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रिश्तों के ताने-बाने में स्त्री पक्ष को मजबूती से समेटे है कोई खुशबू उदास करती है

संग्रह की पहली कहानी 'टुकड़ा-टुकड़ा जिंदगी' में उर्वशी की नसरीन को छोटी-छोटी बातों और हल्की-सी गलती के लिए डांट, नसरीन के लिए घर के माहौल को उदास और नीरस करता है

रिश्तों के ताने-बाने में स्त्री पक्ष को मजबूती से समेटे है कोई खुशबू उदास करती है
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- पवन चौहान

कहानी में अपनी खास पहचान बनाने वाली नीलिमा शर्मा जी का कहानी संग्रह 'कोई खुशबू उदास करती है' पिछले दिनों पढ़ा। संग्रह में शामिल 11 कहानियां स्त्री पक्ष की बात को बड़े ही मुखर रूप से करती हैं। नीलिमा जी ने हर कहानी में स्त्री पक्ष की कई-कई परतों को मजबूती के साथ उकेरा है। इन कहानियों के केंद्र बिंदु में स्त्री ही है जो अपने संघर्षों, दुखों, मजबूरियों, परेशानियों, समझौतों, ख्वाहिशों, उम्मीदों, खुशियों, शोषण, भेदभाव आदि का कड़वा-मीठा स्वाद पाठकों को देती हैं। चर्चित कहानीकार मनीषा कुलश्रेष्ठ इस संग्रह को 'वर्तमान का आइना' कहती हैं।

संग्रह की पहली कहानी 'टुकड़ा-टुकड़ा जिंदगी' में उर्वशी की नसरीन को छोटी-छोटी बातों और हल्की-सी गलती के लिए डांट, नसरीन के लिए घर के माहौल को उदास और नीरस करता है। रोजमर्रा की इस जिंदगी में कुछ ऐसा ही हाल रहता है इस घर में। लेकिन लॉकडाउन के क्वारन्टीन टाइम में उर्वशी के व्यवहार में आई नरमी और इन्हीं दिनों नसरीन के अरमानों के सजे रंग कहानी को रोचक बनाते हैं। इन दिनों अपनी मालकिन का सामान इस्तेमाल कर लेने की खुशी, नसरीन का वह अंदाज़ और उर्वशी का प्यार से बात करना, मुस्लिम लड़की को आंटी का प्रसाद बनाने के लिए पहली बार बोलना, मौत के डर को करीब से देख लेने के बाद उर्वशी के व्यवहार में बदलाव का परिणाम है। सुंदर कहानी है यह।

संग्रह की दूसरी कहानी 'कोई रिश्ता ना होगा तब' लेखिका के जीवनानुभव की गहरी पैठ का आईना है। यह कहानी बेटा-बेटी में असमानता की बात करती बेहद ही शानदार तरीके से रची है। सुमन मानती है कि देह की भूख इस असमानता को और विस्तार देती है। यह उसके फलने-फूलने का एक जरिया है। सुमन वह स्त्री है जो कहानी के अंत में राजीव के पुरूषार्थ के डींभ को एक ओर पटककर उस शरीर की भूख को करारा जवाब देती है।

कई बार हम स्वयं को किसी अवसाद या मानसिक यातना से पीड़ित पाते हैं। यह कुछ ऐसी रूटीन में हमारी जिंदगी में शामिल हो जाता है जिसका हमें शुरूआत में इल्म भी नहीं हो पाता। ऐसी उलझनों व परिवार की जिम्मेदारियों के बीच मीनू और मि0 गुप्ता भी अपने आप को अकेला-अकेला पाते हैं। जिस ख़ुशी को पाने के लिए हम कहीं बाहर तलाशने की दौड़ में शामिल हो जाते हैं, वह दरअसल हमारे भीतर, अपने पास ही होती है। हमारा गुनाह, हमारी कमी, हमारी गलती बस इतनी-सी रहती है कि हम उसे रोजमर्रा की उलझन में भूलते हुए उससे स्वयं ही दूर हो जाते हैं। ऐसी ही खोई खुशी को मीनू और मि0 गुप्ता 'इत्ती-सी खुशी' कहानी में आखिरकार तलाश ही लेते हैं।


शेखर, रेनू और इशिता के बीच घूमती कहानी 'कोई खुशबू उदास करती है' प्रेम के कई पृष्ठों को रचती है। एक ऐसा प्रेम जो वर्षों से भीतर ही भीतर कई अरमान, कई लहरें लिए चुपचाप अपनी राह पकड़े हुए है। जिसकी तासीर को डायरी के पन्ने बड़ी ही शिद्दत से इशिता को महसूस करवाते हैं। संग्रह की कहानियां पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे हम अपने परिवार, अपने हर रिश्ते से रूबरू होते हुए एक-दूजे को समझ रहे हैं, बिगड़ रहे हैं, हिम्मत दे रहे हैं, तोड़ रहे हैं, नाच रहे हैं, गा रहे हैं, कहीं उदास बैठे हैं, घुट रहे हैं, खुल रहे हैं आदि जीवन के कई रंगों से सराबोर होते हैं।

