जेएनयू में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश
दिल्ली का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय लम्बे समय से बीजेपी और केंद्र की मोदी सरकार के निशाने पर है. जब से केंद्र में मोदी सरकार बनी है तब से जेएनयू किसी ने किसी विवाद में फंसता रहा है. और अब एक बार फिर से ये विश्वविद्यालय चर्चा में है. और इस बार चर्चा हो रही है एक नए विषय को लेकर. जिसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ बताया जा रहा है.

जेएनयू में एक बार फिर विवाद शुरू हो गया है. विवाद की वजह बना है नया सब्जेक्ट. वैसे तो हर साल छात्रों के सिलेबस में कुछ ना कुछ बदलाव होता रहता है. लेकिन इस बार बदलाव से विवाद शुरू हो गया है. जेएनयू में दोहरी डिग्री वाले प्रोग्राम के तहत इंजीनयरिंग के छात्रों को इंटरनेशनल रिलेशन भी पढ़ाये जाते हैं. इसी में "काउंटर टेररिज्म" का एक नया सबजेक्ट जोड़ा गया है. 17 अगस्त को यूनिवर्सिटी की एकेडमिक काउंसिल की बैठक में इस पेपर के सिलेबस पर मुहर लगा दी गई है. इस विषय के प्रस्ताव को जब एकेडमिक काउंसिल के सामने लाया गया तो वहां भी कई सदस्यों ने इसका विरोध किया बावजूद इसके काउंसिल ने नए विषय पर अपनी मुहर लगा दी. हालंकि ये पेपर ऑप्शनल ही रखा गया है लेकिन इसके सिलेबस के कंटेंट पर विवाद शुरू हो गया है. इसमें इंजीनयरिंग के छात्रों को ये पढ़ाया जाएगा कि आतंकवाद से कैसे निपटा जाए और इसमें विश्व शक्तियों की भूमिका क्या हो? वहीं दूसरे पेपर में धार्मिक आतंकवाद के मसले पर ये कहा गया है कि इस्लामिक जिहादी आतंकवाद ही कट्टरवादी धार्मिक आतंकवाद का एकमात्र रूप है. उन्हें ऐतिहासिक तौर पर कम्युनिस्ट पृष्ठभूमि वाले देश चीन और रूस सहायता करते हैं. और इन्हीं के प्रभाव की वज़ह से कई कट्टर इस्लामिक देश प्रभावित भी हुए हैं. इसे लेकर अब राजनीतिक दलों ने आपत्ति दर्ज कराई है. सीपीआई राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र लिखकर इस विषय को तुरंत ही हटवाने की मांग की हैं. उन्होंने कहा शिक्षा के नाम पर अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने की कोशिशें हो रही है. बीजेपी सरकार शिक्षा का भी भगवाकरण करने की कोशिश कर रही है.वहीँ जेएनयू शिक्षक संघ की सचिव मौसमी बसु ने कहा कि इस तरह धर्म को आंतकवाद से जोड़ा जाएगा तो राह चलते लोगों और एकडेमिशयन में क्या अंतर होगा. म्यांमार और श्रीलंका में जो चल रहा है क्या हम उसे बौद्ध आतंकवाद कहते हैं? नहीं ना, हम आतंकवाद के मुद्दे को नए विषय में शामिल कर सकते हैं लेकिन ऐसा करने से पहले चर्चा होनी जरूरी है. जेएनयू शिक्षक संघ का आरोप है कि जिस स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ में इस विषय की रुपरेखा तैयार हुई उसके डीन को ऐसी कोई जानकारी ही नहीं थी. इंजीनयरिंग के डीन ये कह रहे हैं कि चूंकि ये विषय उनके क्षेत्र से बाहर का है इसलिए उन्होंने इसे मंजूरी दी है.


