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बोलने वाले जानवर

छोटे डोंगर के पास ही सख्त काली चट्टान, नीला आँचल, बर्फ सी उजली धारा और कलगी-लगी घास के सब्ज बार्डरवाली माड़िन नदी भी नहीं दिखती

बोलने वाले जानवर
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- गुलशेर ख़ाँ शानी

मिस्टर जोन्स गाँव के लोगों से बातें करते हुए बहुत आगे निकल गए थे। हम लोग पीछे रह गए, यह देखकर वह जरा रुके और पलटकर आवाज दी। आँखों से बाइनाकुलर हटाकर, बड़े ही उत्साहवर्धक लहजे में मिसेज जोन्स मुझसे बोलीं, 'थकिए मत, अब सामने ही खेत है।'
और दाहिना हाथ बढ़ाकर मुझे अपने साथ ले लिया।

छोटे डोंगर के पास ही सख्त काली चट्टान, नीला आँचल, बर्फ सी उजली धारा और कलगी-लगी घास के सब्ज बार्डरवाली माड़िन नदी भी नहीं दिखती। नदी, सरसों की पीली चुन्नटवाले खेतों का दामन वहाँ कहाँ है बस, एक छोर से दूसरे छोर तक फैली मौन पहाड़ियों ने एक गोल दायरे में हमें बाँध-भर लिया है। सामने की पहाड़ी में हरियाले-से फैलाव के बीच उखड़े हुए जंगलों की जगह चमक रही है - शायद वहाँ किसी दूसरे गाँव वालों के कोसरा के खेत होंगे...।

मिसेज जोन्स शायद पहाड़ी चढ़ते-चढ़ते थकने लगी थीं, मेरे पीछे रह जाने के कारण जानने के बहाने रुककर लौटीं और मेरी ओर देखकर धूप और कुम्हलाहट से पपड़ाए होंठों से मुस्कराकर बोलीं, 'क्या बात है?'

फिर मेरे उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही पास आकर रुकीं, चारों ओर निगाहें चालीं और गर्दन से झूलते बाइनाकुलर को आँखों से लगाकर, जिधर मैं देख रहा था, उधर देखने लगीं।

मिस्टर जोन्स गाँव के लोगों से बातें करते हुए बहुत आगे निकल गए थे। हम लोग पीछे रह गए, यह देखकर वह जरा रुके और पलटकर आवाज दी। आँखों से बाइनाकुलर हटाकर, बड़े ही उत्साहवर्धक लहजे में मिसेज जोन्स मुझसे बोलीं, 'थकिए मत, अब सामने ही खेत है।'
और दाहिना हाथ बढ़ाकर मुझे अपने साथ ले लिया।

लेकिन खेत आने में अभी भी देर थी। देखता हूँ कि मिस्टर जोन्स की साँस तक अभी नहीं भरी, लेकिन मैं थक रहा हूँ और मिसेज जोन्स के पाँव अब आड़े-टेढ़े पड़ने लगे हैं। धूप की सारी चमक उनके स्कर्ट से अलगी-अलगी साफ, उजली और गठी हुई पिंडलियों पर लोट रही है। पोनी टेल स्टाइल में बँधे उनके भूरे-भूरे सूखे बाल अधर में टँगे हुए हैं। सफेद नाइलोन की उनकी शर्ट का कलर रह-रहकर गर्दन के पास खुलने और मुड़ने लगता है... मिसेज जोन्स गाढ़े नीले रंग के हैड-स्कार्फ और अमरीकन पैटर्न के चश्मे में कितनी भली लगती हैं।

सामने बाँसों का जंगल दूर-दूर तक चला गया था। उनमें रंग-बिरंगे पंखों वाले जंगली परिंदों की चहचहाहट हम लोगों की आहट सुन थोड़ी देर के लिए थमी और मिसेज जोन्स के पहुँचते-न-पहुँचते बाँस के नुकीले पत्तों और डगालियों को एकबारगी कँपाती उड़ गई।

आगे खेत था। सरसों की तरह बारीक दोनों वाले कोसरा की झुकी-झुकी बालियाँ ढलवान से लेकर पहाड़ी के चढ़ाव तक फैली हुई थीं। जगह-जगह उड़द के सूखे पौधों का ढेर, अधकटे पेड़ों के सिरों पर लदा हुआ था और जिर्रा भाजी के नन्हे पौधों में लगे खट्टे फूलों की सुर्क कलगियाँ हिल-हिलकर खींचती थीं।

