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टैगोर बिहार के मुजफ्फरपुर बहुत आते थे अपनी बेटी से मिलने

विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर की बेटी की शादी बिहार के मुजफ्फरपुर में हुई थी और इसलिए टैगोर अक्सर मुज़फ्फरपुर आते थे।

टैगोर बिहार के मुजफ्फरपुर बहुत आते थे अपनी बेटी से मिलने
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नयी दिल्ली । विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर की बेटी की शादी बिहार के मुजफ्फरपुर में हुई थी और इसलिए टैगोर अक्सर मुज़फ्फरपुर आते थे।

नोबल पुरस्कार मिलने से पहले ही उनका नागरिक अभिनंदन मुजफ्फरपुर के मुखर्जी सेमनरी स्कूल में हुआ था। इसी तरह महान बंगला लेखक शरतचंद्र भी मुजफ्फरपुर बहुत आते थे और यहां महीनों रहते थे। उनके प्रसिद्ध श्रीकांत उपन्यास का पात्र मुजफ्फरपुर का ही था।

इस तरह की अनेक दुर्लभ जानकारियां पद्मश्री से सम्मानित उत्तर छायावादी कवि डॉ. श्यामनंदन किशोर की पांच खंडों में प्रकाशित रचनावली में दी गईं हैं, जिसका लोकार्पण यहां गुरुवार 05 सितंबर को होगा। संस्कृत के प्रख्यात विद्वान राधावल्लभ त्रिपाठी इस रचनावली का लोकार्पण करेंगे।

बिहार में 05 सितंबर 1932 को जन्मे एवं बिहार विश्वविद्यालय के कुलपति रहे डॉ. किशोर आचार्य शिवपूजन सहाय, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानंदन पंत, रामबृक्ष बेनीपुरी, रामधारी सिंह दिनकर जैसे दिग्गज साहित्यकारों के संपर्क में रहे। उनकी पीएचडी के निर्देशक नंद दुलारे वाजपयी और हज़ारी प्रसाद द्विवेदी थे।

रचनावली की संपादक एवं दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की प्राध्यापिका डॉ. अनामिका ने यूनीवार्ता को बताया कि उनके पिता ने मां सरस्वती पर एक महाकाव्य भी लिखा था और वह पचास के दशक में मंचों पर काफी लोकप्रिय थे। वे दिनकर, जानकी वल्लभ शास्त्री, हरिवंश राय बच्चन, गोपाल सिंह नेपाली के साथ अपने गीतों का सस्वर पाठ भी करते थे। एक बार उन्होंने निराला के सामने भी अपनी रचना गाकर सुनाई थी। पन्त भी उनकी कविताओं से प्रभावित थे।

उन्होंने बताया कि उनके पिता के संस्मरणों से पता चलता है कि महादेवी वर्मा के पिता भागलपुर में शिक्षा विभाग में काम करते थे इसलिए महादेवी का बचपन काफी भागलपुर में बीता था। पंत के एक सांसद भाई जब पागल हो गए तो वे रांची के कांके में थे और उनसे मिलने इलाचंद्र जोशी और अमृत राय आये थे।

उन्होंने बताया कि निराला शिवपूजन सहाय का नाम सुनते ही खड़े हो जाते थे। उनके पिताजी ने जब निराला को उनकी बीमारी का हल बताया तो वे फौरन खड़े हो गए और शून्य में हाथ जोड़कर बुदबुदाने लगे। इस तरह के अनेक संस्मरण उनके पिता के पास थे। इस रचनावली के प्रकाशन से उनके पिता के बारे में ही नहीं हिंदी साहित्य के बारे में कई दुर्लभ जानकारियां मिलेंगी।


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