बुलडोज़र पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती वाजिब
पिछले कुछ समय से प्रशासकीय आतंक का प्रतीक बन चुकी बुलडोज़र न्याय प्रणाली आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर आ ही गई

पिछले कुछ समय से प्रशासकीय आतंक का प्रतीक बन चुकी बुलडोज़र न्याय प्रणाली आखिरकार सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर आ ही गई। भारतीय जनता पार्टी द्वारा जिन राज्यों में शासन किया जा रहा है, वहां की सरकारें विरोधियों, खासकर अल्पसंख्यकों के घरों को केवल इस आधार पर बेरहमी से गिराती आ रही हैं जो किसी न किसी अपराध में आरोपी बनाए जाते हैं। दोष सिद्धि के पहले ही सरकारों द्वारा मकान-दूकान ध्वस्त करना भाजपा सरकारों की कार्यप्रणाली का हिस्सा बन गया है। उत्तर प्रदेश में तो यह काम बेहद धड़ल्ले से होता आ रहा है जिसके अंतर्गत न सिर्फ किसी अपराध में अल्पसंख्यकों को शामिल बतलाते हुए घरों को जमींदोज किया जाता है, बल्कि राजनीतिक विरोधियों को भी नहीं बख्शा जाता। किसी न किसी बहाने से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों एवं विरोधी मत रखने वाले नेताओं-कार्यकर्ताओं के घरों को गिराया जाता रहा है। उप्र, गुजरात, असम, मध्यप्रदेश राजस्थान आदि राज्यों में बुलडोज़र के प्रति वहां की सरकारों का विशेष अनुराग देखा गया है। बड़ी संख्या में लोगों ने अपने सरों पर से साया केवल इस कारण से खोया है कि उनके परिवार का कोई सदस्य किसी अपराध में शामिल पाया गया।
जमीयत उलेमा ए हिंद ने पिछले दिनों एक याचिका दाखिल कर सरकारों द्वारा मनमाने ढंग से बुलडोज़रों का इस्तेमाल कर घरों को तोड़ने पर रोक लगाने की मांग की थी। विशेषकर दिल्ली के जहांगीरपुरी मामले में वकील फरूख रशीद ने जो याचिका दाखिल की है, उसमें कहा गया है कि भाजपा सरकारें अल्पसंख्यकों एवं हाशिये पर खड़े लोगों के घरों को तोड़कर दमन कर रही है। इससे पीड़ितों को कानूनी उपचार का अवसर नहीं मिल पाता। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई करते हुए साफ किया कि अपराधी पाये जाने पर भी किसी के घर को इस प्रकार नहीं तोड़ा जा सकता। हालांकि महाधिवक्ता तुषार मेहता का कहना था कि निर्माणों को म्युनिसिपल कानूनों के अंतर्गत तोड़ा जा रहा है। यानी अवैध होने के कारण इन पर बुलडोज़र चल रहे हैं। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने सरकार को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। वैसे बेंच ने साफ किया कि वह अवैध और अवरोध बन चुके निर्माणों को संरक्षण नहीं देने जा रही है। उसने सरकारों से सुझाव भी मांगे हैं ताकि वह आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर सके।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश से इस बुलडोज़र दमन की शुरुआत हुई थी जिसमें सरकार की ओर से अल्पसंख्यकों तथा भाजपाविरोधी लोगों के निर्माणों को किसी न किसी बहाने से ध्वस्त करने की परम्परा शुरू की गई। वहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को 'बुलडोज़र बाबाÓ के नाम से भी सम्बोधित किया जाने लगा। यहां तक कि जिन अन्य राज्यों में आदित्यनाथ चुनावी सभाओं को सम्बोधित करने जाते हैं, वहां भी उनके स्वागत में बुलडोज़र रखे जाने लगे। मुस्लिमों के प्रति नफरत करने वाले कट्टरपंथियों के बीच उनकी लोकप्रियता का यह बड़ा कारण बन गया। इसकी देखा-देखी राजस्थान, मध्यप्रदेश, असम, गुजरात आदि में भी कमजोर तबकों व अल्पसंख्यकों के घरों तथा बस्तियों पर अंधाधुंध बुलडोज़र चलाकर न केवल घर बल्कि परिवार के उन सदस्यों को भी सज़ा दी गई जो कथित अपराध में शामिल नहीं थे। एमनेस्टी इंटरनेशनल तक यह मामला पहुंचा था जिसने इस वर्ष की फरवरी में यह तथ्य सामने लाया था कि अप्रैल 2022 से जून 2023 तक उपरोक्त राज्यों में 128 सम्पत्तियों को बुलडोज़र चलाकर धराशायी किया गया। मध्यप्रदेश में एक आरोपी के पिता की सम्पत्ति पर बुलडोज़र चलाया गया तो वहीं राजस्थान में एक अवयस्क छात्र के घर को नेस्तनाबूद कर दिया गया जिस पर अपने सहपाठी को चाकू से गोदने का आरोप था।
भाजपा ने बुलडोज़र न्याय को अपने कड़े प्रशासन का प्रतीक बनाकर प्रचारित किया लेकिन अनेक देशों में इसकी आलोचना भी हुई है जिसके कारण भारत सरकार की बदनामी हुई है। कुछ देशों में तो भाजपा समर्थकों ने राष्ट्रीय पर्वों पर बुलडोज़र को भी जुलूस में शामिल किया था जिसके कारण उन्हें वहां की सरकारों की ओर से कार्रवाई की चेतावनी तक मिली थी। बुलडोज़र जहां दमन का प्रतीक है वहीं वह सरकार के शक्ति के पृथक्करण के नियमों का उल्लंघन भी माना गया है। वैसे भी अपराध के लिये घर, दूकान या किसी भी सम्पत्ति को ढहाने का प्रावधान किसी भी कानून में नहीं है। ज्यादातर मामलों में यही पाया गया है कि बुलडोज़र या तो अल्पसंख्यकों के घरों पर चले हैं अथवा भाजपा विरोधी विचार रखने वालों पर। किसी भी बस्ती में सरकारी मशीनरी की इस आतंकी मशीन ने उसे ही रौंदा है, जो इन्हीं दो श्रेणियों में आते हैं (अल्पसंख्यक-भाजपा विरोधी)। बुलडोज़र न्याय नफरत और सनक से निकली प्रक्रिया है इसलिये उससे किसी भी प्रकार के विवेक और निष्पक्षता की उम्मीद नहीं की जा सकती, लेकिन यह साफ पाया गया है कि जिस अपराध में संलग्नता या संदेह मात्र होने पर भी लोगों के घर गिराये गये, उन्हीं अपराधों में भाजपा समर्थकों को बख्श दिया जाता है।
उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट जब इस मामले की अगली सुनवाई करेगा तो वह सरकारों को इस आशय के साफ निर्देश देगा कि सजाएं देने का काम न्यायपालिका का है; और वह भी कानूनी प्रक्रिया के अंतर्गत निर्धारित प्रावधानों के अनुरूप ही किया जायेगा। जिस प्रकार से बदले की भावना से भाजपा सरकारों ने काम किया है उस पर रोक लगेगी। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय सरकारों को निर्देश दे कि वह न्याय करने का काम उस पर छोड़ें जो निर्धारित और सुपरिभाषित है।


