बीमा कंपनी एक माह के भीतर अदा करे दावे की राशि
मृतक के नशे में होने की बात कहकर बीमा कंपनी द्वारा मुआवजा देने से इंकार करने के मामले में दायर प्रकरण पर उपभोक्ता फोरम ने सुनवाई करते हुये नशे में होने को दुर्घटना का कारण नहीं मानते हुये एक माह के

जांजगीर। मृतक के नशे में होने की बात कहकर बीमा कंपनी द्वारा मुआवजा देने से इंकार करने के मामले में दायर प्रकरण पर उपभोक्ता फोरम ने सुनवाई करते हुये नशे में होने को दुर्घटना का कारण नहीं मानते हुये एक माह के भीतर बीमा राशि के भुगतान का आदेश दिया है। साथ ही मृतक के वारिश को मानसिक क्षतिपूर्ति के तहत 25 हजार तथा वाद व्यय बतौर 3 हजार रूपए भुगतान करने कहा है।
जिला उपभोक्ता फोरम में सक्ती तहसील के ग्राम पोरथा निवासी उमाशंकर राठौर ने वाद दायर किया था। वादी ने बताया कि उसके पुत्र संदीप राठौर का बचत खाता भारतीय स्टेट बैंक सक्ती शाखा में संचालित था। इस खाते में बैंक की सहायक बीमा कंपनी जनरल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा ग्रुप पर्सनल एक्सीडेंट पालिसी के तहत 10 लाख रूपए का बीमा किया था।
संदीप की गत 5 जून 2016 को सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी, जिस पर आवेदक ने बीमा कंपनी को क्लेम किया था, इस पर बीमा कंपनी ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देते हुये मृतक के नशे में होने से भुगतान नहीं करने की बात कहकर इंकार कर दिया था। बीमा कंपनी के दावों को उपभोक्ता फोरम के अध्यक्ष न्यायाधीश बीपी पाण्डेय व सदस्य मनरमन सिंह ने खारिज करते हुये दुर्घटना का कारण नशे में होना नहीं पाया। इसी तरह दुर्घटनाग्रस्त वाहन का चालक भी संदीप नहीं था।
इस आधार पर आवेदक उमाशंकर का दावा स्वीकार करते हुये जनरल इंश्योरेंस कंपनी एवं भारतीय स्टेट बैंक को निर्देश दिया गया कि आवेदक को एक माह की भीतर बीमा की राशि 10 रूपए का भुगतान वाद तिथि से 6 प्रतिशत व्याज के साथ किया जाये। साथ ही आवेदक को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 25 हजार तथा वाद व्यय के रूप में 3 हजार रूपए एक माह के भीतर प्रदान किया जाए।


