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सुकुन देने वाला संकल्प लें

कल 21 सितंबर से शारदीय नवरात्रि पर्व शुभारंभ हो रहा है

सुकुन देने वाला संकल्प लें
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कल 21 सितंबर से शारदीय नवरात्रि पर्व शुभारंभ हो रहा है। देवी मंदिरों की सजावट लगभग पूर्ण हो गई है तथा घट स्थापना की पूरी तैयारियों के साथ ही लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करने की सद्इच्छा लेकर मनोकामना ज्योत भी 9 दिन जलाएंगे। डोंगरगढ़, रतनपुर, दंतेवाड़ा, खल्लारी, धमतरी के देवी मंदिरों में तो हजारों की संख्या में मनोकमना ज्योति प्रज्वलित होती है।

आस्था की यह रोशनी दिन दूनी रात चौगुनी फैलती जा रही है किंतु देव स्थलों चाहे देवी मंदिरों, मस्जिदों, मजारों, चर्च- गिरिजाघरों में इससे परे भी जाकर समाज में स्वस्फूर्त जनजागरण का संदेश भी प्रस्फुटित होता है। यह बात अलग है कि लोगों का ध्यान अच्छाई की तरफ बहुत कम और गैर जरूरी बहसों की तरफ ज्यादा होता है। धार्मिक उत्सवों में केवल आराधना और भक्ति ही मूल में नहीं होता उसके पीछे सामाजिक, समरसता, मानवीय संवेदना, सभ्यता संस्कृति तथा सद्भाव का दिया भी होता है।

धार्मिक उत्सवों में यह देखना भी चाहिए कि भक्ति, आराधना, मनोरंजन के पीछे आम लोगों की तकलीफें बढ़ाने का काम तो हम नहीं कर रहे हैं। देवी आराधना का प्रतिफल भी मनुष्य की सेवा से जुड़ा है और वह तब तक सार्थक नहीं है जब तक हम अपने साथ के मनुष्य को सुखी नहीं रख सकेंगे। यह देखा जाता है कि धार्मिक उत्सवों में सड़कों को इस बड़े तादाद पर घेर लिया जाता है कि लोगों का आवागमन बाधित हो जाता है।

सड़कों का आधा हिस्सा तो पंडाल से घिरा होता है और बचा खुचा आधा हिस्सा आरती और दर्शन की भीड़ से भर जाता है। इससे बड़ी तकलीफ की स्थिति तो रहती है किंतु देवी आस्था की वजह से लोग इसे बर्दाश्त भी करते है। बच्चों, रोगियों तथा नौकरीपेशा रोजी रोटी वालों को अपने गंतव्य तक पहुंचने में जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, विलंब से जो नुकसान उनको सहना पड़ता है इसका अहसास पंडाल के बाजू से गुजरने वाले हर राहगीर को होता है।

एक तरफ पर्व का उत्साह रहता है और दूसरी तरफ कामों को व्यवस्थित न कर पाने का मलाल भी। हमारा सोचना है समाज के जागरूक लोगों को खासकर जागरूक युवाओं को जो आयोजक होते हैं यह सोचना चाहिए कि उनके उत्सव से लोगों के सामान्य जीवन पर कोई व्यवधान न आए। देवी पंडालों में स्पीकर की आवाज कानूनन तय आवाज से ज्यादा न रहे। बेहतर तो यही हो कि सुबह-शाम केवल दो घंटे बहुत कम आवाज में स्पीकर चले।

गणेश विसर्जन में तो कानून की धज्जियां उड़ते लोगों ने देखा ऊंचे आवाज वाले बाजों गाजों पर प्रतिबंध के बावजूद तीन दिनों तक रात भर दनादन दिल हिला देने वाले शोर शराबों में विसर्जन होता रहा और कानून के रखवाले देखते रहे। यह एक धार्मिक उत्सव है, अनुशासित और संयमित होकर संचालित करने से सामाजिक जीवन को नई गति नई ऊंचाई मिलेगी। जो सभी को सुकुन देने वाला होगा। एक बार ऐसा भी संकल्प लें कि धार्मिक उत्सव जीवन को अनुशांसित करने वाला बने।


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