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बंधनमुक्त होने के बाद भी नहीं मिल पाता योजना का लाभ

जिले में 16 साल में हजारों लोगों ने पलायन किया, मगर पुनर्वास राशि सिर्फ 570 बंधक मजदूरों को ही मिली, जबकि इन वर्षो में श्रम विभाग ने लगभग 995 मजदूरों को मुक्त कराने का दावा किया

बंधनमुक्त होने के बाद भी नहीं मिल पाता योजना का लाभ
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जांजगीर। जिले में 16 साल में हजारों लोगों ने पलायन किया, मगर पुनर्वास राशि सिर्फ 570 बंधक मजदूरों को ही मिली, जबकि इन वर्षो में श्रम विभाग ने लगभग 995 मजदूरों को मुक्त कराने का दावा किया है। हालांकि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है, मगर बंधक मुक्त प्रमाण पत्र के अभाव में सभी मजदूरों को इसका लाभ नहीं मिल पाता। इसका प्रमुख कारण यह है कि श्रमिकों को छुड़ाए जाने के बाद दूसरे राज्य के कलेक्टर या एसडीएम के द्वारा इन्हें आसानी से प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जाता।

जिले के मजदूर हर साल जम्मू कश्मीर, पंजाब, उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्यों में पलायन करते हैं। हर साल जिले से बड़ी तादात में ग्रामीण क्षेत्र के लोग पलायन होता है और इनमें से बहुत से मजदूर बंधक भी बनते हैं। किसी तरह सूचना मिलने या परिवार के किसी सदस्य के द्वारा भागकर जिले में शिकायत किए जाने पर यहां से उन्हें छुड़ाने पुलिस व श्रम विभाग की टीम भेजी जाती है। वहां से इन्हें मुक्त कराकर वापस लाया जाता है। इसके बाद पुनर्वास राशि 20 हजार रूपए दिए जाने का प्रावधान है, मगर इस राशि से अधिकंाश मजदूर वंचित हो जाते हैं।

इसका प्रमुख कारण जहां मजदूर बंधक बनते हैं वहां के प्रशासन द्वारा इन्हें बंधक मुक्त प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जाता। इसके पीछे संबंधित जिला व प्रदेश की बदनामी होने का भय है। श्रम विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में 16 साल में 995 बंधक मजदूर ही मुक्त हुए हैं, इनमें से 570 श्रमिकों को पुनर्वास राशि का लाभ प्राप्त हुआ है, जबकि मुक्त कराए गए बंधुआ मजदूरों की संख्या इससे कहीं अधिक है। ऐसे में शेष मजदूर पुनर्वास राशि से वंचित रह जाते हैं। वर्ष 2014 से पुनर्वास राशि 40 हजार रूपए कर दिया गया है, जबकि पहले यह राशि 20 हजार रूपए थी, मगर इसे प्राप्त करने के लिए बंधक मुक्त प्रमाण पत्र होना आवश्यक है।

इस संबंध में श्रम विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मुक्त मजदूरों को बंधक मुक्त प्रमाण पत्र के आधार पर ही पुनर्वास राशि का लाभ देने का प्रावधान है। जहां मजदूर बंधक बनते हैं उस जिले के डीएम या एसडीएम के द्वारा प्रमाण पत्र जारी करने पर ही मुक्त मजदूरों को पुनर्वास राशि दी जाती है।

मजदूरों के दलाल सक्रिय

मजदूरों को पलायन कराने के लिए गांव-गांव में लेबर सरदार सक्रिय हैं। इन्हें इसके बदले अच्छा खासा कमीशन मिल जाता है। इसकी लालच में वे मजदूरों को किसी भी प्रदेश में ले जाते हैं और उनकी मेहनत की कमाई का हिस्सा सरदारों को मिल जाता है। इसके कारण कई स्थानीय लोग भी यह काम करने लगे हैं।

पंचायतों में नहीं पलायन पंजी

राज्य शासन का निर्देश है कि दूसरे राज्य पलायन करने वालों की पंजी पंचायतों में रखी जाए। इसमें उनके दूसरे प्रदेश जाने की तिथि, ठेकेदार का नाम, मोबाइल नंबर, जहां पलायन कर रहे हैं उस शहर का नाम आदि का उल्लेख होना आवश्यक है।

इसके लिए श्रम विभाग ने सभी ब्लाक के जनपद सीईओ को जवाबदारी दी है, मगर सरपंचों के द्वारा इस काम में गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। अधिकांश पंचायतों में पलायन पंजी नहीं है।


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