खेत के सिर पर बनी झोंपड़ी के पास पहुँचकर मिस्टर जोन्स रुके और उनके रुकने के साथ ही उनके साथ के एक गाँव वाले ने जरा आगे बढ़कर जंगल में चारों ओर मुँह करके आवाज लगानी शुरू कर दी। आवाज सुनसान जंगल में गूँजती हुई पहाड़ियों से टकराई और लौट आई। मिसेज जोन्स वहाँ पहुँचकर शाल के पेड़ की छाँव में बैठ गईं और चारों ओर देख, एक तृप्ति का साँस लेती हुई बोलीं -
'आई लव दिस कंट्री!'

उस बात का समर्थन मिस्टर जोन्स ने केवल मुस्कराकर किया और पास खड़े स्कूल मास्टर से पूछने लगे, 'हम लोग तो ठीक अबूझमाड़ में हैं न?'
'नहीं यह तो छोर का एक गाँव है।'

स्कूल मास्टर पिछले आठ-दस बरसों से उस क्षेत्र में रह रहा है। शायद उन लोगों के जीवन को बहुत निकट से जानता है। आज इस पहाड़ी पर खेती है तो नीचे का आठ झोंपड़ी वाला गाँव भी बसा है। दो बरस बाद आकर देखिए तो यह पहाड़ी छोड़ लोग दूसरी जगह चले जाएँगे और यह गाँव खाली हो जाएगा। मिसेज जोन्स को इन बातों से कोई दिलचस्पी न थी, उकताकर वह उठीं, थोड़ी दूर तक टहलती रहीं फिर आँखों में बाइनाकुलर चढ़ा लिया। थकावट से मेरी टाँगें और लपकें दोनों भारी होने लगीं। छाँव में बैठा। दरख्त के तने से टिकटे ही सो जाऊँगा यह डर होते हुए भी अपने को सँभाल नहीं पाया। तन-मन दोनों स्वप्निल होने लगे...

थोड़ी देर पहले जब नीचे के गाँव में आए तो मिसेज जोन्स सबके आगे थीं। उनके स्वभाव में अजीव बात है। मन प्रसन्न होता है, और मूड़ में होती हैं तो बच्चों सी शरारत और चंचलता उनमें भर जाती है लेकिन किसी बात पर खिन्न होती हैं तो मि. जोन्स भी बातें करने की साहस नहीं कर पाते। मिसेज जोन्स कलाकार हैं। उन्हें प्रकृति का सौंदर्य चाहिए। सुंदर और सजीव लैंड-स्केप के लिए एक जगह वह कई-कई घंटे बिता देना चाहती थी पर उनके मिस्टर की बात और है। अपने देश से इतनी दूर बस्तर की प्रकृति पर मुग्ध होकर - नहीं, एंथ्रापालाजिस्ट की हैसियत से लोगों की और आकर्षित होकर आए थे।

अबूझमाड़ में दोपहर को गाँव गाँव नहीं, श्मशान हो जाता है। सड़क से कोई तीन मील जंगल में घुसने के बाद एक ऊँची जगह पर चार-आठ झोंपड़ियाँ दीखीं - यही गाँव था। लौकी की बेलें सभी झोंपड़ियों पर छाई थीं और पिछले आँगन के मंडप भर में फैली-बिखरी सेम की लताओं में नन्हे और प्यारे बैंगनी फूल सज रहे थे। कुछ दूर पर सलपी का बड़ा पेड़ खड़ा था जिसकी गर्दन में चँगी मटकी में रिसकर रस भर रहा था। उसके पास से ही सरककर सरसों के पीले खेतों का आँचल कोई तोरई के फूल की तरह लहराता था और इन सबकी पृष्ठभूमि में कोहरा-ढँपी नीली-नीली पहाड़ियों का जादू-भरा दायरा...

मिसेज जोन्स मोह में भरी खड़ी रह गईं। थोड़ी देर तक मंत्र-मुग्ध सी निहारती रहीं फिर पास के एक टीले पर जा कैमरे का एक स्नेप लेकर, राइटिंग-बोर्ड के एक कागज में पेन से स्केच खींचने लगीं। मिस्टर जोन्स ने कहा 'पूरा गाँव खाली है, सब लोग कहाँ गए?'

