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बच्चों को पढ़ाने बेची जमीन अब तीनों बेटे शासकीय सेवा में

ग्राम परसाडीह के लालाराम खुद तो बमुश्किल सातवीं कक्षा तक पढ़ाई किया है

बच्चों को पढ़ाने बेची जमीन अब तीनों बेटे शासकीय सेवा में
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महासमुंद। ग्राम परसाडीह के लालाराम खुद तो बमुश्किल सातवीं कक्षा तक पढ़ाई किया है। वह शिक्षा के प्रति इस कदर गंभीर है कि अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए पुश्तैनी जमीन तक बेच डाली । मेहनत मजदूरी कर और जमीन बेचकर भी अपने तीनों बेटों को खूब पढ़ाया-लिखाया। अब तीनों बेटे शासकीय सेवा में है। लालाराम क्षेत्र के ग्रामीणों के लिए रोल माडल बन गया है। मेहनत मजदूरी कर जीवन यापन करने वाले महासमुंद जिले के ग्राम परसाडीह (तुमगांव)निवासी लालाराम सतनामी बताते हैं कि गरीबी और शिक्षा के प्रति जागरूकता नहीं होने से वे अपने समय में उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके । तब अपने बेटों को अच्छे से पढ़ाने का संकल्प लिया। बच्चों ने भी अपने पिता के सपनों पर पंख लगाने की ठानी और अच्छे मेहनत से प$ढाई की । बड़ा बेटा कंधे से कंधे मिलाकर रोजी-रोटी का जुगाड़ किया और साथ में अपनी प$ढाई भी जारी रखा। जंगल से लकड़ी काट गठ्ठा में बेचने के अलावा अन्य श्रम मूलक कार्य करते रहे ।

आरंग विकासखंड के कुसमुंद गांव में करीब 45 साल पहले लाला के पूर्वज रहते थे । शादी के बाद लालाराम अपने ससुराल ग्राम परसाडीह में आकर बस गए । यहां उन्होंने तथा उनके पुत्रों ने कठोर परिश्रम कर मुकाम हासिल किया। शिक्षा से अपना भविष्य संवारने का रास्ता तय किया । लालाराम का बड़ा बेटा गेंदराम बिजली विभाग झलप में लाईनमैन हैं। वहीं दूसरे नंबर का बेटा बेदराम ग्राम बोईरगांव (बागबाहरा) में शिक्षक पंचायत वर्ग-2 पदस्थ हैं। उनका छोटा बेटा निरंजन गिलहरे बेलसोंडा में ब्रांच पोस्टमास्टर है। 61 वर्षीय लालाराम ने शिक्षा के लिए पुश्तैनी जमीन का मोह त्यागकर अपने बच्चों को जमीन बेचकर भी पढ़ाया । जो क्षेत्र के ग्रामीणों के लिए अनुकरणीय उदाहरण बन गया है।

लाला की पत्नी रामबाई अशिक्षित होते हुए भी बेटों की पढ़ाई में कोई कोर कसर न रह जाए सोचकर अपने पति लाला का हर उतार-चढ़ाव में साथ देती रही । बड़े बेटे की प$ढाई के बाद भी करीब सात साल तक नौकरी नहीं मिलने से परिवार में निराशा का भाव आ गया था। लेकिन, किसी ने हार नहीं मानी और रोजी-मजदूरी की तलाश के साथ ही नौकरी ढूंढने का सिलसिला जारी रखा। इस बीच बिजली विभाग में उसकी नौकरी लग गई। बेटों के शासकीय सेवा में जाने के बाद लाला ने करीब 3 एकड़ जमीन खरीदी और खुद गांव में खेती करने लगे। अब लाला का पूरा परिवार सुखमय जीवन बसर कर रहा है।


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