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टीआरएस, कांग्रेस नेतृत्व वाले पीपुल्स फ्रंट के बीच तेलंगाना में कांटे की टक्कर

तेलंगाना में बुधवार को चुनाव प्रचार खत्म हो गया है। देश के इस नवनिर्मित राज्य में पहले पूर्ण विधानसभा चुनाव के लिए चुनावी मुकाबले की तस्वीर स्पष्ट हो चुकी है

टीआरएस, कांग्रेस नेतृत्व वाले पीपुल्स फ्रंट के बीच तेलंगाना में कांटे की टक्कर
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- मोहम्मद शफीक

हैदराबाद। तेलंगाना में बुधवार को चुनाव प्रचार खत्म हो गया है। देश के इस नवनिर्मित राज्य में पहले पूर्ण विधानसभा चुनाव के लिए चुनावी मुकाबले की तस्वीर स्पष्ट हो चुकी है। सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले पीपुल्स फ्रंट के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शुक्रवार को होने वाले मतदान में तीसरी बड़ी ताकत बनकर उभरी है। लेकिन इसकी ताकत कुछ निर्वाचन क्षेत्रों तक ही सीमित है। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के नेतृत्व वाला बहुजन वाम मोर्चा (बीएलडी) भी चुनाव मैदान में है।

2.80 करोड़ से अधिक योग्य मतदाता 119 निर्वाचन क्षेत्रों के 1,821 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे।

नवनिर्मित तेलंगाना में पहली सरकार बनाने के साढ़े चार सालों बाद टीआरएस विकास और कल्याणकारी योजनाओं के आधार पर सरकार में बने रहने के लिए पूरी जोर-आजमाइश कर रही है। पार्टी के अभियानों में तेलंगाना आत्म-सम्मान के नारों को भी शामिल किया गया है।

टीआरएस को पीपुल्स फ्रंट से एक कठिन चुनौती का सामना करना पड़ेगा, जिसमें तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और तेलंगाना जन समिति (टीजेएस) भी शामिल है, जो तेलंगाना आंदोलन में कभी केसीआर के मित्र रहे एम. कोदंडरम द्वारा गठित एक नई पार्टी है।

चुनाव कांग्रेस और तेदेपा के बीच नई दोस्ती की शुरुआत को भी चिह्न्ति करेगा, जिन्होंने एकजुट होने के लिए 37 वर्षीय प्रतिद्वंद्विता को पीछे छोड़ दिया है। कांग्रेस 94 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और बाकी सीटें उसने अपने सहयोगियों के लिए छोड़ दी है।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू, जिनकी तेदेपा ने 2014 में 15 सीटें जीती थी, ने 13 निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी गठबंधन बनाने के नायडू के प्रयासों के लिए यह चुनाव एक बड़ी परीक्षा होगी।

2014 के विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ-साथ आयोजित किए गए थे। टीआरएस ने 33 फीसदी वोटों के साथ 63 सीटों पर कब्जा किया था, जबकि कांग्रेस ने 24 फीसदी वोटों के साथ 21 सीटें हासिल की थी। तेदेपा और उसकी तत्कालीन सहयोगी भाजपा ने क्रमश: 15 और पांच सीटें हासिल की थी। इन दोनों को चुनाव में कुल 21 फीसदी (तेदेपा को 14 व भाजपा को सात फीसदी) वोट मिले थे।

वाईएसआर कांग्रेस को तीन फीसदी वोट और तीन सीटें मिली थीं। अन्य व निर्दलीय को 11 फीसदी वोट मिले थे।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने सीत सीटें जीती थीं। इस बार वाईएसआर कांग्रेस चुनाव नहीं लड़ रही है और उसने टीआरएस को समर्थन दिया है।

हैदराबाद में आठ निर्वाचन क्षेत्रों को छोड़कर जहां एमआईएम ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, वह बाकी पूरे राज्य में टीआरएस का समर्थन कर रही है।

टीआरएस अपनी जीती सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है। उसने पार्टी छोड़ने की कोशिश करने वाले सभी विधायकों को जोड़े रखा है और कांग्रेस और तेदेपा से आए लगभग दो दर्जन विधायकों को टिकट भी दिया है।

एक ओर जहां टीआरएस ने चुनावी अभियान में अपनी उपलब्धियों को रेखांकित किया है तो वहीं, पीपुल्स फ्रंट और भाजपा टीआरएस प्रमुख के. चंद्रशेखर राव को 'परिवारवाद' और अपने वादों को पूरा करने में विफल रहने पर घेर रहे हैं।

चुनाव मैदान में तेदेपा की मौजूदगी ने केसीआर को तेलंगाना आत्मसम्मान के मुद्दे को उठाने का मौका दिया है। उन्होंने लोगों से नायडू को तेलंगाना में भटकने तक न देने का आह्वान किया है और कहा है कि तेदेपा प्रमुख राज्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

उन्होंने कांग्रेस और भाजपा को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि अकेले टीआरएस राज्य के हितों की रक्षा कर सकती है। क्या आप दिल्ली की गुलामी करना चाहते हैं?

केसीआर ने 100 से अधिक रैलियों को संबोधित करते हुए टीआरएस अभियान का नेतृत्व किया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 25 सभाओं को संबोधित किया, जिनमें छह सभाओं में उन्होंने नायडू के साथ मंच साझा किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन सार्वजनिक सभाओं को संबोधित किया, जबकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी यहां आक्रामक अभियान चलाया है।


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