विश्व नेता बनने की महत्वाकांक्षा ने भारत को दलदल में फंसाया
विश्व नेता के रूप में पहचाने जाने की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लालसा ने देश को दलदल में डाल दिया है

- अरुण श्रीवास्तव
सहयोग का एक अन्य क्षेत्र क्वैड देशों के बीच समुद्री डोमेन जागरूकता स्थापित करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नेविगेशन की स्वतंत्रता भारत-प्रशांत क्षेत्र में, विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर में बनी रहे। जिस तरह ताइवान को चीन को मात देने की अमेरिकी नीति के केंद्र में रखा गया है, उससे लगता है कि वह दूसरा यूक्रेन बन जायेगा।
विश्व नेता के रूप में पहचाने जाने की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लालसा ने देश को दलदल में डाल दिया है। उनकी महत्वाकांक्षा ने वैश्विक बिरादरी के बीच वर्षों से बनी भारत की पहचान और विश्वसनीयता को खतरे में डाल दिया है। उन कारकों का व्यापक विश्लेषण करना भी छोड़ दिया जो अमेरिका या चीन या रूस को भारत को अपने पक्ष में करने के लिए प्रेरित करते हैं।
तीनों देशों के बीच शत्रुतापूर्ण संबंध एक ऐतिहासिक तथ्य रहे हैं। उनमें से किसी के साथ गठबंधन करने के परिणामी निहितार्थों से अवगत भारत ने पंडित नेहरू प्रधानमंत्रित्व के दिनों से ही समान दूरी बनाये रखा था। भारत के इस रूख को विकासशील देशों में प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि अर्जित करने के लिये बनाया गया था। यह दुखद है कि भारत के लोगों के बीच एक धारणा बनाई जा रही है कि इसे कभी विश्व शक्ति के रूप में मान्यता नहीं दी गई थी, जिसके लिए एक व्यक्तिपरक विश्लेषण की आवश्यकता है।
हाल के वर्षों में चीन तेजी से अमेरिकी राजनीतिक आधिपत्य के लिए एक संभावित खतरे के रूप में उभर रहा है और एकमात्र महाशक्ति होने का अमेरिकी दावा डगमगा गया है। चीनी खतरे की धारणा ने वैश्विक महाशक्ति अमेरिका के आत्मविश्वास को इस हद तक हिला दिया है कि उसके राष्ट्रपति जो बाइडन जून में अमेरिका यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी के लिए भारत को नाटो सदस्यता प्रदान करने के आश्चर्यजनक प्रस्ताव के साथ तैयार हैं।
भारत को नाटो सदस्य बनाने की अमेरिका की इच्छा एक खुला रहस्य है। लगभग एक दशक से खासकर डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति काल में भारत के नाटो में शामिल होने के मुद्दे ने जोर पकड़ा है। इसका कारण यह है कि भारत एक प्रमुख शक्ति होगा जिस पर अमेरिका इंडोपैसिफिक क्षेत्र में चीनी विस्तार की जांच के लिए निर्भर हो सकता है।
जापान में जी-7 की बैठक के ठीक बाद अमेरिका इस दिशा में आगे बढ़ गया है। क्वैड इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोग्राम में इंडोनेशिया और आसियान देशों सहित पहला बड़ा कदम उठाया गया है। क्वैड खुद को चीन के बेल्ट रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के लिए एक स्वशासी काऊंटर के रूप में विस्तारित कर रहा है। क्वैड इंडो-पैसिफिक तटीय राज्यों को प्रौद्योगिकी और वित्तीय सहायता और इन्फ्रा-बिल्डर्स प्रदान करेगा।
दूसरा,नैटोप्लस-5 एक सुरक्षा व्यवस्था है जो नाटो और पांच गठबंधन देशों-ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, इ•ाराइल और दक्षिण कोरिया को एक साथ लाती है। भारत को बोर्ड पर लाने से इन देशों के बीच निरंतर खुफिया जानकारी साझा करने में सुविधा होगी और भारत बिना किसी समय के नवीनतम सैन्य तकनीक तक पहुंच बना सकेगा।
