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दीपावली के पर्व पर कांच की हटरी में ठाकुर जी विराजते है

 उत्तर प्रदेश में मथुरा के गोकुल में दीपावली का पर्व के अवसर पर ठाकुर जी कांच की हटरी में विराजते है।

दीपावली के पर्व पर कांच की हटरी में ठाकुर जी विराजते है
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मथुरा। उत्तर प्रदेश में मथुरा के गोकुल में दीपावली का पर्व के अवसर पर ठाकुर जी कांच की हटरी में विराजते है। राजा ठाकुर मंदिर महंत बच्चू महराज ने बताया कि गोकुल के मंदिर की सेवा की तुलना किसी अन्य मंदिर से नही की जा सकती है। यहां की सेवा भाव का अनुभव इसे देखकर ही किया जा सकता है। मंदिर में बालस्वरूप सेवा होने के कारण यहां की दीपावली अनूठे तरीके से मनायी जाती है।

महंत ने बताया कि पावन भूमि में जन्म के बाद वासुदेव जी कान्हा को लेकर नन्दबाबा के यहां आए थे। उनका कहना था कि दीपावली के दिन मंदिर में ठाकुर जी कांच की हटरी में विराजते हैं। उस पर पड़ने वाला प्रकाश इन्द्रधनुषी बन जाता है। मंदिर में घी के दीपकों की दीप माला बन जाती है। मंदिर का कोना कोना शुचिता से इस प्रकार भर जाता है कि यहां भक्ति नृत्य करने लगती है।

उन्होंने बताया कि शयन के दर्शन में ठाकुर जी ’’कान जगाई’’ करते हैं। वे ’’मोर मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल ’’ धारण कर मंदिर की चौक में आते हैं। मंदिर में लाई गई गाय के कान में कहते हैं कि कल उसे आना है। गोवर्धन पूजा है।

मंहत बच्चू महराज ने बताया कि गोवर्धन पूजा के दिन ठाकुर जी निज महल से निकलकर मंदिर की चौक में विराजते हैं तथा पहले गिर्राज जी का पूजन एवं बाद में गौ पूजन होता है।

गाय के गोबर से विशाल गिर्राज जी बनाते हैं तथा पूजन के बाद गाय को ग्वारिया गोवर्धन के ऊपर चलाता है। उनका कहना है कि गोवर्धन ही ब्रजवासियों को सब कुछ देता है। गायों को गोवर्धन पर चरने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस दिन गाय को ठीक तरह से रखने के कारण ग्वारिया का भी पूजन किया जाता है। इसके बाद ठाकुर जी राजभोग अरोगते हैं और फिर अन्नकूट के दर्शन होते हैं।


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