Top
Begin typing your search above and press return to search.

'सताए हुए रोहिंग्याओं के दावे जायज हैं'

बांग्लादेश की विख्यात राजनीति विज्ञानी और प्रवासन मामले की विशेषज्ञ तस्नीम सिद्दीकी के अनुसार, म्यांमार से पलायन करने वाले रोहिंग्याओं का प्रतिभूतिकरण 'गलत' और 'दुर्भाग्यपूर्ण' है

सताए हुए रोहिंग्याओं के दावे जायज हैं
X

सहाना घोष

कोलकाता। बांग्लादेश की विख्यात राजनीति विज्ञानी और प्रवासन मामले की विशेषज्ञ तस्नीम सिद्दीकी के अनुसार, म्यांमार से पलायन करने वाले रोहिंग्याओं का प्रतिभूतिकरण 'गलत' और 'दुर्भाग्यपूर्ण' है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को मुसीबत झेल रहे रोहिंग्याओं को गले लगाना चाहिए।

ढाका विश्वविद्यालय के रिफ्यूजी और माइग्रेटरी मूवमेंट्स रिसर्च यूनिट (आरएमएमआरयू) की अध्यक्ष तस्नीम का मानना है कि रोहिंग्याओं के पास शरण पाने दावे जायज हैं।

उन्होंने आईएएनएस को ई-मेल के जरिए दिए साक्षात्कार में बताया, "बर्मा (म्यांमार) राज्य रोहिंग्याओं के खिलाफ एक जनसंहार नीति को अपना रहा है और रोहिंग्या के शरण पाने के दावे जायज हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी है कि उत्पीड़न के कारण घर छोड़कर भाग रहे लोगों को आश्रय दिया जाए।"

तस्नीम का कहना है, "उस संदर्भ में, मेरा मानना है कि बांग्लादेश और भारत दोनों ही विश्व समुदाय के सभ्य सदस्य हैं और उन्हें रोहिंग्याओं को गले लगना चाहिए और उन्हें आश्रय देना चाहिए।"

उन्होंने कहा, "बर्मा सरकार पर दवाब बनाना चाहिए, ताकि वह जनसंहार संबंधी गतिविधियों पर रोक लगाए और ऐसी स्थिति पैदा करे कि रोहिंग्या सम्मान के साथ वापस आ सकें। रोहिंग्याओं का प्रतिभूतिकरण 'गलत' और 'दुर्भाग्यपूर्ण' है।"

बांग्लादेश सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि वह रोहिंग्या शरणार्थियों की पहचान जबरन विस्थापित म्यांमार नागरिकों के रूप में करेगी। 25 अगस्त से अब तक 500,000 अपंजीकृत शरणार्थी म्यांमार से बांग्लादेश आ चुके हैं। जबकि भारत ने रोहिंग्याओं को अवैध प्रवासी बताया है और उन्हें शरणार्थी मानने तक से इनकार कर दिया है। भारत सरकार ने कहा है कि वह 40,000 रोहिंग्याओं को वापस भेजेगी।

तस्नीम ने कहा कि अन्य देशों पर रोहंग्याओं की आवाजाही का विभिन्न प्रभाव पड़ रहा है, अगर उचित नीतियों के जरिए उनके कौशल का उचित उपयोग किया जाए, तो वह देश के लिए एक संपत्ति हो सकते हैं।

उन्होंने कहा, "उनके विस्थापन के मूल कारणों का निवारण करने में विफलता के परिणामस्वरूप रोहिंग्या अपने घरों से भाग रहे हैं और दूसरे देशों में आश्रय ले रहे हैं। अन्य देशों में उनकी आवाजाही के विभिन्न प्रभाव पड़ रहे हैं। अगर उचित नीतियों के जरिए उनके कौशल का उचित उपयोग किया जाए, तो वह देश के लिए एक संपत्ति हो सकते हैं।"

विशेषज्ञ ने कहा कि अगर शरणार्थियों को आय-उत्पादक गतिविधियों के माध्यम से खुद का पेट भरने नहीं दिया जाता है या उन्हें बुनियादी जरूरतें प्रदान नहीं की जातीं, तो पर्यावरण सहित मेजबान समाज पर उनका विघटनकारी प्रभाव पर सकता है।

तस्नीम ने कहा, "इसलिए, शरणार्थियों के लिए उपयुक्त रणनीति विकसित करना मेजबान देश की जिम्मेदारी है।"

लंबे समय से चल रहे शरणार्थी संकट के दक्षिण एशियाई क्षेत्र की स्थिरता पर पड़ने वाले प्रभाव पर तस्नीम ने चिंता व्यक्त की।

उन्होंने कहा, "इसका क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। लोगों के किसी भी समूह को उनके घरों से तारयुक्त पूर्वाग्रहों के कारण भगा देना सही नहीं है। स्वतंत्रता और आजीविका सहित बुनियादी अधिकारों की कमी, लोगों को शोषण और हेरफेर के लिए कमजोर बनाने की पूर्व शर्त हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "यदि इस संकट को जल्दी हल नहीं किया जाता है तो उनमें से एक खंड को कट्टरपंथी बना दिया जा सकता है और निश्चित रूप से इससे क्षेत्र पर प्रभाव पड़ेगा।"

उन्होंने कहा, "बर्मा की नागरिकता के लिए रोहंगिया के सही दावे को तुरंत बहाल किया जाना चाहिए। सभी भेदभावपूर्ण कानूनों और आदेशों को रद्द करना चाहिए। शांति के रखवाले नहीं ता, अंतर्राष्ट्रीय उपदेशकों के माध्यम से ऐसी परिस्थितियां बनाई जानी चाहिए कि रोहिंग्या सम्मान के साथ बर्मा वापस जा सकें। भारत, बर्मा को प्रभावित करने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है।"


Next Story

Related Stories

All Rights Reserved. Copyright @2019
Share it