साहित्य अकादेमी द्वारा प्रभाकर माचवे जन्मशतवार्षिकी पर आयोजित संगोष्ठी संपन्न
प्रभाकर माचवे की जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर आज साहित्य अकादेमी के सभाकक्ष में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया

नई दिल्ली। प्रभाकर माचवे की जन्मशतवार्षिकी के अवसर पर आज साहित्य अकादेमी के सभाकक्ष में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। अकादेमी के सचिव ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि प्रभाकर माचवे एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक संस्थान थे। उन्होंने लगभग सभी विधाओं में लेखन किया और भारतीय साहित्य को समृद्ध किया। उनकी विशेष ख्याति एक कवि, और कथाकार के साथ-साथ एक प्रभाववादी चित्रकार के रूप में है। राष्ट्रीय शांति से लेकर विश्व शांति तक की उनकी सोच रही है। वे कई पीढिय़ों को प्रेरणा देने वाले साहित्यकार थे।
साहित्य अकादेमी के हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक सूर्यप्रसाद दीक्षित ने आरंभिक वक्तव्य में माचवे जी की जन्मशतवार्षिकी के आयोजन के लिए अकादेमी को धन्यवाद देते हुए कहा कि माचवे जीे बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी तीनों भाषाओं के पठन-पाठन से वे जुड़े रहे। वे विभक्तियों के साथ शब्द जोड़कर नए शब्दों का निर्माण करने वाले समर्पित लेखक रहे हैं। वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ-साथ यथार्थता को स्वीकार करने वाले बहुभाषाविद, बहुविचारधारा वाले सम्यक लेखक थे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रख्यात कवि एवं लेखक रामदरश मिश्र थे। उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि प्रभाकर माचवे एक प्रयोगवादी रचनाकार थे। उनकी रचनाओं में अगंभीरता में भी गंभीरता, खुरदरेपन का सौंदर्य था। उन्होंने साहित्य के नए-नए रूपों को प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि प्रभाकर माचवे की सुपुत्री चेतना कोहली थीं। उन्होंने साहित्य अकादेमी का आभार प्रकट करते हुए पिता के रूप में माचवे के सादगीपूर्ण सरल जीवन के बारे में अपने संस्मरण सुनाए। उन्होंने कहा कि उनका मूल मंत्र था - ज्ञान बांटना। वे ज्ञान अर्जन और ज्ञान बाँटने में विश्वास करते थे। उन्होंने कहा कि अकादेमी ने संगोष्ठी के माध्यम से तो उनकी जन्मशती पर विमर्श की शुरुआत की है, हम चाहेंगे कि आगे भी उन पर कार्य गंभीर कार्य हो। बीज वक्तव्य देते हुए प्रख्यात आलोचक व विद्वान इंद्रनाथ चौधुरी ने कहा कि माचवे स्पष्टवादी थे। अध्यक्षीय वक्तव्य अकादेमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने दिया और कहा कि माचवे ने शिष्य परंपरा नहीं बनाई, एक निस्संगता का भाव माचवे में भी दिखाई पड़ता है।


