‘देश से बाहर निकाल दो, नहीं गाऊंगा वंदे मातरम’
वंदे मातरम को सरकारी संस्थाओं में अनिवार्य करने के मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर सिसायत शुरू हो गई है
नई दिल्ली। वंदे मातरम को सरकारी संस्थाओं में अनिवार्य करने के मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर सिसायत शुरू हो गई है। इस बार राजनीतिक पारा महाराष्ट्र में गरमाया हुआ है, जहां एक तरफ बीजेपी इसे स्कूलों और कॉलेजों में लागू करना चाहती है तो, वहीं एआईएमआईएम और समाजवादी पार्टी के विधायक इसका विरोध कर रहे है।
महाराष्ट्र से बीजेपी विधायक राज पुरोहित ने वंदे मातरम को अनिवार्य करने को लेकर राज्य सरकार से नए कानून बनाने की मांग की है, विधायक ने कहा कि मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को महाराष्ट्र में भी अपनाया जाना चाहिए। बीजेपी विधायक की इस मांग पर समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधायक अबू आजमी गुस्सा हो उठे और उन्होंने कहा कि वो वंदे मातरम का बेहद सम्मान करते हैं, लेकिन इसे किसी भी हालत में नहीं गाएंगे, चाहे कुछ भी हो जाए, उन्होंने कहा कि जब भारत का बंटवारा हुआ, तब कहीं ये बात नहीं बताई गई थी कि मुस्लिम अगर भारत में रुकते हैं तो हमें इसे गाने के लिए मजबूर किया जाएगा।
आप मुझे गोली मार सकते हैं या देश से बाहर फेंक सकते हैं, लेकिन हम इसे नहीं गाएंगे, आजमी के सुर में सुर मिलाते हुए ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुसलिमीन के विधायक वारिस पठान ने भी ऐलान किया है कि उनके सिर पर बंदूक रख दी जाए या गले पर चाकू रख दिया जाए, फिर भी वह वंदे मातरम नहीं गाएंगे, वहीं महाराष्ट्र में बीजेपी की सहयोगी शिवसेना भी इस बढ़ते विवाद में कूद पड़ी विवाद को और तूल देते हुए शिवसेना के नेता और परिवहन मंत्री दिवाकर रावते ने आजमी और पठान को 'देशद्रोही' कह डाला, अब आपको बताते कि आखिर वंदे मातरम को लेकर विवाद क्यों है।
यह गीत एक धर्म विशेष के हिसाब से भारतीय राष्ट्रवाद को परिभाषित करता है, जिसे लेकर कई वर्ग इसका विरोध करते रहे है। मुसलमान संगठनों ने ही नहीं बल्कि सिख, जैन, ईसाई और बौद्ध संगठन भी इसके खिलाफ है, विवाद को सुलझाने के लिए इसका हल यह निकाला गया कि इस गाने के शुरू के केवल दो अंतरे गाए जाएंगे जिनमें कोई धार्मिक पहलू नहीं है, लेकिन इस से हिन्दू और मुसलमान सांप्रदायिक तत्व संतुष्ट नहीं है आरएसएस का ही यह कहना है कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और यह पूरा गीत गाना चाहिए।


