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राज्यपालों पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, द्रमुक ने जताई खुशी

विधानसभा से पारित विधेयक को रोके जाने के मामले में आए उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) ने प्रसन्नता जताते हुए इसे अपनी जीत करार दिया

राज्यपालों पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, द्रमुक ने जताई खुशी
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विधानसभा विधेयकों पर रोक नहीं लगा सकते राज्यपाल : द्रमुक ने कहा हमारी जीत

  • तमिलनाडु में द्रमुक का स्वागत, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों की शक्तियों पर लगाई सीमा
  • कनिमोझी बोलीं- राज्यपाल को संविधान का पालन करना होगा, देरी अब अस्वीकार्य
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर द्रमुक का उत्साह, कहा जनादेश पर रोक नहीं लग सकती

चेन्नई। विधानसभा से पारित विधेयक को रोके जाने के मामले में गुरुवार को आए उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) ने प्रसन्नता जताते हुए इसे अपनी जीत करार दिया।

उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने अपने फैसले में यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्यपाल किसी भी विधेयक को अनिश्चितकाल तक रोक कर नहीं रख सकते। साथ ही उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधेेेयक को अनुमति देने के लिए कोई समय सीमा तय करने से इनकार कर दिया है।

तमिलनाडु से सांसद और द्रमुक संसदीय दल की नेता कनिमोझी ने उम्मीद जताई कि राज्यपाल आर. एन. रवि अब संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे। उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा कि विधानसभा के पारित विधेयकों को राज्यपाल का बिना देरी के सीलबंद लिफाफे में दिल्ली भेजना उनका संवैधानिक दायित्व है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने इसे दोहराया है और इसमें किसी प्रकार की देरी उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि जनता के जनादेश वाले विधानमंडल लोगों के अधिकारों और कल्याण के लिए कानून बनाते हैं, इसलिए इन पर अनावश्यक रुकावट नहीं डालनी चाहिए।

सुश्री कनिमोझी ने अपने पिता और पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि के उस कथन को याद किया कि दुनिया में सबसे आसान काम राज्यपाल का होता है।

गौरतलब है कि श्री रवि और तमिलनाडु की द्रमुक सरकार के बीच कई मुद्दों पर मतभेद रहे हैं, जिनमें राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्ति विवाद भी शामिल है। राज्यपाल पर राजभवन को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा के प्रचार का मंच बनाने और द्रविड़ विचारधारा को खारिज करने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं।

द्रमुक प्रवक्ता टी. के. एस. इलंगोवन ने कहा कि चुनी हुई विधानसभा के पारित विधेयकों पर राज्यपाल के सामने केवल तीन विकल्प होते हैं — मंजूरी देना, अस्वीकार करना या राष्ट्रपति के पास भेजना। यदि बिल संविधान के विपरीत हो, तो ही वे स्पष्टीकरण मांग सकते हैं, लेकिन उन्हें सीधे अस्वीकार करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल नियुक्त होते हैं, जबकि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री निर्वाचित होते हैं।


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