मजबूर रिश्तों की कहानी है 'मायका'। अपने हक के लिए स्त्री की दास्तान सुनाती कहानी। 'अंतिम यात्रा और अंतर्यात्रा' बेहद ही संवेदनशील और मार्मिक कहानी है। पति-पत्नी के हिस्से में आए उन घटनाओं, बातों को परत-दर-परत खोलती पौरूष मानसिकता, स्वाभिमान और सामाजिक नियमों से बंधे पति-पत्नी के रिश्ते की पड़ताल करती बेहद ही भावुक कर देने वाली, अंतिम समय में अपने पछतावे का रोना-रोते पति के भीतर पत्नी के प्रेम की कहानी है यह। अंतिम समय है और पत्नी आखिरी सांसे ले रही है। अपनो की अनदेखी, पति को बार-बार पत्नी के पास खींचे जा रही है। अंत तक आते-आते यह कहानी पाठकों की आंखें भिगो देती है। इस अंतिम यात्रा और अंतर्यात्रा के बीच जीवन का सारा सार, कई दुखों, कलहों को जीवन की कई तहों में संजोए हुए है।

रिश्तों की उम्र, रिश्तों की अहमियत, रिश्तों की ताकत, उनका जुड़ाव, उनका बल, उनकी पहचान, उन रिश्तों को ईमानदारी से निभाने से बढ़ती है। लेकिन जहां रिश्तों में कोई दबंगाई या फिर कोई दबाव हावी हो जाए तो रिश्तों का सुख पाने के लिए जिंदगी भर तरसना पड़ता है। 'लम्हों ने खता की' कहानी एक परिवार के उन रिश्तों की कहानी है जो दिल से, मन से कभी एक-दूसरे को संतुष्टि नहीं हो पाए हैं। इसी अधूरेपन में फिर पनपा एक अनजाना आकर्षण परिवार को किस रास्ते पर ले जाता है। इसी प्रेम की चाह में लिपटी है यह कहानी। प्रेम की चाह हमेशा सबको रही है। इसी की कहानी है यह।

'मन का कोना' कहानी बेटा-बेटी समानता की बात करती है। इस आत्मकथात्मक कहानी में बेटीअपने भ्रूण से लेकर अपने बड़े होने तक के सफ़र में बेटी के नजरअंदाज की कई घटनाएं, बातें, जीवन के अंश सुनाते हुए क्रुद्ध है, दुखी है, परेशान है और कई पीडाएं लिए है जो अंत में अपने लिए ही जीने के फैसले पर आ रुकती है। बेटा-बेटी में अंतर आज भी है। इसकी कई घटनाएं हमारे घर, समाज और दुनिया भर में रोज किसी न किसी रूप में बार-बार दोहराई जाती हैं। इन्हीं का ताना-बाना बुने है कहानी 'मन का कोना'।

'आखिर तुम हो कौन?' एक शकी पति की कहानी है जिसमें अविनाश का शक अपनी हर इंतहा को पार करता जाता है। शक किसी की भी जिंदगी के आनंद, उनके सुख का अंत है। यह शांति का अशांति में परिवर्तन है। परिवार को तबाह करने का ब्रह्मास्त्र है। कहानी में पति, पत्नी और वो के लिए बने शक का अंत तक निवारण नहीं होता। वह गाहे-बगाहे अविनाश के दिल में ऐसा बस गया है कि कविता के सब कुछ बताने, समझाने, विश्वास दिलाने के बाद भी हट-हट कर वापिस लौटता है।

प्रेम रस में डूबी कहानी है 'उधार प्रेम की कैंची है'। कहानी में समाहित लोकगीतों, गीतों के बोल पाठक को कहानी की पृष्ठभूमि के और नजदीक ले जाते हैं। यह हमें उस माहौल, उसकी तासीर में रंग देते हैं। कहानी का अंत एक मासूम, सच्चे, प्यार भरे अंदाज में होता है। पाठक इन कहानियों के साथ चलता हुआ रोजमर्रा की इन बातों, घटनाओं से स्वयं को रूबरू पाता है। वह रोजाना इन्हें अपने आसपास अपने जीवन में जीता है, देखता है, सुनता है और महसूस करता है। ये वे पात्र हैं जिनसे रोजाना हम जरूर किसी न किसी रूप में मिलते-बिछुड़ते हैं।

आपसी रिश्तों का ताना-बाना नीलिमा जी ने इतनी गहराई, कुशलता और एक-एक संवाद को चुन-चुन कर इस कदर सजाया है कि पाठक इन कहानियों की चाल के साथ अपनी चाल मिलाता चलता है। शे'र, कविता, फिल्मी व लोकगीतों के बोलों की पंक्तियां कहानी को उसकी पृष्ठभूमि के साथ बहुत शानदार अंदाज में जोड़ती है। इन कहानियों को पढ़कर पाठक रिश्तों की अहमियत और स्त्री मन को बहुत करीबी से जानेगा, ऐसा मेरा मानना है। नीलिमा जी को इस कहानी संग्रह के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं।


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