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तेलंगाना चुनाव : केसीआर विरोधी वोटरों में विभाजन रोकने के लिए कांग्रेस पर हमलावर होते जा रहे हैं भाजपा के आला नेता

तेलंगाना विधानसभा चुनाव को अब तक त्रिकोणीय बनाने में जुटी भाजपा ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए जमकर कांग्रेस पर निशाना साधना शुरू कर दिया है

तेलंगाना चुनाव : केसीआर विरोधी वोटरों में विभाजन रोकने के लिए कांग्रेस पर हमलावर होते जा रहे हैं भाजपा के आला नेता
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नई दिल्ली। तेलंगाना विधानसभा चुनाव को अब तक त्रिकोणीय बनाने में जुटी भाजपा ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए जमकर कांग्रेस पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह और जेपी नड्डा समेत भाजपा के तमाम दिग्गज नेता तेलंगाना की चुनावी रैलियों में जमकर कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं।

दरअसल, 2018 के पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को तेलंगाना में 28.43 प्रतिशत मत के साथ राज्य की 119 सदस्यीय विधान सभा में 19 विधान सभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। जबकि, भाजपा को 6.98 प्रतिशत मत मिलने के बावजूद सिर्फ एक ही सीट पर जीत हासिल हो पाई थी। लेकिन, इसके कुछ ही महीने बाद 2019 में हुए लोक सभा चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत बढ़कर 19.65 पर पहुंच गया और पार्टी के 4 लोक सभा सांसद चुन कर आए।

विधान सभा चुनाव की तुलना में लोक सभा चुनाव में कांग्रेस का भी मत प्रतिशत थोडा बढ़ा, लेकिन, 29.78 प्रतिशत वोट हासिल करने के बावजूद कांग्रेस लोक सभा की सिर्फ 3 सीटें ही जीत पाई। भाजपा की नजर अब कांग्रेस के इसी मध्यमार्गी वोट बैंक पर है जो आमतौर पर राज्य की बीआरएस सरकार और सीएम केसीआर की कट्टर विरोधी है।

दरअसल, भाजपा की मंशा यह है कि राज्य में सरकार विरोधी वोट में ज्यादा विभाजन न हो और इसके लिए कांग्रेस के वोट बैंक खासकर बहुसंख्यक समुदाय के वोटर या फिर मध्यमार्गी विचारधारा रखने वाले वोटरों को लुभाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है और इस अभियान की बागडोर पार्टी के आला नेताओं ने स्वयं संभाल रखी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तेलंगाना की चुनावी जनसभाओं में कह रहे हैं कि तेलंगाना को नष्ट करने के लिए कांग्रेस और केसीआर दोनों समान रूप से जिम्मेदार हैं और केवल भाजपा ही तेलंगाना को ठीक कर सकती है। वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तेलंगाना के वोटरों को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि कांग्रेस को वोट देने का मतलब है बीआरएस को वोट देना। शाह तो बाकायदा आंकड़ों के साथ यह बता रहे हैं कि 2014 में कांग्रेस के 7 विधायक, 2015 में 34 एमएलसी और 2018 में 12 विधायक केसीआर की पार्टी में शामिल हो गए।

शाह कांग्रेसी विधायकों को बिना गारंटी के चाइनीज माल बताते हुए राज्य की जनता को भरोसा दिला रहे हैं कि इनका कोई भरोसा नहीं है और चुनाव जीतने पर यह कभी भी बीआरएस में शामिल हो सकते हैं। अगर केसीआर को हटाना है तो कांग्रेस को वोट न दें, क्योंकि अगर कांग्रेस को वोट दिया तो उनके विधायक बीआरएस में जाकर शामिल हो जाएंगे। कांग्रेस और बीआरएस ने आपस में समझौता किया है, कांग्रेस तेलंगाना में केसीआर को मुख्यमंत्री बनाएगी और केसीआर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाएंगे। अगर केसीआर को हटाना है तो जनता के पास एक मात्र विकल्प है कि मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार बनाएं।

वहीं, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी अपनी चुनावी रैलियों में बीआरएस और कांग्रेस को एक ही सिक्के के दो पहलू बताते हुए कह रहे हैं कि दोनों ही पार्टी भ्रष्टाचारी, कुशासन और तुष्टिकरण की राजनीति करने वाली पार्टी है। अब दोनों ही पार्टियों की छुट्टी करके तेलंगाना राज्य में कमल खिलाने का समय आ गया है।


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