सुराजी गांव योजना से मजबूत हो रही छग की अर्थव्यवस्था : भूपेश बघेल
कोरोना संकटकाल में भी 74 फीसदी लघु वनोपजों के संग्रहण के साथ देश में अग्रणी रहा छत्तीसगढ़

रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए हमने विकास का ‘‘छत्तीसगढ़ मॉडल’’ अपनाया है। इस मॉडल में गांव के साथ-साथ शहरों के अर्थव्यवस्था को भी गतिशील बनाए रखने के साथ ही सभी वर्गों के समावेशी विकास पर जोर दिया गया है। सुराजी गांव योजना से एक ओर जहां छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था मजबूत हो रही है वहीं गांव के साथ-साथ शहरों की आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है।
श्री बघेल आज नवा रायपुर के एक निजी होटल मे छत्तीसगढिय़ा सबले बढिय़ा थीम पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। मुख्यमंत्री श्री बघेल का प्रकृति प्रेम और छत्तीसगढ़ की माटी से जुड़ाव की झलक भी सबले बढिय़ा छत्तीसगढिय़ा कार्यक्रम में दिखी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि गांव की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए हमने गोधन न्याय योजना, राजीव गांधी किसान न्याय योजना, राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर योजना जैसी अनेक नवाचारी योजनाएं लागू की हैं, वहीं वनांचलों के विकास पर भी फोकस किया है। वनांचलों में समर्थन मूल्य पर लघु वनोपज की खरीदी की पुख्ता व्यवस्था की है। हमने समर्थन मूल्य पर खरीदे जाने वाले वनोपज की संख्या 7 से बढ़ाकर 65 कर दी है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में दर्जनों किस्म के लघु वनोपज होते हैं, दुर्लभ जड़ी-बूटियां होती हैं। हम इनके संग्रहण को प्रोत्साहित कर रहे हैं। आज हमारे यहां देश में सबसे ज्यादा लघु वनोपज इक_ा हो रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा लघु वनोपज के वैल्यू एडीशन की भी पहल की है। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिल रहा है। वनवासियों को तेंदूपत्ते का भरपूर लाभ दिलाने के लिए तेंदूपत्ते की संग्रहण दर 2500 रुपए मानक बोरा से बढ़ाकर 4000 रुपए मानक बोरा कर दिया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी नयी औद्योगिक नीति कृषि और वनोपज आधारित उद्योगों को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। बड़े-बड़े उद्योगों की बजाए हमने छोटे-छोटे उद्योगों को प्राथमिकता दी है। हमने हर गांव को उत्पादक इकाइयों के रूप में विकसित करने का काम किया है, जहां कृषि और वनोत्पादों के वैल्यू एडीशन पर सबसे ज्यादा जोर दिया जा रहा है। पशुपालन को पुनर्जीवित करने के लिए हमने गोधन न्याय योजना की शुरुआत की, जिसमें 2 रुपए किलो में गोबर खरीदकर उससे जैविक खाद बना रहे हैं। यह काम स्व-सहायता समूहों की लाखों महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। जैविक खाद का उपयोग खेतों में किया जा रहा है, जिससे रासायनिक खाद के उपयोग में कमी आई है। कृषि लागत कम हुई है और किसानों का लाभ बढ़ा है। जमीन की उर्वरा शक्ति भी लौट रही है।


