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तमिलनाडु : राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव से गहराया कृषि संकट

केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किसानों के संकट से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता और आज जब सबसे ज़्यादा ज़रूरत है तो राज्य सरकार भी निर्बल और नासमझ है। इन दोनों सरकारों की नाकामी की वजह से किसान गहरे संकट में हैं

तमिलनाडु में 4 दिवसीय "किसान अधिकार यात्रा" समापन

नई दिल्ली। तमिलनाडु के 7 गंभीर सूखा प्रभावित जिलों में 4 मई से 7 मई तक चलने वाली 4 दिवसीय "किसान अधिकार यात्रा" का कल समापन हो गया। यह यात्रा स्वराज अभियान के जय किसान आंदोलन, एकता परिषद्, जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय, आशा और कई स्थानीय किसान संगठनों के सहयोग से हुआ।

इस यात्रा के दौरान सभी लोग नागपट्टिनम, थरवरूर, तंजावुर अरियलुर, पेरम्बल, करूर और त्रिची जैसे सूखाग्रस्त इलाक़ों में गए। तमिलनाडु में ऐसा सूखा 140 सालों के बाद आया है। किसान अधिकार यात्रा से यह सामने आया कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी से खेती-किसानी और किसानों का संकट किस हद तक गहराता जा रहा है। संकट की इस घड़ी में भी केंद्र और राज्य सरकारें बहुत ही असंवेदनशील हैं।

यह स्पष्ट हो गया है कि केंद्र सरकार को तमिलनाडु में किसानों के संकट से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता और आज जब सबसे ज़्यादा ज़रूरत है तो राज्य सरकार भी निर्बल और नासमझ है। इन दोनों सरकारों की नाकामी की वजह से किसान गहरे संकट में हैं।

ध्यान देने वाली बात है कि दिल्ली में तमिलनाडु के किसानों के हिम्मती प्रदर्शन के बावजूद भी केंद्र सरकार किसानों के संकट के प्रति आँख मूँदे रही। उसके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी। इसके पीछे केंद्र और राज्य सरकार के बीच कमज़ोर रिश्ता भी एक कारण है।

केंद्र सरकार ने तमिलनाडु के एनडीआरएफ सहयोग राशि की माँग को 39,565 करोड़ रू से काट कर 1793.63 करोड़ रू कर दिया। यह राशि पिछले साल सूखा राहत के लिए महाराष्ट्र को दी गयी 3024 करोड़ रूपये से भी काफ़ी कम है।

केंद्र सरकार ने तो सूखा के साल में ही मनरेगा के कार्यदिवस में भी 34 फीसदी की कटौती कर दी है।

किसान अधिकार यात्रा के अपने अनुभव के बारे में बताते हुए जय किसान आन्दोलन के संस्थापक योगेन्द्र यादव ने कह कि

"यह यात्रा हमारे लिए सकारात्मक राष्ट्रवाद और किसान एकता का ऊर्जावान अनुभव रहा। जब तमिलनाडु के किसान संकट में हैं तो देश भर से लोग आए और उनके साथ खड़े हुए। हमारा राष्ट्रवाद देश के बाहर बाहर में दुश्मन तलाश करने वाला नहीं बल्कि देश के भीतर सेतु बनाने वाला राष्ट्रवाद है।"


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