'दिन में लोग गाँव में नहीं मिलते। सुबह होते ही पहाड़ी पर चढ़े जाते हैं और वहाँ से शाम के पहले नहीं लौटते।'
मिसेज जोन्स ने टीले से ही स्केच खींचते-खींचते रुककर पूछा - 'इनके खेत कहाँ हैं?'

'पहाड़ी में ही तो खेत होते हैं।' कहकर स्कूल मास्टर के सामने की एक पहाड़ी के एक उखड़े हुए भाग की ओर इशारा कर दिया जो वहाँ से ऐसे दिखता था जैसे ऊँची-ऊँची घास के मैदान के बीच थोड़ी सी जगह किसी ने छील दी हो।

'चार माह ही जी तोड़कर ये लोग काम करते हैं। बाकी आठ माह पुरुष जंगल-जंगल शिकार करते भटकते हैं और औरतें जंगल में कंद-मूल और महुए के फूल इक_े करती है।'

मिसेज जोन्स वहाँ से उठकर एक झोंपड़ी के पास तक उठकर चली गई थीं। दरवाजे की दराज से भीतर झाँकती हुईं अनायास ही पुकार उठीं -
'यह देखो तो क्या है?'

झोंपड़ी के भीतर देखने को क्या था? बाहर खड़े रहकर पहाड़ियों, सलपी के पेड़ और सरसों के पीले खेतों के बैकग्राउंड में फोटो लेना या स्केच खींचना अच्छा लगता है, पर भीतर देखने पर सुंदरता के बदले कुरूपता झाँकती है। आदमी आज भी ऐसा जीवन जीता है।

मैंने मिसेज जोन्स का साथ दिया। कुछ नहीं, बाँस की एक-दो चटाइयाँ, उन पर एक-दो चिथड़े (शायद वह बिस्तर था), दो-तीन माटी की काली-काली हाँडियाँ, दीवार से लटका एक मांदर (बड़ा ढोल) और कुछ सूखी तूंबियाँ...

लेकिन मिसेज जोन्स कुछ और दिखा रही थीं - जहाँ चूल्हा था उसके ठीक ऊपर धुएँ से अँटा एक बाँस छुँचा हुआ था और उसमें मांस की बड़ी-बड़ी बोटियाँ सूखने के लिए लटक रही थीं।

मैंने कहा, 'यह गाय का मांस है, सुखाया जा रहा है।'
मिसेज जोन्स शायद आश्चर्य प्रकट करतीं लेकिन तभी उस मोटी सूअरनी का एक पिल्ला भटककर उनके पास तक आ गया था और उनके लौटते ही तेजी से भागा। खुशी से उछलकर उस पिल्ले की ओर देखती हुई बोलीं, 'लुक एट दैट पपी!'

मिसेज जोन्स जानवरों को बहुत प्यार करती हैं। जहाँ भी जाती हैं दो-एक कुत्ते-बिल्ली या बंदर अपने गिर्द जरूर समेट लेती हैं। अपने खाने में से भी आधा निकालकर वह उन जानवरों को दे डालती हैं भले ही वह मरियल या बीमार कुत्ते ही क्यों न हों।

जिधर वह पिल्ला भागा था - मिसेज जोन्स उधर ललचाई दृष्टि से ताक रही थीं। उनका बस चलता तो दौड़कर उसे पकड़ लेतीं और बड़े प्यार से उसे गोद में बिठाकर चुमकारतीं, सहलातीं और शायद उसके नर्म जिस्म पर अपने गाल तक धर देतीं।

लेकिन मिस्टर जोन्स कह रहे थे कि अब पहाड़ी पर चलना चाहिए। इससे उनके खेतों का देखना तो होगा ही, गाँव के सभी लोगों से भेंट भी हो जाएगी। सुनकर वहाँ से मिसेज जोन्स बच्चों की तरह दौड़ी हुई आईं और सबसे आगे अपने के कर, पुलकती हुई बोलीं-
'तो लो, पहाड़ी पर चढ़ने के लिए सबसे पहले मैं तैयार हूँ।'

