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तेलंगाना भाजपा ने फोन टैपिंग मामले में राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग की

तेलंगाना भाजपा ने पिछली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के कार्यकाल के दौरान सामने आए फोन टैपिंग आरोपों की सीबीआई जांच की मांग की

तेलंगाना भाजपा ने फोन टैपिंग मामले में राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग की
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हैदराबाद। तेलंगाना भाजपा ने शनिवार को पिछली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) सरकार के कार्यकाल के दौरान सामने आए फोन टैपिंग आरोपों की सीबीआई जांच की मांग की।

पार्टी सांसद के. लक्ष्मण के नेतृत्व में भाजपा नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें 2014 और 2023 के बीच बीआरएस/टीआरएस सरकार के कार्यकाल के दौरान निजी व्यक्तियों और राजनीतिक विरोधियों के फोन टैपिंग की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच की मांग कर रहे हैं।

भाजपा ने राज्यपाल से 'केंद्रीय गृह मंत्रालय को अवगत कराने के लिए राज्य से रिपोर्ट मांगने का आग्रह किया, क्योंकि मामला दोनों सरकारों के समवर्ती क्षेत्राधिकार और चुनाव आयोग के दायरे में आता है, इसलिए पूरी तरह से सीबीआई जांच की जरूरत है।'

ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि जब से तेलंगाना पुलिस ने मामला दर्ज किया है, तब से पूरे ऑपरेशन के मास्टरमाइंड वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की कथित गवाही के बारे में सार्वजनिक डोमेन में सबूत सामने आ रहे हैं।

ज्ञापन में कहा गया है ."सार्वजनिक क्षेत्र में जो तथ्य सामने आ रहे हैं, वे वास्तव में बहुत गंभीर हैं, क्योंकि वे एक तरफ राष्ट्र की सुरक्षा के बारे में गंभीर सवाल उठाते हैं और दूसरी तरफ व्यक्तियों की सुरक्षा और स्वतंत्रता के अधिकार का हनन करते हैं।"

राज्यपाल को सूचित किया गया कि अब गिरफ्तार किए गए पूर्व पुलिस अधिकारियों ने कथित तौर पर कबूल किया है कि 2018 के विधानसभा चुनाव, 2019 लोकसभा चुनाव और उसके बाद राज्य में उप-चुनावों के दौरान उन्होंने विपक्षी दलों के टेलीफोन टैपिंग का सहारा लिया था।

उन्होंने बयान दिया कि कैसे उन्होंने 2020 में दुब्बाका, 2021 में हुजूराबाद और नवंबर 2022 में मुंगोडे के उपचुनाव के दौरान एम. रघुनंदन राव (भाजपा उम्मीदवार) के फोन टैप किए थे।

ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि पुलिस अधिकारियों ने संपन्न व्यवसायियों, विशेषकर ज्‍वेलर्स के टेलीफोन भी टैप किए और इसका इस्तेमाल धन उगाही के लिए किया गया।

कथित तौर पर 36 से अधिक व्यवसायियों से बड़े पैमाने पर जबरन वसूली की गई।

इसमें आरोप लगाया गया कि सब कुछ मंत्रियों और स्वयं मुख्यमंत्री सहित बीआरएस के वरिष्ठ नेताओं के इशारे पर और उनकी सक्रिय मिलीभगत से हुआ।


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