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दिल्ली सरकार ने ऑक्सीजन की मांग को 4 गुना अधिक बताया, SC की पैनल की रिपोर्ट में दावा

दिल्ली के ऑक्सीजन ऑडिट के लिए गठित सुप्रीम कोर्ट के एक पैनल ने आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के कोविड की दूसरी लहर के चरम के दौरान 700 मीट्रिक टन (एमटी) मेडिकल ऑक्सीजन के दावों में कई खामियां पाई हैं

दिल्ली सरकार ने ऑक्सीजन की मांग को 4 गुना अधिक बताया, SC की पैनल की रिपोर्ट में दावा
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नई दिल्ली। दिल्ली के ऑक्सीजन ऑडिट के लिए गठित सुप्रीम कोर्ट के एक पैनल ने आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के कोविड की दूसरी लहर के चरम के दौरान 700 मीट्रिक टन (एमटी) मेडिकल ऑक्सीजन के दावों में कई खामियां पाई हैं।

पैनल ने कहा कि अरविंद केजरीवाल सरकार ने मेडिकल ऑक्सीजन की अपनी मांग को जरूरत से चार गुना ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया और अगर इसे जारी रखा जाता तो यह दूसरे राज्यों के लिए संकट पैदा कर सकता था।

ऑक्सीजन ऑडिट के लिए गठित उप समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली सरकार द्वारा दावा की गई वास्तविक ऑक्सीजन खपत 1,140 एमटी बेड क्षमता के आधार पर बनाए गए फामूर्ले के आधार पर तय खपत के फामूर्ले की तुलना में चार गुना अधिक थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली के चार अस्पतालों सिंघल, अरुणा आसफ अली अस्पताल, मॉडल अस्पताल और लिफेरे अस्पताल ने बहुत कम बिस्तरों के लिए बहुत अधिक मेडिकल ऑक्सीज की खपत का दावा किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह दावा स्पष्ट रूप से गलत प्रतीत होता है।

रिपोर्ट के अनुसार, पुनर्गणना के बाद पैनल ने कहा कि दिल्ली सरकार के आंकड़ों के अनुसार 183 अस्पतालों की वास्तविक खपत 1140 मीट्रिक टन थी। हालांकि चार अस्पतालों द्वारा दी गई गलत जानकारी को ठीक करने के बाद यह आंकड़ा 209 मीट्रिक टन पाया गया।

पैनल की अंतरिम रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली सरकार ने दावा किया कि ऑक्सीजन की मांग के लिए उसका फॉमूर्ला आईसीएमआर दिशानिदेशरें पर आधारित था, लेकिन उसके सामने ऐसा कोई दिशानिर्देश नहीं रखा गया था।

पेट्रोलियम और ऑक्सीजन सुरक्षा संगठन (पेसो या पीईएसओ) ने उप-समूह को बताया कि दिल्ली के प्रमुख अस्पतालों और रिफिलर्स के पास पर्याप्त मात्रा में तरल चिकित्सा ऑक्सीजन (एलएमओ) उपलब्ध है और चूंकि दिल्ली में अतिरिक्त ऑक्सीजन है, जो एलएमओ आपूर्ति को प्रभावित कर रही है। इसने कहा कि अगर ऐसी ही स्थिति कुछ समय और जारी रहती तो इससे अन्य राज्यों पर काफी नकारात्मक असर पड़ता, जिन्हें असल में मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत थी।

रिपोर्ट के मुताबिक सामान्य तौर पर दिल्ली में 284 से लेकर 372 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की जरूरत थी, लेकिन ज्यादा सप्लाई की डिमांड करने के कारण दूसरे राज्यों पर इसका असर पड़ा।

पैनल ने जोर देकर कहा कि दिल्ली सरकार ने गलत फॉमूर्ले का इस्तेमाल किया और मेडिकल ऑक्सीजन के लिए अतिरंजित दावे किए, और यह स्पष्ट नहीं था कि किस आधार पर दिल्ली ने शीर्ष अदालत में 700 मीट्रिक टन की मांग की। इसके अलावा ऑडिट के लिए उसके द्वारा एकत्र किए गए डेटा में घोर त्रुटियां पाई गई।

एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया की अध्यक्षता वाले इस पैनल में जल शक्ति मंत्रालय के संयुक्त सचिव सुबोध यादव, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के प्रमुख सचिव (गृह) भूपिंदर एस. भल्ला, मैक्स अस्पताल, दिल्ली के संदीप भूधिराजा और पेसो के संजय कुमार सिंह शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने छह मई को पैनल का गठन किया था।

रिपोर्ट में कहा गया है, यह स्पष्ट नहीं है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय में दिल्ली सरकार द्वारा किस आधार पर 700 एमटी का आवंटन मांगा गया था, जबकि एकत्रित डेटा में इतनी बड़ी त्रुटियां पाई गई हैं और इसे इंगित करने के लिए ऑक्सीजन ऑडिट किया गया था।

दिल्ली के ऑक्सीजन ऑडिट के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक पैनल ने कहा है कि दिल्ली सरकार ने 30 अप्रैल को गलत फॉमूर्ले का इस्तेमाल किया और कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के चरम के दौरान ऑक्सीजन के लिए अतिरंजित दावे किए। कुछ अस्पताल किलोलीटर और मीट्रिक टन के बीच अंतर नहीं कर सके और साथ ही 700 मीट्रिक टन का अनुमान लगाते समय इसकी जांच नहीं की गई थी।

दिल्ली सरकार के मेडिकल ऑक्सीजन की कमी के दावों के बाद, पांच मई को न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र को दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति बनाए रखने का निर्देश दिया था। केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जोरदार दलील देते हुए कहा था कि यह मांग अतिरंजित है और आवश्यकता लगभग 415 मीट्रिक टन है।


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