पुनर्वास योजना का लाभ आधे बंधक मुक्त मजदूरों को ही मिल सका
मजदूरी की तलाश में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में जिले के मजदूर अन्य प्रांतों में पलायन करते है, जहां मजदूरी कर कुछ माह बाद फिर से वापस लौट आते है

जांजगीर। मजदूरी की तलाश में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में जिले के मजदूर अन्य प्रांतों में पलायन करते है, जहां मजदूरी कर कुछ माह बाद फिर से वापस लौट आते है। वहीं कई मजदूरों के बंधन बनाये जाने की घटना भी अक्सर जिला प्रशासन तक पहुंचती रही है। ऐसे मजदूरों को मुक्त करा शासन की पुर्नवास योजना का लाभ देने का प्रावधान है। मगर इस मामले में शासन-प्रशासन काफी पीछे है। बीते डेढ़ दशक में जिले से हजारों लोगों ने पलायन किया, लेकिन पुनर्वास का लाभ 570 बंधक मजदूरों को ही मिल सका। जबकि इन वर्षो में श्रम विभाग ने लगभग 995 मजदूरों को मुक्त कराने का दावा किया है।
हालांकि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है, मगर बंधक मुक्त प्रमाण पत्र के अभाव में सभी मजदूरों को इसका लाभ नहीं मिल पाता। श्रमिकों को छुड़ाए जाने के बाद दूसरे राज्य के कलेक्टर या एसडीएम के द्वारा इन्हें आसानी से प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जाता। धान की खरीफ फसल तैयार होने के बाद जिले में पलायन का दौर शुरू हो जाता है, हर साल यहां हजारों की तादात में लोग पलायन करते हैं और बड़ी संख्या में मजदूर बंधक भी बनते हैं। किसी तरह सूचना मिलने या परिवार के किसी सदस्य के द्वारा भागकर जिले में शिकायत किए जाने पर यहां से उन्हें छुड़ाने पुलिस व श्रम विभाग की टीम भेजी जाती है। वहां से इन्हें मुक्त कराकर वापस लाने के बाद पुनर्वास राशि 20 हजार रूपए दिए जाने का प्रावधान है, मगर इस राशि से अधिकांश मजदूर वंचित हो जाते हैं। इसका प्रमुख कारण जहां मजदूर बंधक बनते हैं वहां के प्रशासन द्वारा इन्हें बंधक मुक्त प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जाता।
इसके पीछे संबंधित जिला व प्रदेश की बदनामी होने का भय है। वर्ष 2014 से पुनर्वास राशि 40 हजार रूपए कर दिया गया है, जबकि पहले यह राशि 20 हजार रूपए थी, मगर इसे प्राप्त करने के लिए बंधक मुक्त प्रमाण पत्र होना आवश्यक है। श्रम विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में 16 साल में 995 बंधक मजदूर ही मुक्त हुए हैं, इनमें से 570 श्रमिकों को पुनर्वास राशि का लाभ प्राप्त हुआ है, जबकि मुक्त कराए गए बंधुआ मजदूरों की संख्या इससे कहीं अधिक है। ऐसे में शेष मजदूर पुनर्वास राशि से वंचित रह जाते हैं। जिले में मनरेगा के तहत मजदूरी भुगतान को लेकर होने वाली देरी के चलते अक्सर लोग स्थानीय स्तर पर काम करने के बजाय दीगर प्रांत में जाकर मजदूरी करने को आसान समझते है।
जिले में रबी मौसम में ज्यादातर क्षेत्रफल में खेती भी नहीं होती। इसके कारण मजदूरों को आवश्यकता अनुरूप काम नहीं मिल पाता, इसलिए पलायन उनकी मजबूरी है जिले के मजदूर हर साल जम्मू कश्मीर, पंजाब, उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्यों में पलायन करते हैं। कई बार यहां के मजदूर आंतकवादियों के गोलियों के शिकार हुए हैं वहीं लेह लद्दाख में बादल फटने से भी बनारी के 8 से अधिक मजदूरों की मौत वर्ष 2011 में हो गई। इसके बाद भी मजदूरों के पलायन का सिलसिला नहीं थमा।
गांव-गांव में दलाल हो गए है सक्रिय
मजदूरों को पलायन कराने के लिए गांव-गांव में लेबर सरदार सक्रिय हैं। इन्हें इसके बदले अच्छा खासा कमीशन मिल जाता है। इसकी लालच में वे मजदूरों को किसी भी प्रदेश में ले जाते हैं और उनकी मेहनत की कमाई का हिस्सा सरदारों को मिल जाता है। इसके कारण कई स्थानीय लोग भी यह काम करने लगे हैं। जनवरी से मार्च तक जिले में सबसे ज्यादा पलायन होता है।
पंचायतों के पास नहीं है रिकार्ड
राज्य शासन का निर्देश है कि दूसरे राज्य पलायन करने वालों की पंजी पंचायतों में रखी जाए। इसमें उनके दूसरे प्रदेश जाने की तिथि, ठेकेदार का नाम, मोबाइल नंबर, जहां पलायन कर रहे हैं उस शहर का नाम आदि का उल्लेख होना आवश्यक है। इसके लिए श्रम विभाग ने सभी ब्लाक के जनपद सीईओ को जवाबदारी दी है, मगर सरपंचों के द्वारा इस काम में गंभीरता नहीं दिखाई जा रही है। अधिकांश पंचायतों में पलायन पंजी नहीं है।
योजना का लाभ पाने प्रमाण पत्र आवश्यक
इस संबंध में श्रम पदाधिकारी बीआर पटेल का कहना है कि मुक्त मजदूरों को बंधक मुक्त प्रमाण पत्र के आधार पर ही पुनर्वास राशि का लाभ देने का प्रावधान है। जहां मजदूर बंधक बनते हैं उस जिले के डीएम या एसडीएम के द्वारा प्रमाण पत्र जारी करने पर ही मुक्त मजदूरों को पुनर्वास राशि दी जाती है। कई बार इस तरह की झूठी शिकायत मिली है। पुनर्वास राशि में शासन ने वृद्धि कर दी है।