पहाड़ी की चढ़ाई लगभग एक मील की थी। आधा फासला मिसेज जोन्स गुनगुनाती हुई तय कर गईं -
अकस्मात पास की झाड़ी में सूखे पत्ते तड़-तड़ टूटने लगे, बाँस की नुकीली टहनियाँ थरथराईं, छेदावरी काँटे का नाजुक पौधा कई बार काँपा, जिर्रा के सुर्ख फूल हिले... हिले और एक गेंहुएँ रंग की भरपूर जवान औरत बाँस की झाड़ी के पास आकर खड़ी हो गई - मांसल और खुली। तभी पटेल आया, गाँव के आठ-दस लोग इधर-उधर से सिमटते दिखाई दिए और मिसेज जोन्स ने मुझे आवाज दी।

चील के बादामी फल की तरह भरे पपोटों से निकली पलकें छेदावरी काँटे-सी होती हैं, फिर बनजामी के छेदावरी का एक पौधा अपने कान में क्यों खोंस रखा है? जिर्रा की कोई नस छिटककर उसकी पुतलियों में डोर बन गई है। भारी-भारी देखती हुईं मिस्टर जोन्स, मिसेज जोन्स और फिर मेरी पत्तल पर ठहर जाती हैं और उन काँटों से लहू-लुहान करती हुई पूछती हैं, 'और दूँ? और दूँ..?'

मिसेज जोन्स कोसरा का रेत मिला भर्ता खा रही हैं - उनसे नहीं खाया जाता। जिर्रा का इतना खट्टा शोरबा भी हलक के नीचे नहीं उतरता। लेकिन मिस्टर जोन्स एंथ्रपालाजिस्ट हैं। इन्हीं आदिम जातियों के बीच रहकर उन्हें काम करना है।

उनका खाना वह सबसे पहले खाने के अभ्यस्त हो जाना चाहते हैं। कोसरा के बारीक दानों और रेत के रंगों में अंतर नहीं होता। उन्हें चुनकर अलग-अलग करना कठिन है। रेत समेत चबाने पर भी मिस्टर जोन्स के चेहरे पर शिकन नहीं अलबत्ता मिसेज जोन्स बरबस मुस्करा रही हैं।

कुछ देर पहले जब जली हुई अँगीठी के राख फैले ढेर के पास तीन पत्तल बिछे और खाना बन जाने की सूचना के साथ हमें ले चलने के लिए बनजामी निकट आ खड़ी हुई तो मिसेज जोन्स ने भरपूर आँखों से बनजामी की ओर देखा और तत्काल ही अपने पर नजरें फिसलाती दूसरी और ताकने लगी। मिसेज जोन्स पूरी तरह क्यों नहीं देख पाईं? शायद उन्हें लगा हो कि बनजामी एक जवान लड़की है और इतने सारे पुरुषों के बीच इतने कम कपड़ों में - लगभग-नंगी खड़ी है।

सबने उठकर बनजामी का पीछा किया और राख बिखरी अँगीठी के पास आए। मिसेज जोन्स के पूछने पर मैं बताता हूँ कि बनजामी पहाड़ी के नीचे वाले गाँव की लड़की है। बाप नही है अकेली बूढ़ी माँ है अत: खेत का सारा काम अकेले करती है। किसी ने बताया कि बनजामी के लिए ही मारवी परलकोट की पहाड़ियों का साँवला, बलिष्ठ और हँसमुख मारवी क्या हर जगह मिल सकेगा? फिर सात महीने में दिन-रात साथ रहकर भी मारवी बनजामी को जीत क्यों नहीं पा रहा? बनजामी के मन में क्या कोई और है?

अँगीठी तक मारवी भी मेरे साथ आया। देखता हूँ कि बनजामी से अधिक संकोच शायद मारवी में है। जब वह निकट होती है तो पलक उठाकर बनजामी की ओर देखते मारवी से नहीं बनता लेकिन जब जरा दूर हो जाती है तो एकटक ताकता है। शायद कायर है।

सजे हुए पत्तल के पास पहुँचकर मिसेज जोन रुक गईं। अँगीठी के एक ओर बिल्कुल जर्जर बुढ़िया बैठी हुई थी। उसीके पास शायद उसकी बहू थी। तेईस से अधिक की नहीं होगी। एक बच्चा जनकर ही बूढ़ी हो रही थी।

