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आंखों की रोशनी गंवाने वालों की जिन्दगी में ‘उजाले’ की आस खत्म

आरिफ, सुल्तान, अजमत, साकिब, सुहैल.....। फहरिस्त लंबी है।

आंखों की रोशनी गंवाने वालों की जिन्दगी में ‘उजाले’ की आस खत्म
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जम्मू । आरिफ, सुल्तान, अजमत, साकिब, सुहैल.....। फहरिस्त लंबी है। ये वो नाम हैं जिनकी आंखों की रोशनी पैलेट गन छीन चुकी है और अनेकों आप्रेशनों के बावजूद उन्हें अब उजाले की आस नहीं है।

बाईं आंख की रोशनी गंवाने वाले बशीर अहमद को डाक्टर कब का जवाब दे चुके हैं। उसकी आंख का तीन बार आप्रेशन हो चुका है। पर जिन्दगी में उजाला होने की आस कहीं से नहीं दिख रही। फिरदौस की भी यही दशा है। उसकी दोनों आंखें बेकार हो चुकी हैं। फयाज अहमद भी पांच बार आंखों का आप्रेशन करवा चुका है।

ऐसे बीसियों नहीं बल्कि अब सैंकड़ों कश्मीरी युवक हैं जिन पर पैलेट गन के छर्रों ने कहर बरपाया था। चिंता की बात यह है कि पैलेट गन के छर्रे उनके शरीर पर छाती के ऊपरी भाग पर ही मारे गए थे। फिलहाल उन्हें इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया है कि क्या सुरक्षाबल कथित तौर पर कश्मीरियों को अंधा बनाने की मुहिम में जुटे हुए हैं।

आंखों के कई विशेषज्ञ भी पिछले साल कई उन युवकों की आंखों के आप्रेशन कर चुके हैं जिनकी आंखों की रोशनी को पैलेट गनों ने लील लिया था। पर वे भी उनकी जिन्दगी में उजाला भरने में कमयाब नहीं हो पाए। वे कई बार कश्मीर का दौरा कर बीसियों युवकों का आप्रेशन कई कई बार कर चुके हैं।

हालांकि कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि बुरहान वानी की मौत के बाद से कश्मीर में आरंभ हुए हिंसा और प्रदर्शनों के दौर के दौरान कितने युवकों की आंखों की रोशनी चली गई, पर गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, ऐसे युवकों की संख्या तीन सौ से अधिक है जिनमें से कईयों की दोनों आंखों की रोशनी जा चुकी है। इनमें किशोर और युवतियों के अतिरिक्त बुजुर्ग औरतें और पुरूष भी शामिल हैं।

ऐसा भी नहीं है कि पैलेट गन के छर्रों से आंखों की रोशनी गंवाने वाले सभी उस आंदोलन में शामिल थे जिसे हुर्रियती नेताओं ने बुरहान वानी की मौत के बाद आरंभ किया था बल्कि इनमें से अधिकतर अपनी दुकान पर बैठे थे, बाजार काम से गए थे। जहां तक की दो की आंखों की रोशनी उस समय छीन ली गई जब वे वाहन में थे।

आंखों की रोशनी गंवाने वाले सिर्फ श्रीनगर के रहने वाले नहीं थे बल्कि कश्मीर के अन्य भागों से भी संबंध रखने वाले हैं जिनके जीवन में उजाले की आस अब कोई डाक्टर भी नहीं जगा पा रहा है। नतीजतन उनके परिजन दर-ब-दर भटकते हुए अपने प्रियजनों की आंखों की रोशनी वापस लाने की कोशिश में अपना सब कुछ बेच भी रहे हैं। कई तो कर्ज में भी डूब गए हैं। पर रोशनी फिलहाल कहीं नहीं दिख रही। हालत यह है कि हर आप्रेशन के बाद डाक्टर अब उन्हें दिलासा भी देने से घबरा रहे हैं।

--सुरेश एस डुग्गर--


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