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सर्वोच्च न्यायालय ने हत्या के लिए मृत्युदंड की वैधता बरकरार रखी

 सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत हत्या के लिए मृत्युदंड की वैधता को बरकरार रखा, जबकि अदालत ने छन्नू लाल वर्मा के मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया

सर्वोच्च न्यायालय ने हत्या के लिए मृत्युदंड की वैधता बरकरार रखी
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नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत हत्या के लिए मृत्युदंड की वैधता को बरकरार रखा, जबकि अदालत ने छन्नू लाल वर्मा के मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया। न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने दो बनाम एक के बहुमत से आईपीसी की धारा 302 के तहत मृत्युदंड की सजा के प्रावधान को बरकरार रखा।

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने आईपीसी की धारा 302 के तहत मृत्युदंड की सजा के प्रावधान को बरकरार रखा, जबकि न्यायमूर्ति जोसेफ इस विचार से सहमत नहीं थे। उन्होंने मृत्युदंड की समीक्षा करने की बात कही क्योंकि जघन्य अपराध रोकने में यह विफल रहा है।

जोसेफ गुरुवार को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। उन्होंने विधि आयोग की 262 रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि जघन्य अपराध को रोकने में मृत्युदंड निवारक बनने में विफल रहा है।

हालांकि न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने मृत्युदंड को दंड संहिता में कायम रखने के संबंध में न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता के मत का समर्थन किया।

बहुमत से लिए गए फैसले में बचन सिंह और मछी सिंह मामले में शीर्ष अदालत के पूर्व फैसलों का जिक्र करते हुए मृत्यु दंड की वैधता को कायम रखा गया।

उन्होंने कहा कि मृत्यदंड की वैधता और औचित्य का दोबारा परीक्षण करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

इससे पहले दिल्ली दुष्कर्म के मामले में शीर्ष अदालत ने मृत्युदंड की वैधता बरकरार रखी थी और 1980 में बचन सिंह मामले में शीर्ष अदालत ने मृत्युदंड के लिए दुर्लभतम मामले का नियम तय किया था।

मौजूदा मामले में तीन न्यायाधीशों ने मृत्यदंड की वैधता पर मतभेद के साथ फैसला सुनाते हुए छत्तीसगढ़ के छन्नू लाल वर्मा के मृत्यु दंड को बदल दिया। छन्नू लाल वर्मा को निचलील अदालत ने मृत्यु दंड की सजा सुनाई थी जिसे उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था।

वर्मा को तीन लोगों की हत्या करने के आरोप में अभियुक्त करार दिया गया। ये तीनों लोग दुष्कर्म के एक मामले में उनके खिलाफ गवाह थे। उसे दुष्कर्म के मामले में दोषमुक्त करार दिया गया था। उसने 25 वर्षीय रत्ना बाई, उसके ससुर राम साहू और सास फिरतिन बाई की हत्या की थी।


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