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विस्फोटक चबाने से भालू की मौत

बंगुरसिया सर्किल के संबलपुरी बीट में आज सुबह एक मादा भालू की मौत हो गई

विस्फोटक चबाने से भालू की मौत
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पीएम के बाद किया गया अंतिम संस्कार
रायगढ़। बंगुरसिया सर्किल के संबलपुरी बीट में आज सुबह एक मादा भालू की मौत हो गई। विभागीय कर्मचारियों के द्वारा मौके का जायजा लेने के बाद पता चला कि उसके मुंह मे चोट के निशान हैं और सम्भवत: जंगली सुअर के लिए बिछाए गए विस्पोटक सामग्री को चबाने से उसका मुंह में गंभीर चोट आयी थी।

इसके बाद वो घायल अवस्था में ही घूम रहा था और आज उसकी मौत हो गई। मामले में मृत भालू का पोस्टमार्टम करा कर उसका अंतिम संस्कार किया गया।

इस संबंध में मिली जानकारी के अनुसार आज सुबह करीब छह बजे बंगुरसिया सर्किल के संबलपुरी बीट के बादपाली गांव के करीब एक मादा भालू का सड़क किनारा पड़ा हुआ था। जिसे देखने के बाद ग्रामीणों ने मामले की जानकारी वन विभाग के कर्मचारियों को दी।

तब बीटगार्ड तत्काल मौके पर पहुंच गया, लेकिन सर्किल प्रभारी व विभाग के अन्य बड़े अधिकारी पोस्टमार्टम के लिए डॉक्टर का इंतजार करते हुए तीन घंटे विलंब से पहुंचे। जबकि मामले की जानकारी मिलने के बाद जिला सेव फारेस्ट के अध्यक्ष गोपाल अग्रवाल, सचिव व सदस्य सुबह सवा आठ बजे ही पहुंच गए।

इसके बाद जांच में देखा गया कि उसके मुंह में गंभीर चोट के निशान हैं और कीड़े भी लग रहे थे। ऐसे में प्रांरभिक जांच में यह अनुमान लगाया गया कि जंगली सुअर के बिछाए जाने वाले विस्पोटक सामाग्री को चबाने से उसका जबड़ा में गंभीर चोट आया है और वह खाना व पानी नहीं पीने के कारण आज उसकी मौत हो गई।

फिलहाल भालू के शव का पोस्टमार्टम कराकर उसका अंतिम संस्कार किया गया है। इस मामले में जिला सेव फारेस्ट के अध्यक्ष गोपाल अग्रवाल का कहना था कि भालू की मौत से यह लग रहा है कि वह विस्पोटक सामाग्री को चबाया है और विस्पोट होने से उसके मुंह में चोट लगा है। कर्मचारी भी मुख्यालय में नहीं रहते हैं। नाखून को भी शिकारी काट कर ले गए हैं।
नाखून भी काट कर ले गए
भालू के शव का जायजा करने में पता चला कि आगे के दोनों पैरों के पंजे से उसके सात नाखून को शिकारी काट कर ले गए। इससे पहले भी बादपाली में भालू को मारने के बाद उसके पंजे को काट कर ले जाने का मामला सामने आ चुका है।
मुख्यालय में नहीं रहते कर्मचारी
पिछले लंबे समय से यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि बड़े से लेकर छोटे वनकर्मचारी अपने मुख्यालय में नहीं रहते हैं। कोई सुबह जाकर रात में वापस रायगढ़ अपने घर आ जाता है, तो कोई वन अधिकारी शनिवार व रविवार को जिला मुख्यालय को छोड़ कर चले जाते हैं।
ऐसे में जंगल की सुरक्षा भगवान भरोसे होती है।


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