मंच से अलग हैं दुनिया के रंग : नटसम्राट
संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित प्रदर्श कलाओं के आयोजन में दिल्ली में नाटक 'नटसम्राट' देखने का मौका मिला

- योगेश पांडेय
संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित प्रदर्श कलाओं के आयोजन में दिल्ली में नाटक 'नटसम्राट' देखने का मौका मिला | नाटक में मुख्य भूमिका में आलोक चटर्जी थे |वरिष्ठ अभिनेता एवं रंगकर्मी आलोक चटर्जी को रंगमंच को समृद्ध करने एवं अभिनय के लिए, कुछ दिनों पहले ही राष्ट्रपति द्वारा प्रतिष्ठित राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है |
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित आलोक चटर्जी के पास दिल्ली, मप्र में रंगमंच का लंबा अनुभव है | यह वरिष्ठ अभिनेता, निर्देशक, अनुभवी प्रशिक्षक, प्राध्यापक होने के अतिरिक्त मप्र नाट्य विद्यालय, भोपाल के निदेशक भी रहे हैं |

मराठी में लिखे गए नाटक 'नटसम्राट' के लेखक विष्णु वामन शिरवाडकर हैं | डॉ श्रीराम लागू इन्हें तात्या साहेब शिरवाडकर कहा करते थे | सर्वप्रथम इस नाटक में जीवंत अभिनय करने के कारण डॉ श्रीराम लागू को पहले नटसम्राट के रूप में याद किया जाता है |
ऐसा सुना है कि डॉ लागू द्वारा अभिनीत इस नाटक को कई दिग्गजों ने मेलोड्रामा करार दिया था | लेकिन नाटक में शब्दों की अपनी महत्ता है इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है |
प्रयोगधर्मी नाट्य अपने स्थान पर सही है, लेकिन इस मेलोड्रामेटिक नाटक में आप अभिनेता एवं शब्दों की सत्ता, ताकत और सामर्थ्य को समझ पाते हैं | नटसम्राट की उपाधि प्राप्त अभिनेता गणपतराव को अपने चौथेपन में अपनी संतानों से तिरस्कार और अपमान मिलता है | मंच की रौशनी और चकाचौंध घने अंधकार में बदल गया है |

कहते हैं सच्चा अभिनेता वो जो दर्शकों को बांध कर रख देता है | यहाँ गणपतराव वेलवणकर की भूमिका में आलोक चटर्जी को मंच पर देख कर बांग्ला के सुप्रसिद्ध निर्देशक एवं अभिनेता शम्भु मित्र की उक्ति 'अभिनेता स्वयं में ही वाद्ययंत्र और वादक दोनों होता है' याद हो आयी | करीब 2घंटे20 मिनट लंबे बिना मध्यान्तर के इस नाटक में दर्शक बंधे रहे | मुक्ताकाशी मंच मेघदूत में बड़ी संख्या में दर्शकों ने खड़े हो कर नाटक देखा |
नाटक के दमदार कथ्य और अभिनय के साथ पूरी टीम ने न्याय किया | मंच पर काले बैकड्रॉप पर चित्रकारी ने नौटंकी के स्टेज के दिनों की याद दिलाई | स्टेज लाइट प्रभावी थी |
संगीत नाटक अकादमी के मुक्ताकाशी मंच मेघदूत में प्रदर्शित इस नाटक का हिन्दी भावानुवाद डॉ सच्चिदानंद जोशी का था और इसके निर्देशक थे जयंत देशमुख |
प्रकाश संचालन की जिम्मेदारी इस वर्ष संगीत अकादमी पुरस्कार से सम्मानित सउति चक्रवर्ती ने निभाई |