संयुक्त राज्य अमेरिका और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के बीच सामरिक प्रतिस्पर्धा पर यूएस हाउस प्रवर समिति, जिसका नेतृत्व अध्यक्ष माइकगैलाघेर और रैंकिंग सदस्य राजा कृष्णमूर्ति ने किया, ने भारत को शामिल करने के लिए नाटोप्लस को मजबूत करने के माध्यम से ताइवान के प्रतिरोध को बढ़ाने के लिए एक नीति प्रस्ताव को व्यापक रूप से अपनाया।
अमेरिका ने लंबे समय से भारत के लिए नाटो का दरवाजा खुला रखा है। लेकिन यह भारत की ओर से हिचकिचाहट थी जो प्रक्रिया में देरी कर रही थी। हालांकि, उत्तरी अटलांटिक सैन्य गठबंधन के लिए अमेरिका के स्थायी प्रतिनिधि जूलियन स्मिथ ने पिछले हफ्ते ही यह संकेत दिया था कि मोदी और बाइडन के बीच कुछ उत्साहजनक आदान-प्रदान हुआ था। अमेरिका को विश्वास है कि मौजूदा विश्व राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य में भारत नाटो में शामिल होने में संकोच नहीं करेगा।
भारत सरकार ने पिछले साल कहा था कि वह आपसी हितों के वैश्विक मुद्दों पर विभिन्न हितधारकों के साथ जुडऩे की अपनी पहल के तहत नाटो के संपर्क में थी। स्मिथ ने कहा कि पहले नाटो के पास हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ कोई विशेष एजेंडा नहीं था, लेकिन हाल के वर्षों में गठबंधन ने अपने कुछ रणनीतिक दस्तावेजों में भारत-प्रशांत का उल्लेख करना शुरू कर दिया है और एक प्रणालीगत के रूप में चीन पर ध्यान केंद्रित करने के महत्व को भी मान्यता दी है।
कुछ अमेरिकी कांग्रेसी मोदी सरकार को नाटो में शामिल होने के लाभों के बारे में समझाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। ।
नाटो सदस्य के रूप में भारत को सूचीबद्ध करने के लिए जो सबसे हास्यास्पद तर्क पेश किया गया है, वह मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के तहत 2008 में हस्ताक्षरित भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग समझौते की तुलना नाटो में भारत के प्रवेश के साथ करने का प्रयास है। एक और आकर्षण जो भारत के सामने लटकाया जा रहा है कि भारतीय इंजीनियरों और वैज्ञानिकों को उच्चतम तकनीक का नेतृत्व करने के अवसर मिलेंगे। यह अंतत: भारत की मदद करेगा क्योंकि अमेरिकी तकनीक रूसी से बेहतर है।
क्वैड नेताओं द्वारा अपनाई गई शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक चीनी निगरानी से इंडो-पैसिफिक में पनडुब्बी केबलों की सुरक्षा और ताइवान में सैन्य आपात स्थिति के मामले में भविष्य में संभावित हस्तक्षेप था।
सहयोग का एक अन्य क्षेत्र क्वैड देशों के बीच समुद्री डोमेन जागरूकता स्थापित करना है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि नेविगेशन की स्वतंत्रता भारत-प्रशांत क्षेत्र में, विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर में बनी रहे। जिस तरह ताइवान को चीन को मात देने की अमेरिकी नीति के केंद्र में रखा गया है, उससे लगता है कि वह दूसरा यूक्रेन बन जायेगा।
जापान सागर में रूस-चीन का संयुक्त अभ्यास पहले से ही चल रहा है। हो सकता है कि भारत केवल शांति बनाये रखने का सुझाव देकर खुद को यूक्रेन से दूर रखने में सफल रहा हो, लेकिन घर के करीब इसे इंडोपैसिफिक क्षेत्र में उत्पन्न हो रहे संकट से बचाने के लिए एक कठिन प्रस्ताव मिलेगा।


