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मध्यप्रदेश में आदिवासी वोट बैंक पर सियासी दलों की नजर

मध्यप्रदेश में आदिवासी वोट बैंक को रिझाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं और दोनों प्रमुख राजनीतिक दल सत्ताधारी भाजपा और विरोधी दल कांग्रेस ने अपने को आदिवासियों का सबसे बड़ा हितैषी बताना शुरू कर दिया है

मध्यप्रदेश में आदिवासी वोट बैंक पर सियासी दलों की नजर
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भोपाल। मध्यप्रदेश में आदिवासी वोट बैंक को रिझाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं और दोनों प्रमुख राजनीतिक दल सत्ताधारी भाजपा और विरोधी दल कांग्रेस ने अपने को आदिवासियों का सबसे बड़ा हितैषी बताना शुरू कर दिया है। मध्य प्रदेश की राजनीति में आदिवासी मतदाताओं की बड़ी भूमिका है, क्योंकि यहां की 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं। इन सीटों पर हार और जीत काफी मायने रखती है। यही कारण है कि दोनों दलों ने इन सीटों पर अभी से जोर लगाना शुरू कर दिया है।

कांग्रेस ने आदिवासियों को रिझाने के लिए आदिवासी अधिकार यात्रा का सहारा लिया है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बड़वानी में इस यात्रा में हिस्सा लिया और भाजपा पर जमकर हमले बोले, उसे आदिवासी विरोधी करार देने में तनिक भी हिचक नहीं दिखाई। साथ ही शिवराज सिंह चौहान पर हमला बोलते हुए कहा कि वे सिर्फ घोषणाएं ही करते हैं। वे एक्टिंग भी अच्छी कर लेते हैं।

वहीं दूसरी ओर भाजपा भी आदिवासियों को लुभाने की कोशिश में लगी है। इसी क्रम में जबलपुर में आजादी के 75 वें अमृत महोत्सव में जनजाति नायकों शंकरशाह व रघुनाथ शाह की याद में गौरव समारोह 18 सितंबर को आयोजित किया जाने वाला है। इस आयोजन में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी मौजूद रहेंगे।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता एवं विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया ने कहा कि कमलनाथ प्रदेश में 15 महीने सत्ता में रहे तब आदिवासियों के हितों के लिए काम कर लेते तो आज उन्हें अधिकार यात्रा निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आदिवासियों के अधिकारों की हमेशा चिंता की है। कमलनाथ आज आदिवासियों के लिए केवल झूठे मगरमच्छ के आंसू बहा रहे हैं।

सिसौदिया ने आगे कहा कि कांग्रेस 15 महीने सत्ता में रही, लेकिन आदिवासियों के आराध्य भगवान बिरसा मुंडा, शंकर शाह, रघुनाथ शाह और वीरांगना दुर्गावती के लिए कोई काम नहीं कर पाई।

कांग्रेस के हाथ से आज आदिवासी वोट बैंक खिसक रहा है, इसी के कारण वह विदेशी ताकतों के सहयोग से समाज में विभाजन की रेखा खींच रही है। कमलनाथ यात्रा निकालकर सिर्फ आदिवासियों को गुमराह करने का काम कर रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आगामी समय में एक लोकसभा और तीन विधानसभा क्षेत्रों में उप-चुनाव होना है, लिहाजा दोनों दलों ने आदिवासियों को लुभाने की कोशिशें तेज कर दी हैं।


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