मिसेज जोन्स ने केवल क्षणकाल के लिए उधर देखा फिर अपने पति की ओर शिकायत-भरी आँखों से देखने लगीं, 'यहाँ कैसे खाया जाएगा?'
खाने के दौरान मारवी को टटोलने के लिए पूछता हूँ, 'मारवी, घोटुल जाते हो?'
'हाँ'

'और वनजामी?'
'वह भी जाती है।'
'तुम दोनों साथ-साथ नाचते हो?'
'हाँ।'

'घोटुल में वनजामी तुम्हारे साथ सोती है?'
'नहीं,' मारवी झेंपकर हँसने लगता है, 'नाचने के बाद घर चली जाती है।'
मैं कहता हूँ, 'मारवी, जब तुम वनजामी को इतना प्यार करते हो तो उसे लेकर भाग क्यों नहीं जाते?'
उस बात का जवाब उसके पास नहीं, बस हँसता है।

दोपहर की साँस उखड़ चुकी थी। बदली के एक टुकड़े ने इधर छाँह कर दी लेकिन दूसरी तरफ की पहाड़ी में फैली रौशनी का आँचल और तेजी से लकलकाने लगा। मेरे बार-बार आग्रह करने पर बड़े ही संकोच-सहित मारवी ने एक गीत गाया लेकिन गीत की पंक्ति सुनकर ही वनजामी उठ कर चल दी।

नीचे उतरने में देर न थी। सारा सामान जो पिछले दो-तीन घंटों से बिखरा हुआ था, समेटा जाने लगा। थोड़ी देर के बाद वहाँ के हरे-हरे दरख्तों और नीली पहाड़ियों पर सुरमई आँचल डालकर कोई पलकों में खुमारआलूद नशा घोलेगा। उस आँचल को आहिस्ते-आहिस्ते सरकाकर यहीं कहीं से - आँगन में सूखते धान-सा चाँद जब अनायास ठिठक जाएगा तो यह पहाड़ी कैसी लगेगी?

सब विदा देने आए - पटेल, मारवी, जर्जर बुढ़िया, खेत में इधर-उधर फैले लोग, औरत और उसका बीमार बच्चा लेकिन वनजामी दिखाई न दी। जाते-जाते सब लोगों से घिरकर मुझे अनायास कुछ स्मरण आया, मैंने जोन्स से कहा - 'ये लोग बख्शीश माँगते हैं।'
मिस्टर जोन्स के कुछ कहने से पहले ही मिसेज जोन्स ने मेरी ओर आश्चर्य से देखते हुए पूछा, 'किस बात की?'
उस बात का जवाब देना मेरे लिए कठिन हो गया।

मिस्टर जोन्स ने पूछा - 'इन दो-चार रुपयों का ये लोग क्या करेंगे?'

'सब मिलकर शराब पीएँगे।' स्कूल मास्टर ने कहा। तत्काल मिसेज जोन्स बोलीं -'यह तो अच्छी बात नहीं,' उनके होंठों पर वही सूखी कठोरता घिर आई। मुझसे कहने लगीं, 'हमें पैसा देना अखर रहा है, यह बात नहीं। आप खुद सोचिए न, यूँ माँगकर पीना और पैसे बरबाद करना क्या अच्छा लगता है?'

मैं कुछ कह सकने की स्थिति में नहीं। यह सब उन्हें समझा नहीं सकता। सोचता हूँ अभी थोड़ी देर पहले मिसेज जोन्स इन लोगों की कितनी प्रशंसा कर रही थीं - इनकी सादगी, व्यवहार, भोलापन और मेहमाननवाजी की... और अब क्या हो गया?

मिस्टर जोन्स को कुछ न कहकर धीरे से मुस्कराते हुए रुपए निकालते देख उनके होंठों का सूखापन और गहरा हो गया। रुपए लेकर सलाम करते लोगों की ओर एक बार भी देखे या सलाम का जवाब दिए बिना वह तेजी से पलटीं और नीचे उतरने लगीं। औरत की गोद में बच्चे को देखर मैं सोचता हूँ कि सूअरनी का पिल्ला इस बच्चे से निश्चय ही खूबसूरत होगा नहीं तो मिसेज जोन्स इसे प्यार क्यों नहीं करतीं।


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