Top
Begin typing your search above and press return to search.

सोनभद्र : जड़ी-बूटी नष्ट होने से चरमराया आदिवासियों का आर्थिक ढांचा!

उत्तर प्रदेश के आदिवासी बहुल सोनभद्र जिले में भले ही भारी तादाद में खनिज संपदा हो, लेकिन पहले कभी यहां अकूत वन संपदा का भी भंडार था, जिसे बेचकर आदिवासी अपने परिवार की जीविका चलाते थे।

सोनभद्र : जड़ी-बूटी नष्ट होने से चरमराया आदिवासियों का आर्थिक ढांचा!
X

सोनभद्र | उत्तर प्रदेश के आदिवासी बहुल सोनभद्र जिले में भले ही भारी तादाद में खनिज संपदा हो, लेकिन पहले कभी यहां अकूत वन संपदा का भी भंडार था, जिसे बेचकर आदिवासी अपने परिवार की जीविका चलाते थे। मगर बढ़े प्रदूषण से कई बहुमूल्य जड़ी-बूटियां नष्ट हो गईं, जिससे आदिवासियों का आर्थिक ढांचा बिल्कुल चरमरा गया है।

सोनभद्र जिले में बहुमूल्य धातुओं के साथ भारी तादाद में जड़ी-बूटियों का भी भंडार था, जो अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। इनके नष्ट होने के पीछे बढ़ रहे जल और वायु प्रदूषण को सबसे बड़ी वजह माना जा रहा है। जिन सोन और हरदी पहाड़ी में करीब तीन हजार टन से ज्यादा स्वर्ण अयस्क होने की संभावना जताई जा रही है, उनमें अब भी सतावर, वन तुलसी, खतंती, खेखसा, सफेद मूसली, गुड़मार, चकवड़ जैसी जड़ी-बूटियों के अलावा आंवला, हर्र, बहेरा, चिरौंजी, पियार, बेल, शहद और बेर जैसी वन संपदा पाई जाती है।

इस जंगल में सैकड़ों की तादाद में पलास के पेड़ हैं, जिन में कभी कीड़े लाख (लाही) पैदा करते थे, जिसका प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन, चूड़ी और रंग बनाने में होता था और यहां की लाख जर्मनी व फ्रांस तक के व्यापारी खरीद कर ले जाते थे। इस समय बाजार में लाख की कीमत छह सौ रुपये प्रति किलोग्राम बताई जा रही है।

अब भी जड़ी-बूटियां बेचकर अपने परिवार की जीविका चलाने वाले म्योरपुर विकास खंड के परनी गांव का आदिवासी युवक अमरजीत अगरिया बताता है कि उसके पूर्वज जड़ी-बूटी और अन्य वन संपदा गांव-देहात में बेचकर आराम से दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर लेते थे, लेकिन वायु और जल में प्रदूषण की बाढ़ से जड़ी-बूटियां भी नष्ट हो चुकी हैं और लाख पैदा करने वाले कीड़े भी मर गए हैं।

अमरजीत कहता है, "सोन और हरदी पहाड़ी में अब भी कुछ जड़ी-बूटियां बची हैं, जो अब स्वर्ण अयस्क की खुदाई में नष्ट हो जाएंगी।" उसके मुताबिक, इन दोनों पहाड़ियों में विश्व के सबसे जहरीले सांप भी रहते हैं और यहां इन सांपों का जहर उतारने की जड़ी-बूटियां भी हैं। खुदाई से जहां विलुप्त प्रजाति के सांप खत्म होंगे, वहीं इनका विष उतारने वाली आयुर्वेद दवा भी हमेशा के लिए नष्ट हो जाएगी।

गोहड़ा गांव का मंगलदेव, सोमारू और राजेंद्र बताते हैं कि जब से तीन हजार टन सोना मिलने की अफवाह फैली, तब से अधिकारी उन्हें सोन व हरदी पहाड़ी में जड़ी-बूटियां नहीं खोदने देते। इसके पहले दर्जनों की तादाद में आदिवासी यहां से दवा खोदकर बेचते रहे हैं।

खैरटिया गांव के मोहन बैगा और देवहार गांव के बलवंत गोंड ने बताया, "रविवार को हम लोग जड़ी-बूटी खोदने सोन पहाड़ी गए थे, जहां से अधिकारियों ने भगा दिया और कहा कि यहां सोना निकलना है। अब जो भी खुदाई करेगा, वह जेल चला जाएगा।"

सामाजिक कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी दुबे कहते हैं कि पीढ़ियों से आदिवासी घास-फूस की झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। इन तक सरकार की कोई योजना अब तक नहीं पहुंची है। यहां तक कि मनरेगा में भी काम नहीं मिल रहा। ज्यादातर आदिवासियों का जीवन-यापन वन संपदा पर निर्भर है, अब वह भी संकट में है।

दुबे कहते हैं, "वैसे भी वायु और जल प्रदूषण से हजारों जड़ी-बूटियां नष्ट हो गई हैं, जो बची-खुची हैं वे सोने के लालच में नष्ट हो जाएंगी। सोन व हरदी पहाड़ी में सोना मिल भी गया तो उसका फायदा माफियाओं और सरकार को मिलेगा। आदिवासियों के किस्मत में तो सिर्फ उजड़ना (विस्थापन) ही लिखा है।"

हालांकि, सोनभद्र के सदर उपजिलाधिकारी (एसडीएम) यमुनाधर चौहान ने सोमवार को कहा कि जीएसआई के सर्वे में स्वर्ण अयस्क मिलने की संभावना पर सोन व हरदी पहाड़ी की निगरानी जरूर बढ़ा दी गई है, लेकिन किसी आदिवासी को जड़ी-बूटी खोदने से नहीं रोका गया।

एक सवाल के जवाब में चौहान कहते हैं कि यह सही है कि आदिवासियों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, लेकिन सभी को पात्रता के आधार पर सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है।


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it