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सुप्रीम कोर्ट वन्नियार सब-कोटा पर तमिलनाडु का कानून रद्द करने के खिलाफ याचिका को जांचेगा

सर्वोच्च न्यायालय गुरुवार को तमिलनाडु सरकार और अन्य की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया, जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी

सुप्रीम कोर्ट वन्नियार सब-कोटा पर तमिलनाडु का कानून रद्द करने के खिलाफ याचिका को जांचेगा
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नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय गुरुवार को तमिलनाडु सरकार और अन्य की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया, जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। याचिका में वन्नियार समुदाय को सबसे पिछड़ा वर्ग श्रेणी के तहत आंतरिक 10.5 प्रतिशत आरक्षण पर कानून को रद्द कर दिया गया था। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय का अंतरिम आदेश जारी रहेगा और कोटा के तहत पहले से की गई नियुक्तियों में कोई बाधा नहीं आएगी। तमिलनाडु सरकार, राजनीतिक दल पीएमके और अन्य ने उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के 1 नवंबर के आदेश को चुनौती देते हुए कहा कि राज्य में पिछड़ेपन का अध्ययन नहीं हुआ है।

जस्टिस बी.आर. गवई और बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने उन लोगों को नोटिस जारी किया, जिन्होंने उच्च न्यायालय के समक्ष कानून को चुनौती दी थी। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई फरवरी के दूसरे सप्ताह में होना तय किया। पीठ ने स्पष्ट किया कि कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा, क्योंकि मामला महत्वपूर्ण है, जिसका शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और नौकरियों में नियुक्तियों पर प्रभाव पड़ेगा।

वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एम. सिंघवी ने राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि इंद्र साहनी के फैसले (मंडल आयोग) ने पिछड़े वर्गो के बीच उप-वर्गीकरण की अवधारणा को मान्यता दी। हालांकि, पीठ ने कहा कि कानून बनाने के लिए राज्य विधायिका की क्षमता के मुद्दे पर तर्क दिया जाना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि तमिलनाडु में सबसे पिछड़ा वर्ग और विमुक्त समुदाय अधिनियम, 2021 के आरक्षण के तहत राज्य के शैक्षणिक संस्थानों और सेवाओं में नियुक्तियों या पदों का विशेष आरक्षण संविधान के प्रावधानों के विपरीत है।

राज्य सरकार ने विभिन्न रिपोर्टों और आंकड़ों का हवाला दिया था कि वन्नियार सबसे पिछड़े वर्गो में अधिक पिछड़े हैं।

उच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार के पास कानून पारित करने की क्षमता का अभाव है, क्योंकि इसे 105वें संविधान संशोधन से पहले लाया गया था।

इस संशोधन ने शीर्ष अदालत के मराठा कोटा फैसले के प्रभाव को खत्म करके सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गो की पहचान करने की राज्यों की शक्ति को बहाल कर दिया था।


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