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दिल्ली से तो नहीं जुड़े उत्तर प्रदेश के 26 अरब के पीएफ घोटाले के तार!

उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन में हुए 26 अरब के पीएफ घोटाले में प्यादों पर भले ही शिकंजा कसा जा रहा है लेकिन बड़े अफसरों पर कार्रवाई न होने पर सवाल उठ रहे है

दिल्ली से तो नहीं जुड़े उत्तर प्रदेश के 26 अरब के पीएफ घोटाले के तार!
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- रतिभान त्रिपाठी

लखनऊ। उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन में हुए 26 अरब के पीएफ घोटाले में प्यादों पर भले ही शिकंजा कसा जा रहा है लेकिन बड़े अफसरों पर कार्रवाई न होने पर सवाल उठ रहे है। आखिर वह कौन सी वजह है कि जो बड़े अफसर इस मामले से जुड़े हुए है, उनका नाम तक नहीं लिया जा रहा है, जबकि नीचे के अफसरों पर कार्रवाई कर दी गई है। सत्ता के गलियारों में यह बात भी रह रहकर उठ रही है कि कहीं पूरे मामले के तार दिल्ली में बैठे कुछ लोगों से तो नहीं जुड़े हैं!

बिजली कर्मचारियों की भविष्यनिधि (पीएफ) का पैसा बढा़ने के लिए यूपीपीसीएल ट्रस्ट ने दूसरी जगहों पर निवेश का फैसला किया तो अखिलेश यादव की सरकार थी और उस सरकार में प्रमुख सचिव ऊर्जा के पद पर संजय अग्रवाल बैठे थे। यह वही संजय अग्रवाल हैं, जिनका नाम हाल में ही उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव पद के लिए गंभीरता से चला था। वह इन दिनों केंद्र सरकार में बड़े पद पर हैं।

अग्रवाल ही उस समय यूपीपीसीएल ट्रस्ट के चेयरमैन थे। जिन दूसरे बैंकों और कंपनियों में पीएफ की धनराशि ट्रांसफर करने का फैसला किया गया। उस नोट शीट पर संजय अग्रवाल ने हस्ताक्षर किए हैं। और उन्हीं के पद पर रहते हुए एडीएचएफएल नामक विवादित कंपनी को 21 करोड़ रुपये की धनराशि 17 मार्च 2017 को ट्रांसफर भी की गई। तब ट्रस्ट के सचिव के तौर पर प्रवीण कुमार गुप्ता और निदेशक वित्त के तौर पर सुधांशु द्विवेदी थे। पावर कारपोरेशन के तत्कालीन प्रबंध निदेशक एपी मिश्र उस कमेटी में विशेष आमंत्रित सदस्य थे। घोटाले में इन तीनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है।

सूत्र बताते हैं कि लिखा पढ़ी में ट्रस्ट सचिव को फैसले के लिए अधिकृत किया गया था लेकिन चेयरमैन को धनराशि ट्रांसफर होने की जानकारी न हो, ऐसा भी नहीं था। जानकारों का मानना है कि संजय अग्रवाल उस समय बतौर प्रमुख सचिव ऊर्जा बहुत पावरफुल अफसर थे, ऐसे में गलत कंपनी में पैसा लगाने का फैसला उनकी जानकारी में न हुआ हो, यह संभव ही नहीं । सूत्रों का कहना है कि नई सरकार में आलोक कुमार को प्रमुख सचिव ऊर्जा बनाए जाने के बाद करीब 4000 करोड़ रुपये ट्रस्ट से डीएचएफएल में भेजे गए। तो क्या ट्रस्ट के चेयरमैन के तौर पर वह विपुल धनराशि के ट्रांसफर से अनभिज्ञ रहे होंगे। पता चलने पर पैसा वापसी की प्रक्रिया शुरू की गई लेकिन कर्मचारियों के पीएफ के 2600 करोड़ फंस गए हैं। इस राशि की भरपाई कौन करेगा, एक बड़ा सवाल है।

जानकारों का यह भी कहना है कि डीएचएफएल जैसी विवादित कंपनी में विपुल धनराशि भेजते वक्त ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा से तथ्य छिपाए गए। और तो और जब मामले की गोपनीय शिकायत हुई तो उस शिकायत की जांच भी अफसरों ने चोरी छिपे ही कराई। बाद में जब भ्रष्टाचार का गंभीर मामला सामने आया तो ऊर्जा मंत्री ने पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराने का मुख्यमंत्री से आग्रह किया , वह चाहे अखिलेश सरकार के दौर में लिए गए फैसले की बात हो या फिर बाद में भेजी गई धनराशि का मामला हो।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी पीएफ घोटाले की सीबीआई जांच कराने को कहा है। अब देखने वाली बात यह कि यूपीपीसीएल ट्रस्ट के आका इस जद में आते हैं कि नहीं। भनक यह भी लग रही है कि सरकार कुछ बड़े अफसरों पर भी कार्रवाई करने जा रही है। हालांकि इस बीच एक आईएएस अफसर अपर्णा यू को हटाकर उनकी जगह एम देवराज को पोस्ट कर दिया गया है।


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