सामान्य वार्ड में रखा जा रहा टीबी मरीजों को
मेडिकल कॉलेज अस्पताल में सामान्य रूप से बीमार मरीजों के साथ संक्रमित बीमारी टीबी के मरीजों को भी आईषोलेसन वार्ड में भर्ती किया जा रहा है

अंबिकापुर। मेडिकल कॉलेज अस्पताल में सामान्य रूप से बीमार मरीजों के साथ संक्रमित बीमारी टीबी के मरीजों को भी आईषोलेसन वार्ड में भर्ती किया जा रहा है। जिससे सामान्य मरीजों को भी टीबी का संक्रमण होने का खतरा बढ़ गया है। गौरतलब बात है कि संक्रमक बीमारी टीबी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हवा के माध्यम से संक्रमित कर सकता है।
इसके बावजूद भी उल्टी, दस्त की सामान्य बीमारी से ग्रस्त मरीजों के कक्ष में टीबी के मरीजों को रखा जा रहा है। अस्पताल प्रबंधन की इस लापरवाही का खामियाजा सामान्य रूप से बीमार मरीजों को चुकाना पढ़ सकता है। ज्ञात हो कि मेडिकल कॉलेज अस्पताल में वर्षों से टीबी मरीजों के लिए नि:शुल्क उपचार की व्यवस्था के साथ अलग से टीबी वार्ड कि व्यवस्था की गई है। जिला क्षय नियंत्रण केंद्र के नाम से अस्पताल परिसर में ही अलग व्यवस्था की गई है।
जहां टीबी की जांच उपरांत उन्हें आवष्यकता अनुसार टीबी वार्ड में भर्ती किया जाता है। जनवरी से अब तक टीबी से ग्रसित 635 मरीजों का चिन्हांकन किया जा चुका है। जबकि बिते वर्ष यह आंकड़ा 818 तक पहुंच गया है। टीबी बीमारी के उपचार में आये बदलाव के कारण अब इस बीमारी से ग्रसित मरीजों को प्रतिदिन दवाई दी जाती है। डॉट्स कैट-1, कैट-2 नाम से दी जाने वाली इन दवाईयों का केरल में परीक्षण सफल होने के बाद इन्हें छत्तीसगढ़ में भी मरीजों को दिया जा रहा है।
वहीं मुख्यमंत्री क्षय पोषण आहार योजना के तहत टीबी के मरीजों को पूरक पोषण के लिये प्रतिमाह डेढ किलो मूंगफली, एक किलो दूध पाउडर तथा एक लीटर सोयाबीन तेल प्रदान किया जाता है। टीबी के मरीजों को अस्पताल में भर्ती कर उनका उपचार करने के लिए टीबी अस्पताल में ही 10 बेड का वार्ड बनाया गया था जिसे अब टीबी के गंभीर मरीजों का उपचार हेतु प्रयुक्त कियेे जाने की बात कही जा रही है तथा वार्ड का नाम बदलकर एमडीआर टीबी वार्ड कर दिया गया है। वहीं सामान्य टीबी के मरीजों को उपचार के लिए आईसोलेशन वार्ड में भर्ती कराया जा रहा है।
आईसोलेषन वार्ड में मौसमी बीमारियों जैसे उल्टी दस्त से ग्रसित मरीजों को रखा जाता है। टीबी अर्थात क्षय रोग एक संक्रामक बीमारी है जो हवा पानी के माध्यम से भी फैलता है। ऐसे में क्षय रोग से ग्रसित मरीज को सामान्य मरीजों के साथ भर्ती करना एक गंभीर लापरवाही मानी जा सकती है ऐसे में अन्य मरीजों को भी टीबी की बीमारी हो सकती है। एक ओर तो सरकार क्षय रोग पर नियंत्रण पाने के लिए इसके मरीजों को नि:षुल्क चिकित्सा उपलब्ध करा रही है वहीं दूसरी ओर ऐसी लापरवाही कर अस्पताल में ही टीबी के मरीजों की संख्या बढ़ाने का काम किया जा रहा है।
जांच की सुविधा न होने से किया जाता है मरीजों को रेफर
टीबी अस्पताल में बनाया गया एमडीआर टीबी वार्ड केवल नाम का ही रह गया है इस वार्ड में उन मरीजों का उपचार होना है जो टीबी की गंभीर अवस्था से गुजर रहे है तथा उन्हें ढाई साल तक उपचार देने की आवश्यकता है ऐसे मरीजों की पहचान के लिए मेडिकल कॉेलेज अस्पताल में जांच की उचित सुविधा ही उपलब्ध नहीं है।
एमडीआर की स्थिति को पहचानने के लिए मरीज के थाइराईड, लीवर सहित अन्य कई प्रकार की जांच की जानी आवश्यक है परंतु इन जांचों की व्यवस्था अस्पताल में नहीं है इस कारण ऐसे मरीजों की पहचान करने के लिए उन्हें टीबी विभाग के अधिकारियों द्वारा बिलासपुर सिम्स जाकर उपचार कराने को कहा जाता है। इसके लिए मरीज को आने जाने का पैसा भी प्रदान किया जाता है ऐसे में नाम के लिए वार्ड बनाकर उसे खाली रखने का क्या औचित्य है यह तो अस्पताल प्रबंधन ही जाने।
अब तक 16सौ से अधिक मरीजो की हो चुकी है जांच
क्षय नियंत्रण केन्द्र में सरकार द्वारा फ्रांस से आयातित 25 लाख की लागत की सीबीनॉट मषीन उपलब्ध कराई गई है। इस मशीन के द्वारा टीबी मरीजों के बलगम (कफ) की जांच कर मात्र दो घंटे में यह बता दिया जाता है टीबी से ग्रसित है अथवा नहीं। इस वर्ष जनवरी माह स ेअब तक यहां कुल 1627 मरीजों का परीक्षण हो चुका है जिसमें 20 मरीजों को टीबी से ग्रसित पाया गया था। इस मशीन से जांच के लिए मरीज को रात भर की खांसी से निकले कम से कम पांच एमएल बलगम को लाना अनिवार्य है यहां जांच पूर्णत: नि:शुल्क होता है जबकि निजी चिकित्सालयों में यही जांच ढाई से तीन हजार रूपये प्रति व्यक्ति पड़ती हैं।


